Wednesday, March 16, 2011

फिर पिछडे भारतीय विश्वविद्यालय

देश में उच्च शिक्षा को मजबूत बनाने के लिए मानव संसाधन मंत्रालय काफी कुछ कर रहा है। काफी पैसे खर्च किए जा रहे हैं और नए आईआईएम और एनआईटी, आईआईटी खोले जा रहे हैं।
लेकिन क्या वाकई देश की उच्च शिक्षा उस हिसाब से प्रगति कर रही है, जैसी जरूरत है। विशेषज्ञों की नजरों में तो सुधार मुकम्मल नहीं है। साथ ही हाल में जारी हुए एक शोध पर ध्यान दें तो भारतीय उच्च शिक्षा की स्थिति उतनी मजबूत नहीं, जितनी बताई जाती है।
उच्च शिक्षा से संबंधित इस साल क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग द्वारा किए गए सर्वे में भारत की कोई भी यूनिवर्सिटी शीर्ष 300 में अपना स्थान नहीं बना पाई है। हालांकि आईआईटी, मुंबई ने कुछ लाज बचाते हुए 187वां स्थान पाया है। जबकि यह संस्थान पिछले वर्ष 163वें स्थान पर था। इस संस्थान को 100 में से 48.79 अंक मिले हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी को 371वां स्थान मिला है, जबकि यह यूनिवर्सिटी पिछले वर्ष 291वें स्थान पर थी। इस वर्ष पिछले सात सालों से पूरी दुनिया में शीर्ष पर कायम हॉवर्ड यूनिवर्सिटी को कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी ने पीछे छोड़ नबंर एक का ताज अपने नाम कर लिया है। सात साल बाद नंबर एक का ताज पहनने वाली ब्रिटिश यूनिवर्सिटी पहली गैर-ब्रिटिश यूनिवर्सिटी है। रैंकिंग में ब्रिटिश यूनिवर्सिटी ने 100 अंक लेकर हॉवर्ड यूनिवर्सिटी (99.19 अंक) को दूसरे स्थान पर धकेल दिया। इसके अतिरिक्त शीर्ष 100 में एशिया की 15 यूनिवर्सिटीज ने जगह पाई है, जिसमें हांगकांग यूनिवर्सिटी शीर्ष पर है। हांगकांग यूनिवर्सिटी 87.28 अंकों के साथ 23वें स्थान पर रही। इस सर्वे में आईआईटी, मुंबई को 187वां, आईआईटी, दिल्ली को 202वां, आईआईटी, कानपुर को 249वां, आईआईटी, चैन्नई को 262वां, आईआईटी, खडग़पुर को 311वां, आईआईटी, गुवाहाटी और आईआईटी, रुड़की को संयुक्त रूप से 401वां स्थान मिला है।

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