Thursday, March 17, 2011

Letter to Editor

बदलाव की गुंजाइश

 टोटल स्टेट में छपी स्टोरी नीतिश कुमार की कामयाबी का राज में मटुक जी ने बिहार में लालू-नीतिश की कार्यशैली का विवरण दिया. वास्तव में लालू के कार्यकाल में ही बिहार की स्थिति ऐसी नहीं थी. पिछले 50 साल में जिन हालात में बिहार जी रहा था, इसमें बदलाव की कोई जरूरत लालू प्रसाद ने नहीं समझी. बिहार में जातिवाद, अनपढ़ता, बेरोजगारी, गुंडागर्दी जैसी अनेक समस्याएं लालू-राबड़ी के काल में रहीं. इनमें बदलाव की गुंजाइश को समझते हुए नीतिश ने सही रणनीति अपनाकर बिहार का चेहरा बदलने की कोशिश की. ये कोशिश कहां तक सार्थक व कामयाब रही इसका प्रत्यक्ष उदाहरण अभी हुए विधानसभा चुनाव थे परंतु अभी भी बिहार का आंतरिक परिदृश्य बदलने की जरूरत है. शायद नीतिश जी इसमें भी जीत हासिल करें.

                                                                                                                          -शिवनारायण सिंह, पटना.




उपेक्षित महिलाओं का दर्द

डॉ. वीरेंद्र सिंह का स्त्री चिंतन कई बातों पर प्रश्न चिह्न लगाता है. इस देश में आदिकाल से महिलाओं को उपेक्षित, प्रताडि़त एवं अयोग्य बनाया गया है. उन्हें कभी सती प्रथा, कभी कन्या भ्रूण हत्या, कभी निरक्षरता की आग में जलना पड़ता है. महिलाओं से उनके अधिकार जबरन छीने लगए या यूं कहें कि उनके अधिकार प्रतिबंधित थे. महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए भारत में समय-समय पर आंदोलन चले और उनकी लहर में कितने ही अमानवीय नियम भी बह गए. मुख्य रूप से महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए रामकृष्ण परमहंस से लेकर महात्मा ज्योतिबा फूले, डा. अंबेडकर, भगवान महावीर आदि ने अनेक आंदोलन चलाए. आज महिलाएं बेशक शीर्षस्थ पदों पर आसीन हैं लेकिन गांव में स्थितियां आज भी प्रतिकूल हैं. शायद उनकी हालत में सुधार हो सके.
                                                                                                                       -आलोक श्रीवास्तव, लखनऊ

याद रहेगा साल 2010

आपकी पत्रिका में छपा लेख गुजरा हुआ जमाना, आता नहीं दोबारा, अच्छा है. पिछला साल देश को कई खट्टे-मीठे अनुभव दे गया और एक नजर से तो साल 2010 घोटालों का ही साल रहा जिसने पूरे विश्व में भारत की इज्जत को बट्टा लगाया. चाहे वो कॉमनवेल्थ गेम्स हों, 2 जी स्पेक्ट्रम मामला हो या आदर्श हाउसिंग सोसायटी का मामला हो. जिसे भी मौका मिला, उसी ने भ्रष्टाचार की बहती नदी में हाथ धोने से गुरेज नहीं किया. देश में हुए 2 जी स्पेक्ट्रम जैसे महाघोटाले में मंत्री ही नहीं सरकारी कर्मचारियों से लेकर बड़े मीडिया घरानों के नाम भी शामिल हैं. कुल मिलाकर ऊपर से लेकर नीचे तक हर व्यक्ति भ्रष्टाचार में लिप्त पाया गया. इसी के साथ गुजरे साल में दुनिया के पांच शक्तिशाली देशों के राष्ट्राध्यक्ष भी भारत आए और भारत की शक्ति को पहचाना. भारत को यूएनओ की सदस्यता का अमेरिका जैसे देश ने समर्थन किया. कुल मिलाकर भारत के इतिहास में बीता वर्ष महत्वपूर्ण वर्ष के रूप में याद किया जाएगा.
                                                                                                                                संजय गोयल, हिसार.

