Wednesday, March 16, 2011

पुस्तक चर्चा : नर्मदा: ऐतिहासिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन

ललित सुरजन

ऐसा कहा जाता है कि नर्मदा देश की सबसे पुरानी नदी है। उसका उद्गम आज से लाखों साल पहले गंगा-यमुना के भी पहले हो गया था।
नर्मदा मध्यप्रदेश तथा गुजरात की जीवनदायिनी नदी तो है ही, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ भी उससे लाभान्वित होते हैं। इस प्राचीन सरिता के किनारे ही भारत के मध्य भाग की संस्कृति का विकास अनेकानेक शताब्दियों से होते आया है। नर्मदा के तट पर ओंकारेश्वर में ही आदि शंकराचार्य ने दीक्षा ग्रहण की थी। अनेक शताब्दियों बाद इसी नदी पर महेश्वर में रानी अहिल्या बाई होलकर ने सुंदर घाटों का निर्माण करवाया था। माखनलाल चतुर्वेदी, भवानीप्रसाद मिश्र और हरिशंकर परसाई जैसे विख्यात साहित्यकार नर्मदा का पानी पीकर ही बड़े हुए।
नर्मदा पर विपुल साहित्य रचा गया है। इसी श्रृंखला में युगलकिशोर सिंह ठाकुर ने ''नर्मदा : ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक अध्ययन'' शीर्षक से नई पुस्तक प्रकाशित की है। श्री ठाकुर नर्मदा तट पर मंडला के निवासी हैं। इस नाते उन्होंने यह पुस्तक लिखकर मातृ ऋण से उऋण होने का सार्थक प्रयत्न किया है। श्री ठाकुर की इस पुस्तक में, जैसा कि शीर्षक से स्पष्ट है, विषय से जुड़े हुए विविध पहलुओं का अध्ययन किया गया है। इसमें नदी के भौगोलिक परिचय के साथ-साथ धार्मिक, आर्थिक, पर्यटक महत्व को भी रेखांकित किया गया है। लोकमानस में नर्मदा किस तरह लोक गीतों के माध्यम से रची-बसी है, इस पर भी एक अध्याय है एवं वर्तमान समय में बड़ी-छोटी सिंचाई योजनाओं के चलते नदी का स्वरूप कैसे बदल रहा है, यह भी लेखक ने भलीभांति स्पष्ट किया है। यह पुस्तक आम पाठकों के लिए उपयोगी है, साथ ही साथ शोधार्थियों के लिए भी। श्री ठाकुर अध्यापक और पुलिस अधिकारी दोनों रहे हैं तथा पुस्तक में उनकी विश्लेषणात्मक क्षमता का उत्तम परिचय मिलता है।

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