Sunday, November 21, 2010

आरटीआई सूचना का अधिकार कितना उपयोग कितना दूरूपयोग

वैसे तो मनुष्य पैदा होते ही हजारों अधिकार लेकर पैदा होता है, लेकिन युवा होने तक कई सैकड़ों अधिकारों का हकदार बन जाता है। यही कारण है कि आज देश भर में अपने हकों और अधिकारों को लेकर लड़ाई झगड़ा सम्प्रदायिक दंगें व आतंकवाद जैसे राक्षषों ने जन्म ले लिया है। इन के साथ—साथ सुचना का अधिकार भी शामिल हो गया है, लेकिन जिस अधिकार को लेकर आज हर कोई सर उठाए खड़ा है कि अधिकार आखिर क्या चीज है अधिकार किसे कहते है। आज घर मकान जमीन से लेकर देश प्रांतों को लेकर अपना अधिकार जताते हुए मांग करते हुए नजर आते है। मनुष्य जरा सा भी नहीं सोचता की जिस देश को हम अपना अधिकार जताते है अपना गुलाम बनाना चाहते है क्या यहीं सब करना मनुष्य का अधिकार है।
यदि इन बातों को छोड़ कर बात आज की यानी बीसवीं सताब्दी की करे तो आज मनुष्य के हाथ जिस का नाम (आरटीआई) सुचना का अधिकार जैसा हथियार हाथ लग गया है जो सिधा—सिधा ब्रह्म अस्त्र सावित हो रहा है। वैसे तो भारत देश में लोकतंत्र आजादी से पहले से ही जन्म ले चुका है आज 63 वर्ष के बाद भी आजादी का जश्र तो हर वर्ष मनाते है, लेकिन असली आजादी को लेकर कोई भी जानने की जहमत नहीं उठाता हर नागरिक अपने आप को स्वतंत्र भारतीय कहता है, लेकिन हम 70-75 वर्ष पहले के देखों तो हर व्यक्ति अपने अधिकार को एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में सौप दिया था जिसे हम राजा कहते थे। उस समय भी मानव आजाद तो था स्वतंत्र तो था, लेकिन अपने राजा के आगे उसे अपने हक व अधिकार का उपयोग करना मना ही था, लेकिन अंग्रेजों के आने के बाद देश की शासन व प्रशासन प्रणाली वैसी नहीं रही और अंग्रेजों के भारत से जाने के बाद देश की शासन व प्रशासन प्रणाली बदल गए। ठिक उसी तरह 12 अक्तुबर 2005 को देश के हर व्यक्ति को मानव अधिकार प्राप्त हुआ जिसका नाम सूचना का अधिकार (आरटीआई) प्राप्त हुआ है। इस अधिकार के प्राप्त होते ही देश में एक नए लोकतंत्र का उदय हुआ।
सूचना के अधिकार के माध्यम से देश के हर नागरिक को देश व प्रदेशों के शासन व प्रशासन से उसके कार्य को लेकर व नागरिक से जुड़े हर पहलुओं के बारे में सवाल करने के लिए नई लोकतंत्र भूमिका में ला खड़ा कर दिया है। इस सूचना के अधिकार के तहत देश के नागरिक को अपने प्रलंबित कामों के लिए सरकारी दफ्तरी बाबूओं के आगे गिड़गिड़ाने की आवश्यकता नहीं रही। अगर आप का काम नहीं हुआ तो आप सरकारी कर्मचारी व बड़े अधिकारी तक को अपने सवालों के घेरे में लेकर उनकी वाट लगा सकता है कि आपने मेरा काम क्यों नहीं किया था। इस बात को कहने में भी संकोच नहीं रहा की आप को महीने भर की पगार किस काम की दी जाती है। यहीं सूचना का अधिकार बह्म अस्त्र बन कर हर नागरिक के हाथ मे लगा है जिसके आगे हर कोई नतमस्तक है।
लेकिन यह कानून लागू क्यों हुआ आज कई लोगों के दिमाग को यह बात सून्न कर चुकी है। मगर सूचना का अधिकार तो देश में भ्रष्टाचार को खत्म करने में का नाम है। इस भ्रष्टाचार नामक दीमक को नष्ट करना है जो कि देश की जड़ों में लग चुकी है और हर साख तक पहुंचने की कोशिश कर रही है। वैसे तो विश्व में स्विडन विश्व का पहला देश है जिसने 240 वर्ष पहले सूचना का अधिकार लागू किया था। वहीं पर 1766 को (फ्रिडम ऑफ प्रैस) एक्ट पारित हुआ था। उसके बाद फिन लैंड में 1959 को कानून के रूप में सूचना का अधिकार लागू हुआ। उसके बाद अमेरिका में 1966 में कानून लागू हुआ। इसी तरह हर दो—तीन वर्षों के बाद विदेशों में ऑस्ट्रैलिया, कनेड़ा, न्यूजिलैंड आदी देशों में सूचना का अधिकार लागू हुआ था।
