Wednesday, March 16, 2011

अहम् मुद्दों पर चुप क्‍यों है कांग्रेस का 'युवराज'?

प्रकाश प्रियदर्शी

देश की राजनीति में राहुल गांधी की भूमिका अतिमहत्वपूर्ण है। मीडिया उन्हें युवराज की संज्ञा देती है। प्रधानमंत्री कहते हैं राहुल जब चाहेंगे वे उनके लिए कुर्सी छोड़ देंगे। देश में परिवारवाद पर लंबी बहस हुई है और हो रही है। हाल में संपन्न हुए बिहार विधानसभा चुनाव में भी परिवार वाद पर जमकर बहसबाजी हुई। कुछ वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषकों ने इसके लिए जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार माना। उनका आरोप है कि  राजनीति में परिवार की शुरूआत नेहरू जी ने की।
राहुल का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ जिसका भारतीय राजनीति पर लगभग एकक्षत्र राज रहा है। इसलिए राहुल देश की सबसे पुरानी पार्टी की तरफ से स्वाभाविक प्रधानमंत्री के दावेदार हैं। कल  वे प्रधानमंत्री भी बनेंगे। उनके लिए कोई भी सिर झुकाकर अपनी जगह छोड़ देगा।
लेकिन राहुल कहते हैं कि उनका ध्यान सिर्फ पार्टी का संगठन मजबूत करने पर है। इसलिए वे उपी,तमिलनाडु के भ्रमण पर हैं क्योंकि वहां भी विधान सभा चुनाव की सरगर्मियां तेज होने वाली है। बिहार में भी उन्होंने पूरा जोर लगाया लेकिन वहां कोई चमत्कार नहीं हुआ।
देश की जनता महंगाई और भ्रष्टाचार से त्रस्त है। लेकिन सरकार पकड़ होने के बाद भी राहुल गांधी कुछ भी नहीं कर रहे हैं। वे ज्यादातर प्रासंगिक मसले पर अपनी राय नहीं देते। इसबार एक बेतुका सा बयान दे दिया कि महंगाई के लिए गठबंधन सरकार जिम्मेदार है।
चलिए अगर इसको मान भी लें तो इसका मतलब है कि राहुल गांधी यह मानते हैं कि जनता महंगाई से त्रस्त है तो है इसके लिए वे खुद ही जिम्मेदार है । लेकिन जब राहुल गठबंधन की राजनीति के कारण कुछ नहीं कर पा रहे हैं तो वे जबर्दस्ती सरकार क्यों चला रहे हैं। क्या राहुल गांधी की यह सत्ता लोलुपता नहीं है ?
वे अपनी मर्जी से मंत्री बनवा पा रहे हैं , अपने प्रवक्ताओं को अगंभीर बयानों के बचाव में लगा रहें हैं । लेकिन जब बात राष्ट्रीय मुद्दों की आती है तो वे चुप हो जाते हैं या यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि सबकुछ गठबंधन सरकार की वजह से हो रही है।
भगवा आतंकवाद पर वे देश में ही नहीं विदेशियों से भी चिंता जाहिर कर सकते हैं लेकिन आम जनता से जुड़े मसले पर अनुभवहिनता का ढाल ओढ लेते हैं ।
युवाओं से राजनीति में आने की अपील करने वाले राहुल गांधी के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि देश जिन समस्याओं से दो चार हो रहा है उससे कैसे निपटा जाए।
राहुल देश का भ्रमण तो कर रहे हैं लेकिन यात्राएं निहायत ही राजनीतिक हैं। महंगाई और भ्रष्टाचार से जनता त्रस्त हैं लेकिन देश के भावी प्रधानमंत्री युवाओं से राजनीति (कांग्रेस का वोटर बनने ) में आने की अपील करने में लगे हैं ।
जिस अधिकार से राहुल कहते हैं कि देश के युवा राजनीति में आएं, तो यह उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वे बिगड़ेत हालात में, जब प्रधानमंत्री भी महंगाई की समस्या का हल नहीं निकाल पा रहे हैं तो राहुल को सीधे हस्तक्षेप करें ।
आखिर राहुल गांधी को देश की राजनीतिक हालात को समझने के लिए और कितना वक्त चाहिए। सांप्रदायिक मुद्दों पर बेबाक राय देने वाले राहुल गरीब जनता से जुडे मसलों पर भी कब अपनी राय देगें?  वे भी अन्य कांग्रेसी नेताओं की तरह आरोप लगाने की राजनीति ही कर रहे हैं। कांग्रेस का युवराद यह कहकर संतुष्ट हो जाता है कि आपके (भाजपा) समय भूख से 500 मरे थे हमारे समय 400 ही मरे हैं । फिर राहुल और अन्यों की मानसिकता में क्या फर्क है ?
इतिहास गवाह है भारत की जनता की मार में आवाज नहीं होती लेकिन उसका असर बड़ा गहरा होता है। हां, यह जरूर है आम जनता अपने नेताओं को समझने में थोड़ समय लेती है लेकिन उसे बेवकूफ समझने वाले आज क्या कर रहे हैं इसके लिए ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है । बिहार चुनाव अभी अभी खत्म हुआ है। राहुल गांधी भी इस बात को समझ जायें।

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