भुवनेश जैन
जयपुर विकास प्राधिकरण में हाल ही हुई एक घटना ने यह उजागर कर दिया है कि मीडिया को भ्रष्ट करने की कोशिश ऊपर से नीचे तक हर जगह चल रही है। पिछले दिनों राडिया प्रकरण खुलने के बाद मीडिया से जुड़े बड़े नामों की असलियत सामने आ गई थी। अब जयपुर विकास प्राधिकरण में नए साल के उपहार के रूप में कैश कार्ड बांटने की घटना सामने आई है। इससे पता चलता है कि मीडिया को लालच देकर उसका मुंह बंद करने के प्रयास हर स्तर पर हो रहे हैं। अफसोस की बात यह है कि मीडिया का बड़ा वर्ग इस तरह के उपहारों या नकदी को अधिकार समझकर ग्रहण कर रहा है और जाने-अनजाने भ्रष्टाचार और घोटालों में शामिल हो रहा है।
मीडिया का मुंह बंद रखने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन दिए जाने लगे हैं। इसका नतीजा यह हो रहा है कि आज पत्रकारिता के पेशे में ऎसे लोगों का जमावड़ा बढऩे लगा है, जो इन प्रलोभनों की ओर आकर्षित होकर इस पेशे में आ रहे हैं। साधारण प्रेस कॉन्फे्रंस का कवरेज करने के लिए मंहगे उपहार या नकदी के लिफाफे बांटना तो आम हो गया है। जितनी बड़ी गड़बड़ी उतना बड़ा उपहार! अफसरों को यह सुविधा हो गई है कि खूब घोटाले करो, पर प्रेस का मुंह बंद करना सीख लो। इसी प्रचलन ने प्रेस के बड़े हिस्से को बिकाऊ माल की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है।
कहीं संपादकों के आतिथ्य की व्यवस्था की जाती है तो कहीं सरकारी क्वार्टर वितरित किए जाते हैं। एक समय विभिन्न विधाओं और वर्गो को संरक्षण देने के लिए उन्हें प्राथमिकता और रियायत के आधार पर जमीन देने की सरकारों की नीति रही है। इनमें स्वतंत्रता सेनानी, कलाकार, पत्रकार, साहित्यकार आदि वर्ग शामिल थे। धीरे-धीरे बाकी वर्गो को भुला दिया जाना और सिर्फ पत्रकारों को रियायतें देना यह बताता है कि आज सरकारी नीतियों में "संरक्षण" के बजाय "प्रलोभन" का उद्देश्य प्रमुख हो गया है।
"पत्रिका" में ऎसे कई दृष्टांत मिल जाएंगे, जब पत्रकारों को प्रलोभन देने की घटनाएं सामने आने पर महंगे उपहारों को कठोर पत्रों के साथ लौटाया गया है। ऎसे प्रलोभनों की चमक में राह भटकने वाले कई पत्रकारों को नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा है।
हाल ही की घटना में जयपुर विकास प्राधिकरण ने पत्रकारों को बुला-बुलाकर एक्सिस बैंक के कैश कार्ड दिए। ये कैश कार्ड किसी नकदी से कम नहीं हैं। चाहे इसमें दी गई रकम से खरीदारी करो, चाहे एटीएम से कैश निकलवाओ। सरकार के जिम्मेदार मंत्री, प्राधिकरण के अफसर और धन प्राप्त करने वाले पत्रकारों को इस कारगुजारी पर अफसोस नहीं होता? पत्रिका के संवाददाता अभिषेक श्रीवास्तव व मुकेश शर्मा को भी पेशकश की गई, पर उन्होंने कार्ड लेने से इनकार कर दिया। हम यहां यह संकल्प दोहराना चाहते हैं कि यदि पत्रिका का कोई संवाददाता किसी से भी समाचार के बदले कुछ मांगता है तो पहले हमें सूचना दें। तुरंत कार्रवाई की जाएगी।
मीडिया को लोकतंत्र का प्रहरी माना जाता है। जब लोकतंत्र के तीनों स्तंभों में कहीं कोई गड़बड़ी हो तो मीडिया से अपेक्षा की जाती है कि वह उसे उजागर करेगा, लेकिन जब उसका मुंह प्रलोभनों से बंद कर दिया जाएगा तो जनता का पैसा लुटता रहेगा और कोई सवाल नहीं कर पाएगा।