भारतीयता को भुलाता भारत

टोटल स्टेट में प्रकाशित लेख भारतीय शिक्षा पद्धति की विनाशलीला पढ़ा. लेख पढ़कर ऐसा लगा जैसे देश भारतीयता को भुला रहा है. अपनी माटी, अपनी भाषा और अपनी संस्कृति को छोड़ता जा रहा है. इसमें कभी आम आदमी की कम लेकिन शासनतंत्र की कमी ज्यादा दिखाई देती है. सरकारी कार्यालयों में तख्तियों पर तो लिखा होता है कि मातृभाषा का सम्मान करें और कामकाज हिंदी में करें लेकिन उन्हीं कार्यालयों में तमाम काम अंग्रेजी में होता है. अंग्रेजी मानसिकता हमारे ऊपर हावी होती जा रही है. देश के अग्रणी अंग्रेजी माध्यम विद्यालयों में तो आम बोलचाल भी हिंदी में नहीं कर पाते बच्चे. हर तरफ अंग्रेजी का बोलबाला है और हिंदी अपने ही देश में पराई लगने लगी है. भारतीय शिक्षा पद्धति देश से लुप्त हो रही है जो अच्छा संकेत नहीं है.
                                                                                                                              राजेश भारती, कुरुक्षेत्र.

झारखंड में भी भेजें पत्रिका

एक मित्र के घर टोटल स्टेट पत्रिका का अंक देखा. आवरण पृष्ठ देखकर पत्रिका अच्छी लगी तो पढ़ ली. काफी अच्छा प्रयास है दऔर लेख भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर के हैं. आपसे पाठकों को बहुत आशाएं हैं क्योंकि आपने सच लिखने की हिम्मत जुटाई है. पत्रिका को रंगीन करने का प्रयास करें ताकि पाठक संख्या और अधिक बढ़ सके. झारखंड के बुक स्टॉल्स पर भी भिजवाएं पत्रिका, अच्छा रिस्पांस मिलेगा और यहां का पाठकवर्ग भी टोटल स्टेट के साथ जुड़ पाएगा.
                                                                                                                                      रवींद्रनाथ (रांची)

जनवरी माह की आवरण कथा 'बदल देगा जीवन वर्ष 2011 में वर्तमान वर्ष में सरकार के लक्ष्यों की बात लिखी गई है जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, इन्फ्रास्ट्रक्चर, इकॉनोमी और तकनीक क्षेत्र विशेष हैं. जहां तक स्वास्थ्य की बात है आज देश में लाखों लोग केवल धनाभाव के चलते मौत का ग्रास बने रहें हैं. राजकीय अस्पतालों की व्यवस्था ऐसी घृणित है कि लोग अस्पतालों में कैदियों की जीवन जी रहें हैं. देश के राजकीय अस्पतालों में सीटी स्कैन, एक्स-रे व हिमोडायलिसिस जैसी आवश्यक मशीने या तो हैं ही नहीं और अगर किसी अस्पताल में है भी तो वे सफेद हाथी साबित हो रही हैं. इसी कारण आम आदमी मोटे ब्याज पर साहूकारों से कर्जा लेकर अपने परिवारजनों का ईलाज निजी अस्पतालों में करवाने को मजबूर हैं. शायद वित्त वर्ष में अस्पतालों की दशा-दिशा बदल जाए.
बात जहां शिक्षा की आती है. आंकड़ों के मुताबिक देश के करोड़ों बच्चे केवल इसलिए विद्यालयों में नहीं जा पाते कि उनके घर में पैसा नहीं है. माना कि आज सरकारी नीतियों केे अनुसार न के बराबर पैसों में सरकारी विद्यालयों में शिक्षा दी जा रही है. लेकिन देश के तकदीरदार कभी राजकीय पाठशालाओं में जा कर वहां की व्यवस्था देखेंगे तो शर्म से सर झुक जाएगा. सरकारी विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने आए बच्चों से अध्यापक अपने निजी काम करवाते हैं. गांवों में मुफ्त दुध-दही, घी, अनाज इत्यादी वसूलते हैं. इस परिस्थति में निजी विद्यालयों से सरकारी विद्यालयों का खर्चा ज्यादा मालूम पड़ता है.
 देश में आज लाखों परिवार बिना छत के खुले आसमान तले सोने को मजबूर हैं. क्या भारत सरकार इस ओर भी ध्यान प्रदान करेगी. इसी आशा से आज भारत का हर गरीब सरकार की तरफ आंखें लगाए बैठा है.

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