लेकिन भारत में सिर्फ राजस्थान पहला राज्य है जिसने सूचना का अधिकार लागू करने की कोशिश की। यहां पर मजदूर संगठनों ने मिल कर जोरों शोर से आंदोलन किया और देश में पहला कानून सूचना का अधिकार राजस्थान की वजाय तामिलनाडू में 17 अप्रैल 1997 को लागू हुआ। इस तीन महीने के बाद गोवा में उसके बाद मध्य प्रदेश में व 2000 को कर्नाटक में व दिल्ली में 2001, महाराष्ट्र में 2002 को लागू हुआ। यह कानून बनाने के लिए राजस्थान से (निखिल डे), दिल्ली से (अरविंद केजरीवाल), महाराष्ट्र के अन्ना हजारे ने वहुत बड़ा योगदान दिया इसके बाद केंद्र सरकार ने पुरे देश भर में 12 अक्तुबर 2005 को यह कानून सूचना का अधिकार लागू कर दिया। इस कानून को लागू होते ही कई शहरों व विभागों में हड़कंप मच गया। कुछ लोगों के खुशी से चेहरे लाल हो गए, लेकिन आरटीआई है क्या इसका इस्तेमाल कैसे किया जाए अभी तक पुरी तरह से भी मालूम नहीं था। मगर फिर भी देश के हर एक व्यक्ति को इसकी परिभाषा का ज्ञान एक दूसरे के माध्यम से हो रहा है, लेकिन आज देश में कई बड़े शहरों में आरटीआई सूचना का अधिकार के नाम से संगठन व बड़े कलव कई समूह बन चुके है। जिन के माध्यम से नागरिकों को सूचना का अधिकार का सही उपयोग बताया जा रहा है। मगर इसका सही उपयोग कुछ ही प्रतिशत हो रहा है। कुछ लोगों की सोच तो बिल्कुल इस कानून के बिपरीत होती नजर आ रही है।
क्योंकि अगर अपने विभाग में किसी कर्मचारि की अपने अधिकारी से अच्छी बनती है या फिर अधिकारी का किसी मसहुर नेता से अच्छे संबंध है उसके यहां आना जाना है तो उसी विभाग का कोई कर्मचारी झट से आरटीआई आवेदक के पास पहुंच जाता है और अपनी विभाग की कई जानकारियों देते हुए विभाग में कर्मचारी अधिकारी या विभाग से कई जुड़ी जानकारियां प्राप्त करने के लिए सूचना के अधिकार के माध्यम से प्राप्त करने के लिए आवेदन करबाता है और फिर जब तक उस विभाग से जानकारी नहीं आ जाती तब तक वह कर्मचारी की आंखें विभाग की हर कर्मचारी की हर्कतों पर गड़ी रहती है। अपने कार्य के तरफ कम और दूसरे की हरकतों पर ज्यादा ध्यान रहता है ऐसा क्यों? शायद इसी लिए की जिस कर्मचारी के माध्यम से सूचना का अधिकार प्राप्त सूचना मिली है उस कर्मचारी को उसके हक अधिकार की सही कीमत नहीं मिली होगी। या फिर विभाग में जितना पैसा आया था उसमें से कुछ प्रतिशत हिस्सा बड़े अधिकारी ने अपने हित के लिए खर्च कर लिया होगा और जिसका बटवारा वहीं कर्मचारी चाहता है जिसने आरटीआई के माध्यम से जानकारी लेने के लिए आवेदक करवाया है। वह अधिकारी वाट लग गई। ऐसे ही कई मामले बड़े देशों से लेकर छोटे शहरों तथा गांव में सामने आ रहे है। कई विभागों व संस्थाओं की सूचना प्राप्त करने के बाद कुछ भी घोटाला या भ्रष्टाचार जैसा सावित कुछ भी नहीं होता। मगर विभाग की 15 से 20 दिनों तक उठ वैठ हो जाती है। अगर विभाग का कोई अधिकारी व कर्मचारी यह कहता है कि 15 से 30 दिन के अंदर पूरे 4—5 सालों को खाका तैयार करते—करते थक गए है तो उन्हें जबाव आता है कि आप पैसे किस बात के लेते है। आप को महीने भर की तनखवा किस काम की दी जाती है।
