Thursday, March 17, 2011

कवर स्टोरी : मम्मी-डैडी ने मारा!

आरुषि को न्याय का हक, दांव पर रिश्तों की साख
ऋषि पांडेय

 'गिव आरुषि तलवार जस्टिस. सबसे ताकतवर सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर ये पेज सबसे लोकप्रिय हो रहा है. यहां करीब 12,000 लोग आरुषि हत्याकांड और कातिलों को सजा दिलाने को लेकर अपनी बात रख रहे हैं. भारत में इंटरनेट क्रांति की ये सबसे बड़ी बानगी है. ये भारत में इंटरनेट की बढ़ती सामाजिक ताकत और उसके मायनों को दर्शाता है.
 जब से गाजियाबाद सीबीआई की विशेष अदालत ने इस दोहरे हत्याकांड में आरुषि के माता-पिता राजेश और नुपुर तलवार को आरोपी बनाया है, देशभर में ये बहस तेज हो गई है. तलवार दंपति पर हत्या, सबूतों को नष्ट करने और कॉमन क्रिमिनल कांसिपेरेसी रचने का मुकदमा चलेगा. दोनों को समन भेजा जा चुका है. 28 फरवरी को अदालत में पेश होंगे और चार्जेज फ्रेम करने के बाद ट्रायल का सामना करना पड़ेगा. राजेश तलवार फिलहाल जमानत पर हैं और गाजियाबाद सीबीआई कोर्ट के फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चैलेंज करने की तैयारी कर रहे हैं. वकीलों का एक बड़ा दल इस मामले को ड्राफ्ट करने में जुटा है लेकिन परिस्थिति जन्य साक्ष्य तलवार के खिलाफ हैं. इसलिए वकीलों के पसीने छूट रहे हैं.
 देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री को सुलझाने में जुटी देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई अब तक ये साफ नहीं कर पायी है कि अगर हत्या मां बाप ने ही की है, ये मान लिया जाए भी, तो लेकिन क्यूं. मर्डर का मोटिव यानी वजह क्या है? इसका पुख्ता कोई जवाब तो सीबीआई के पास नहीं है. लेकिन इशारा ऑनर किलिंग की तरफ है. यानी सामाजिक प्रतिष्ठा को कायम रखने के लिए हत्या. लेकिन राजेश और नुपुर तलवार की इकलौती संतान, 14 वर्षीय उनकी बेटी आरुषि ने आखिर ऐसा क्या कर दिया था. जिसकी वजह से उसकी जान लेने की जरूरत आन पड़ी या मजबूरी बन गई.
 ये जवाब जांच एजेंसी को जुटाना होगा, या राजेश और नुपुर तलवार से प्रामाणिक तौर पर उगलवाना होगा, तभी ये मामला कोर्ट में ट्रालय के दौरान स्टैंड कर पाएगा. सीबीआई के पास मैटीरियल एविडेंस के नाम पर कुछ भी नहीं है, न तो आला ए कत्ल है और न ही कातिल के खून से सने कपड़े. आरुषि का मोबाइल दो साल बाद यूपी से बरामद हुआ था, लेकिन उससे