अनिल पाण्डेय
उनकी इस बात से उनकी ही पार्टी के लोग इत्तेफाक नहीं रखते और जेपीसी से कम किसी भी जांच पर समझौता नहीं करना चाहते। ज्ञात हो कि लोकलेखा समिति केवल खातों सम्बंधित जांच कर सकती है और महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट से आगे इसका कोई दायरा भी नहीं है। और इसके जांच के अधिकार सीमित हैं, जबकि संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) शासकीय और ज़वाबदेही के लिए किसी को भी कटघरे में खड़ा कर सकती है।
इन जांच के विवादों से मुरली मनोहर जोशी अपनी पार्टी के अन्दर वैसे ही अलग थलग पड़ गए हैं, जैसे पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी परमाणु करार के मुद्दे पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) में पड़ गए थे। यह दीगर बात है कि इसके लिए चटर्जी को बाद में माकपा से निष्कासित कर दिया गया था।
जहाँ देश 2जी स्पेक्ट्रम, राष्ट्रमंडल खेलो और आदर्श हाउसिंग सोसाइटी में हुए भारी भ्रष्टाचार की विभीषिका को झेल रहा है, वहीं देश के राजनितिक दल इन घोटालो पर अपनी राजनितिक रोटियां सेकने से बाज़ नहीं आ रहे।
जहाँ खेलो के दौरान खेल अधिकारी और उससे जुड़े मंत्री व अन्य लोग एक दुसरे की महिमा मंडन करने से नहीं चूक रहे थे, वहीं अब इन खेलों के पीछे खेले जा रहे भ्रष्टाचार के खेलों का उजागर हुआ है तब वही मंत्री और अधिकारी एक दुसरे को एक दुसरे से ज्यादा भ्रष्ट बताने में लगे हुए हैं।
यह एक विडम्बना है कि इस भारी भ्रष्टाचार में लोकतंत्र के चारो स्तंभ न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और पत्रकारिता सभी लिप्त पाए गए हैं। अब इसमे देखना है कि जिस पीएसी कि जांच को कांग्रेस न्यायिक और उचित बता रही है, वहीं इसके अधिकार छेत्र भी सीमित हैं।
विदित हो कि जेपीसी की जांच को राजनितिक जांच करार देने वाली कांग्रेस को ये बात भली भांति पता है कि अगर जेपीसी गठित होती है, तब भ्रष्टाचार में लिप्त दोषियों कि संख्या भी बढ़ेगी और कई नए चहरे बेनकाब होगें, जो कि संप्रग सरकार को कत्तई गंवारा नहीं है।
अब देखना ये है कि साल 2010 में उजागर हुए इन महाघोटालों में लिप्त दोषियों को सजा मिलती है, या फिर देश में हुए पिछले घोटालों के ऊपर एक जांच कमिटी बनाकर मामले को रफा दफा कर दिया जाएगा।
वैसे भी इस देश के लोंगो कि याददाश्त बहुत कम है, हर एक भ्रष्टाचार के मामले के खुलासे के बाद एक नयी भ्रष्टाचार की कड़ी जुड़ जाती है और लोग पिछली बातों को भूल नए खुलासे में उलझ जाते हैं। वज़ह भी है, क्योँकी हमारे देश में होने वाले ये नए भ्रष्टाचार के खुलासे सुरसा के मुंह की तरह ही बढ़ते जाते हैं। ऐसे में देश के विकास की बाते करती ये राजनितिक दल कहाँ तक सही है ये समझाना बहुत ही आसान है।
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