Wednesday, March 16, 2011

भारतीय हॉकी की नई 'रानी', रानी रामपाल

सत्येन्द्र पाल सिंह

अभाव और गरीबी से जूझने का माद्दा अक्सर इंसान को बेहतर करने को प्रेरित करता है। जो शख्स अभावों से जूझ कर अपना वजूद बनाने में कामयाब रहता है वही कुंदन बनता है। गरीबी और अभावों के थपेड़ों से लड़कर खुद का अपना एक अलग वजूद बनाने की ही कहानी है भारतीय हॉकी की नई 'रानी', रानी रामपाल। दिल्ली और चंडीगढ़ के रास्ते के अधबीच एक छोटा सा कस्बा है- शाहबाद मरकंडा। इसी कस्बे की हॉकी नर्सरी से भारतीय हॉकी टीम की कप्तान सुरिंदर कौर की तरह वर्ल्ड हॉकी में अपनी मौजूदगी का अहसास कराने वाली एक नई बाला आई है रानी रामपाल। वह एक घोड़ा तांगा चला कर अपने परिवार का गुजारा करने वाले की बेटी है।
16 वर्षीया रानी रामपाल की कहानी भारत के हॉकी धुरंधर धनराज पिल्लै से बहुत हद तक मिलती-जुलती है। रानी का बचपन भी धनराज की तरह बहुत गरीबी में बीता। वह भी अपने भाई -बहनों में सबसे छोटी हैं। घर में खाने तक के शुरू में लाले थे। ऐसे में हॉकी खेलने की अपनी हसरत को पूरा करने के लिए अपने परिवारजनों खासतौर पर माता -पिता को मनाने के लिए रानी रामपाल को बहुत पापड़ बेलने पड़े। रानी का खुद पर भरोसा इतना बेमिसाल है कि वह अपने घरवालों खासतौर पर बड़े भाइयों को मनाने में कामयाब रही। रानी के दो बड़े भाईं हैं। एक दुकान पर छोटा -मोटा काम करता है। उनसे बड़ा एक भाई बढ़ई (कारपेंटर) है। एक बार हॉकी थामने के बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। वह पिछले दो बरस में खुद को भारत की नंबर एक हॉकी फॉरवर्ड के रूप में स्थापित कर चुकी हैं।

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