कुछ हासिल नहीं हुआ. नौकर हेमराज के मोबाइल का तो अब तक कोई अता पता नहीं है. ये सब कुछ ऐसे सिरदर्द हैं जिसका सामना करने से सीबीआई बचना चाहती थी. शायद इसीलिए उसने कोर्ट के शीतकालीन छुट्टियों के दौरान चुपचाप क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दिया. सीबीआई के पूर्व निदेशक जोगिंद्र सिंह सीबीआई का बचाव करते हुए कहते हैं, 'जरूरी नहीं सीबीआई सब केसेज को सॉल्व ही कर दे, बहुत से मर्डर केस इतने ब्लाइंड होते हैं और कातिल इतना शातिर होता है कि सबूत जुटाना और उसे सज़ा दिला पाना जांच एजेंसी के लिए असंभव सा हो जाता है. इस मामले में भी हालात कुछ ऐसे ही थे. इसलिए क्लोजर रिपोर्ट लगानी पड़ी.
 लेकिन इसके ठीक उलट दिल्ली के सीनियर क्रिमिनल लायर केटीएस तुलसी कहते हैं कि 'परिस्थितिजन्य साक्ष्य भी साक्ष्य ही होते हैं, और इनकी बिनाह पर भी चार्जशीट दाखिल कर कातिल को सजा दिलाई जा सकती है. और अगर सरकम्सटांशियल एविडेंस तलवार के खिलाफ हैं तो तलवार पर हत्या का मुकदमा चलना चाहिए.
 तुलसी की बात में दम है, और शायद यही बात सीबीआई की स्पेशल जज प्रीति शर्मा के दिमाग में भी रही होगी कि क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार कर और केस को बंद करके न्याय की उम्मीद को पूरी तरह खत्म करने से अच्छा है कि क्लोजर रिपोर्ट को चार्जशीट में तब्दील कर तलवार  दंपती पर हत्या का मुकदमा चलाया जाए.
 इस रिपोर्ट में सीबीआई ने जिन आठ गवाहों का जिक्र किया है, उनके बयानों और तलवार की हत्या की रात और हत्या के बाद की गतिविधियों शक को और मजबूत करती हैं. (देखें बॉक्स-तलवार की तीन भूल) तलवार की गलतियों और उसके जानकारों के बयानों ने ही सीबीआई के शिकंजे को मजबूत कर दिया है.
 28 फरवरी को अदालत में तलवार दंपती की पेशी के बाद ये मर्डर मिस्ट्री नए मोड़ ले सकती है. मीडिया खासतौर पर न्यूज चैनलों को संयम से काम लेना चाहिए और जो न्याय की उम्मीद जगी है, उस उम्मीद को जिंदा रखना चाहिए.
 जेसिका लाल, नीतिश कटारा, प्रियदर्शिनी मट्टू और रुचिका जैसे मामलों में समाज और मीडिया ने जिस तरह आगे आकर न्याय की उम्मीद के चिराग को जलाए रखा, क्या ये आरुषि के मामले में भी तार्किक परिणति तक पहुंच पाएगा. ये तो वक्त तय करेगा लेकिन इस मामले की रहस्य-कथा न्याय और अपराध में रुचि रखने वालों के लिए मॉडल केस स्टडी मैटीरियल बना रहेगा.