जयपुर विकास प्राधिकरण में हाल ही हुई एक घटना ने यह उजागर कर दिया है कि मीडिया को भ्रष्ट करने की कोशिश ऊपर से नीचे तक हर जगह चल रही है। पिछले दिनों राडिया प्रकरण खुलने के बाद मीडिया से जुड़े बड़े नामों की असलियत सामने आ गई थी। अब जयपुर विकास प्राधिकरण में नए साल के उपहार के रूप में कैश कार्ड बांटने की घटना सामने आई है। इससे पता चलता है कि मीडिया को लालच देकर उसका मुंह बंद करने के प्रयास हर स्तर पर हो रहे हैं। अफसोस की बात यह है कि मीडिया का बड़ा वर्ग इस तरह के उपहारों या नकदी को अधिकार समझकर ग्रहण कर रहा है और जाने-अनजाने भ्रष्टाचार और घोटालों में शामिल हो रहा है।
मीडिया का मुंह बंद रखने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन दिए जाने लगे हैं। इसका नतीजा यह हो रहा है कि आज पत्रकारिता के पेशे में ऎसे लोगों का जमावड़ा बढऩे लगा है, जो इन प्रलोभनों की ओर आकर्षित होकर इस पेशे में आ रहे हैं। साधारण प्रेस कॉन्फे्रंस का कवरेज करने के लिए मंहगे उपहार या नकदी के लिफाफे बांटना तो आम हो गया है। जितनी बड़ी गड़बड़ी उतना बड़ा उपहार! अफसरों को यह सुविधा हो गई है कि खूब घोटाले करो, पर प्रेस का मुंह बंद करना सीख लो। इसी प्रचलन ने प्रेस के बड़े हिस्से को बिकाऊ माल की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है।
कहीं संपादकों के आतिथ्य की व्यवस्था की जाती है तो कहीं सरकारी क्वार्टर वितरित किए जाते हैं। एक समय विभिन्न विधाओं और वर्गो को संरक्षण देने के लिए उन्हें प्राथमिकता और रियायत के आधार पर जमीन देने की सरकारों की नीति रही है। इनमें स्वतंत्रता सेनानी, कलाकार, पत्रकार, साहित्यकार आदि वर्ग शामिल थे। धीरे-धीरे बाकी वर्गो को भुला दिया जाना और सिर्फ पत्रकारों को रियायतें देना यह बताता है कि आज सरकारी नीतियों में "संरक्षण" के बजाय "प्रलोभन" का उद्देश्य प्रमुख हो गया है।
"पत्रिका" में ऎसे कई दृष्टांत मिल जाएंगे, जब पत्रकारों को प्रलोभन देने की घटनाएं सामने आने पर महंगे उपहारों को कठोर पत्रों के साथ लौटाया गया है। ऎसे प्रलोभनों की चमक में राह भटकने वाले कई पत्रकारों को नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा है।
हाल ही की घटना में जयपुर विकास प्राधिकरण ने पत्रकारों को बुला-बुलाकर एक्सिस बैंक के कैश कार्ड दिए। ये कैश कार्ड किसी नकदी से कम नहीं हैं। चाहे इसमें दी गई रकम से खरीदारी करो, चाहे एटीएम से कैश निकलवाओ। सरकार के जिम्मेदार मंत्री, प्राधिकरण के अफसर और धन प्राप्त करने वाले पत्रकारों को इस कारगुजारी पर अफसोस नहीं होता? पत्रिका के संवाददाता अभिषेक श्रीवास्तव व मुकेश शर्मा को भी पेशकश की गई, पर उन्होंने कार्ड लेने से इनकार कर दिया। हम यहां यह संकल्प दोहराना चाहते हैं कि यदि पत्रिका का कोई संवाददाता किसी से भी समाचार के बदले कुछ मांगता है तो पहले हमें सूचना दें। तुरंत कार्रवाई की जाएगी।
मीडिया को लोकतंत्र का प्रहरी माना जाता है। जब लोकतंत्र के तीनों स्तंभों में कहीं कोई गड़बड़ी हो तो मीडिया से अपेक्षा की जाती है कि वह उसे उजागर करेगा, लेकिन जब उसका मुंह प्रलोभनों से बंद कर दिया जाएगा तो जनता का पैसा लुटता रहेगा और कोई सवाल नहीं कर पाएगा।
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