कब-कब क्या हुआ

16 मई 2008-आरुषि की लाश उसके कमरे से मिली
17 मई-हेमराज का शव तलवार के घर से मिला
18 मई-नोएडा पुलिस ने कहा-सर्जिकल ब्लेड से हुई हत्या
19 मई-तलवार के पुराने नौकर विष्णु पर शक
22 मई-आरुषि के माता-पिता पर शक
23 मई-राजेश तलवार गिरफ्तार
1 जून-जांच शुरू की सीबीआई ने
13 जून-तलवार का कंपाऊंडर कृष्णा गिरफ्तार
20 जून-राजेश तलवार का लाई डिटेक्शन टेस्ट
25 जून-मां नुपुर तलवार का लाई डिटेक्शन टेस्ट
26 जून-सीबीआई ने कहा, ब्लाइंड मर्डर केस
12 जुलाई-राजेश तलवार जेल से रिहा
4 सितंबर 2009-हैदराबाद की सीडीएफडी लैब ने कहा, सैंपल सही नहीं
5 जनवरी 2010-सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल किया लेकिन तलवार दंपती पर शक
3 जनवरी 2011-अदालत ने क्लोजर रिपोर्ट का परीक्षण किया


बदलती रही जांच टीम-हत्यारे पकड़ से बाहर
इस सनसनीखेज हत्याकांड की जांच पहले नोएडा पुलिस ने शुरू की. लेकिन धरनास्थल की सही जांच में पहले दिन से लापरवाही बरती गई. 17 मई को छत से हेमराज की लाश मिलने के बाद पुलिस की बेहद किरकिरी हुई और 18 मई को यूपी एसटीएफ ने जांच शुरू की. 23 मई को नोएडा पुलिस ने राजेश तलवार को गिरफ्तार कर केस को सॉल्व करने का दावा किया. लेकिन 29 मई को उत्तर प्रदेश सरकार की संस्तुति पर मामला सीबीआई को सौंप दिया गया. अरुण कुमार के नेतृत्व में जांच शुरू हुई जिसमें राजेश तलवार को क्लीन चिट दिया गया और जेल से रिहा किया गया.
 चार सितंबर 2009 का सनसनीखेज खुलासा हुआ जब हैदराबाद की सीडीएफडी लैब ने कहा कि सीबीआई ने जो सैंपल जांच के लिए भेजे हैं, वो आरुषि के हैं ही नहीं. इस खुलासे के बाद अरुण कुमार को जांच से हटाकर नई टीम बना दी गई. नई टीम ने 29 दिसंबर 2010 को क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर कहा कि उसे शक तो तलवार दंपती पर है लेकिन पर्याप्त सबूत नहीं हैं. अदालत ने इसी क्लोजर रिपोर्ट को चार्जशीट मानते हुए तलवार दंपती को आरोपी बनाया.

नौकरों को बेवजह मिली सज़ा का हिसाब कौन देगा?
आरुषि हेमराज की हत्या और अरुण कुमार के नेतृत्व में सीबीआई की जांच ने तीन बेकसूर नौकरों की जिंदगी बदल कर रख दी. राजेश तलवार के कंपाऊंडर कृष्णा को तीन महीने जेल में काटने पड़े और आज वो एक न्यूज चैनल में कार चला रहा है. तलवार के दोस्त डॉ. अनिता दुर्रानी के नौकर राजकुमार को भी आरोपी बनाकर जेल भेजा गया. आजकल वो नेपाल में है. पड़ोसी के एक और नौकर विजय मंडल को भी जेल भेजा गया. बाद में वो भी अदालत से बरी हुआ और अब वो बिहार के अपने गांव में रहता है. नौकरों के वकील अब अरुण कुमार और उनकी टीम के सदस्यों पर मुकदमा करने की तैयारी में हैं. सवाल ये है कि इन नौकरों का जीवन जिस तरह बर्बाद हुआ और बदनामी हुई उसका हिसाब तो अरुण कुमार से ही पूछा जाना चाहिए.

क्या तत्कालीन नोएडा पुलिस की जांच सही नहीं थी
तमाम गलतियों के बावजूद नोएडा पुलिस ने हफ्तेभर में जिस तरह केस को सॉल्व किया था, 941 दिन बाद देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई भी उसी नतीजे पर पहुंची है. जब यही करना था तो राजेश तलवार की गिरफ्तारी को तब गलत ठहराकर उन्हें क्लीनचिट कैसे मिल गई? नौकरों को ख्वामखाह क्यों बलि का बकरा बनाया गया. ये सवाल नोएडा पुलिस के तत्कालीन अधिकारी पूछ रहे हैं. नोएडा के तत्कालीन पुलिस कप्तान सतीश गणेश को गलत ठहराकर बलि का बकरा बनाया गया था. उनका ट्रांसफर कर दिया गया था और आज यूपी पुलिस महकमे में कहीं गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं.

तलवार की तीन भूल
ज्यों ज्यों आरुषि हत्याकांड की जांच की परतें खुल रही हैं त्यों त्यों राजेश तलवार के इर्द गिर्द शिकंजा मजबूत होता जा रहा है. क्लोजर रिपोर्ट में आठ गवाहों के बयानों से सीबीआई का केस मजबूत होता जा रहा है. कहते हैं हत्यारा कितना भी शातिर और पढ़ा लिखा क्यों न हो, सबूत मिटाते वक्त वो खुद कुछ ऐसी गलतियां करता है जिससे जांच एजेंसी के जाल में फंस ही जाता है. हां, अपराधी शातिर हो तो उसकी गर्दन तक पहुंचने में थोड़ा वक्त जरूर लगता है. आरुषि मामले में भी डॉ. राजेश और नुपुर तलवार ने तीन ऐसी भूल की और फंस गए सीबीआई के शिकंजे में. सीबीआई ने जो आठ गवाह बनाए हैं, उनमें ज्यादातर तलवार के जानने वाले हैं और जाने अनजाने सीबीआई और मजिस्ट्रेट के सामने उन्होंने वो सच उगल दिया जिसमें तलवार फंसते चले गए. तलवार की पहली भूल है-पुलिस के आने से पहले घर की साफ सफाई और आरुषि के कमरे से छेड़छाड़ करना. डॉ. तलवार के जानकार डॉ. रोहित कोचर और राजीव वाष्र्णेय ने सीबीआई को बताया कि वे दोनों पुलिस के आने से पहले एल-32 में पहुंचे थे और साफ सफाई, पोंछा मारने के निशान देखे. रोहित और राजीव ने डॉ. तलवार से सीढिय़ों पर पड़े खून के छींटे और छत के दरवाजे के हैंडल पर लगे खून के बारे में भी बताया था. छत पर ताला बंद था और डॉ. तलवार ने छत का ताला खोलकर खून के बारे में जानने की कोशिश नहीं की, क्योंकि वे जानते थे छत पर हेमराज की लाश पड़ी थी. तलवार की दूसरी बड़ी भूल ये थी कि हत्या के दूसरे ही दिन उन्होंने पेंटर शोहरत को बुलाकर आरुषि के घर का पार्टिशन पेंट करने और ग्रिल हटाने को कहा था. शोहरत को डॉ. तलवार 1992 से जानते थे और पेंट करने के लिए उसे 25 हजार रुपए दिए गए. शोहरत ने ये बयान सीबीआई और मजिस्ट्रेट के सामने दिया है, जो सबूत नष्ट करने के मामले में तलवार के लिए मुश्किलें खड़ी करेगा. तलवार की तीसरी बड़ी भूल थी-राजेश तलवार के बड़े भाई दिनेश तलवार का आरुषि का पोस्टमार्टम करने वाले डॉ. सुनील दोहरे को फोन करना और किसी बड़े डॉक्टर का हवाला देकर पोस्टमार्टम रिपोर्ट को प्रभावित करना. सीबीआई ने डॉ. सुनील दोहरे को भी गवाह बनाया है. ये तीन ऐसी बड़ी गलतियां हैं जो डॉ. तलवार और उनकी पत्नी के लिए गले की फांस बन गई हैं. तलवार दंपती के वकीलों के पसीने छूट रहे हैं कि इनकी काट कैसे तैयार की जाए. क्योंकि तलवार परिवार गाजियाबाद सीबीआई विशेष अदालत के फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती देने पर विचार कर रहा है.

कत्ल तो हेमराज का भी हुआ था
16 मई को आरुषि मर्डर केस में नोएडा सेक्टर 34 थाने में जो एफआईआर दर्ज हुई उसमें हेमराज को हत्यारा ठहराया गया था. 16 मई की सुबह कहानी बड़ी साफ दिख रही थी कि घर का नौकर हेमराज आरुषि का कत्ल कर फरार हो गया है. क्योंकि घर में लड़की की लाश और घर से नौकर फरार. पुलिस की जांच को गुमराह करने के लिए डॉ. राजेश तलवार भी पुलिस से बार-बार निवेदन कर रहे थे कि हेमराज को ढूंढि़ए. दहाड़ कर रो रहे थे कि हेमराज ने मेरी बेटी को मार डाला, लेकिन अपने दोस्तों के कहने पर और यहां तक कि पुलिस के कहने पर भी छत के ताले की चाभी नहीं दे रहे थे, क्योंकि वे जानते थे छत पर हेमराज की लाश पड़ी थी.  पुलिस ने डॉ. तलवार के कहने पर रेलवे और बस अड्डों पर हेमराज की तलाश शुरू कर दी और एक टीम नेपाल भी भेज दी जहां का हेमराज रहने वाला था. 17 मई को सुबह 11 बजे तक हेमराज लोगों की नजऱ में एक विलेन था. सब कह रहे थे नौकरों का कोई भरोसा नहीं, कुछ भी कर सकते हैं, आदि-आदि....
 कहानी में ट्विस्ट तब आया जब रिटायर्ड डीसीपी केके गौतम की एंट्री हुई और मीडिया की मौजूदगी में छत का ताला तोड़ा गया. छत पर हेमराज की लाश पड़ी थी, कूलर के ढ़क्कन से इसे ढंक दिया था. मुझे याद है, हेमराज का कत्ल बड़ी बेरहमी से किया गया था, उसका गला रेत कर हत्या की गई थी.
 कहानी पलट गई, सनसनी फैल गई और मीडिया के कैमरे टूट पड़े छत की तरफ, और दर्जनों ओबी वैन जलवायु विहार की ओर. पुलिस का माथा ठनका, पैरों के नीचे से जमीन खिसक चुकी थी. पुलिस के आला अधिकारी मौके पर पहुंचे. हेमराज की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया. पुलिस कप्तान ने पहला फोन पुलिस की उस टीम को मिलाया जिसे हेमराज को तलाशने के लिए नेपाल भेजा गया था. कप्तान बोले वापस आ जाओ, हेमराज की लाश छत से बरामद हो गई है.
 पुलिस कप्तान ने दूसरा फोन डॉ. राजेश तलवार को मिलाया-पूछा कहां हैं आप? आपके नौकर की लाश छत से मिल गई है, आकर शिनाख्त कीजिए. तलवार ने कहा मैं तो आरुषि की अस्थियां गंगा में बहाने के लिए हरिद्वार जा रहा हूं, रास्ते में हूं, वापस लौटकर बात करूंगा. ये कहकर तलवार ने फोन काट दिया. इसी बीच तलवार ने न सिर्फ फ्लैट की साफ सफाई करवा दी थी बल्कि आरुषि की अंत्येष्टि कर अस्थियां विसर्जित करने हरिद्वार निकल चुके थे. हेमराज की उम्र 50 साल के करीब थी. वो नेपाली थी, खाना अच्छा बनाता था, कम बोलता था और शराब नहीं पीता था. हेमराज का परिवार नेपाल में ही आज भी रहता है. इसकी पत्नी ज्यादातर बीमार रहती है, दिल्ली में एक बार सफदरजंग में इलाज के लिए आई थी तब हमने उससे मुलाकात की. उसका परिवार बेहद गरीब है. हेमराज का दामाद जीवन आज भी नोएडा में ही एक व्यवसायी समीर अटोरा का घरेलू नौकर है. नोएडा पुलिस ने हेमराज की तलाश में उसकी खूब पिटाई की थी, बाद में लाश मिलने पर जीवन को छोड़ दिया गया.  बाद में उसी एफआईआर को दोहरे हत्याकांड में बदला गया और इस दोहरे हत्याकांड में अब तलवार दंपती आरोपी हैं. उम्मीद है आरुषि के साथ साथ हेमराज को भी न्याय मिलेगा, वो नौकर था तो क्या हुआ, उसका गुनाह सिर्फ ये था कि वो गलत समय में गलत जगह मौजूद था. हत्या का गवाह बन गया था इसलिए जान से भी हाथ धोना पड़ा.

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