आज देश में ग्रामीण रोजगार के तहत देश के देहाती बड़े — छोटे शहरों व गांव में नरेगा का कार्य जोरों सोर से चला है और इसका फायदा गांव में रहने वाले कई प्रतिशत लोगों को हुआ हैं। जिससे रोजगार भी मिला धन भी मिला साथ ही साथ अपने ही गांव में पानी, स्कूल तथा सड़कों का कई प्रकार से विकास हुआ। नरेगा के तहत जो लोग रोजगार कमाने के लिए घर से वाहर जाते थे उन्हें घर पर ही रोजगार मिल रहा है। इस कार्य में सबसे ज्यादा महिलाएं आगे आई हैं। जिन महिलाओं ने कभी रुपयों को अपने हाथ में पकड़ कर ठीक ढंग से नहीं देखा था उन्होंने भी धन राशि एकत्रित करना सीख लिया है, लेकिन नरेगा में जितना ज्यादा धन और रोजगार है इसमें उतना ही भ्रष्टाचार भी पनप रहा है। आज आरटीआई के तहत नरेगा में हुई धांधलियों का परदाफास तो हुआ है साथ ही साथ कई पंचायति कर्मचारियों के साथ साथ प्रधानों को भी भ्रष्टाचार में संलिप्त पाए जाने पर उन्हें अपनी नोकरियों से हाथ धोना पड़ा है। आज हालात यह है कि किसी गांव का प्रधान नरेगा में घोटाला करता है तो इस बात का शक गांव के ही किसी व्यक्ति को हो जाता है तो वह पहले प्रधान से सांठगांठ करता है और जब उन्हें लगता है कि प्रधान उसकी बातों में नहीं आ रहा हैं तो उसकी आरटीआई डालने के बारे में सोचता है। भले ही आरटीआई की जानकारी ना हो फिर भी जहां तक उसकी सोच है प्रधान की कार्य की जानकारी प्राप्त करता और किसी आरटीआई आवेदक के नाम से जानकारी प्राप्त करता है और उसके हाथ प्रधान का घोटाला लग जाता है बस फिर क्या प्रधान के पास खबर पहुंच जाती है कि प्रधान के नाम की जानकारी किस व्यक्ति के हाथ लगी है फिर शुरू हो जाती है आरटीआई दवाने की बात। ले दे कर दोनों के बीच सौदा तय हो जाता है और आरटीआई का नाम खत्म हो जाता है और प्रधान के घोटाले को बड़े अधिकारी तक पहुंचने से पहले तक दवा दिया जाता है। इसी तरह से आरटीआई के माध्यम से कई लोगों ने अपनी दुकान चला रखी है जो कि बिल्कुल गलत है।
बहुत से आरटीआई आवेदक इसकी सही जानकारी प्राप्त कर के दूसरे लोगों को भी जानकारी देने के वजाय इसका उपयोग भ्रष्टाचार फैलाने में कर रहे है। आज देश में सौकड़ों विभाग ऐसे है जिनकी कार्यशौली पर किसी ने भी आज तक आंख तक नहीं उठाई है और इस विभागों में भ्रष्टाचार की गारंटी भी कोई नहीं है हुआ है या नहीं, लेकिन कुछ लोग आरटीआई के माध्यम से विभागों की जानकारी प्राप्त कर के पकड़ेे जाने पर बड़े अधिकारी से सांठगांठ कर के भ्रष्टाचार के ऊपर पड़े परदे को उठाने के वजाय भ्रष्टाचार पर और परदा डाल रहे है। यह आरटीआई का उपयोग है या दुरूपयोग इस बात को भलीभांति जाना जा सकता है।
आज ज्यादातर लोग आरटीआई का उपयोग अपनी पैंशन, ऐरियर, प्रोमोशन या अपनी महीने भर के पगार को बड़ाने के लिए इस्तेमाल कर रहे है। यह बात भी आरटीआई का उपयोग नहीं बताती है आरटीआई अपने हित के साथ—साथ जनता के कार्य व हित में उपयोग में लाने वाले कानून का नाम है ना कि अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए। आरटीआई के माध्यम से हम अपने गांव या शहर में आने वाले पैसों का सही उपयोग हो रहा है या नहीं यह धन राशि जनता के कार्य में लग रही है कि नहीं की जानकारी सूचना के अधिकार के माध्यम से ले सकते है तथा किसी भी विभाग में घोटाला और भ्रष्टाचार हो रहा है तो उसको भी खत्म करने में आरटीआई सक्ष्म है। आज देश में आरटीआई के माध्यम से सैकड़ों हजारों लोगों के साथ—साथ विभागों और प्रशासन को भी फायदा हुआ हैं। विभागों में बैठे हुए कई भ्रष्ट कर्मचारियों को भी आरटीआई की माध्यम से ही पकड़ा गया है। आज देश के जरूरतमंदों को अनाज, मकान व रोगजार तक आरटीआई के माध्यम से ही प्राप्त हुआ है। कई जगह पर तो आरटीआई के माध्यम से नई कानून तक बन चुके है। कई गांव को अपना अधिकार मिला है इन गांव में वर्षों से रूकी हुई कई योजना को भी आरटीआई के माध्यम से नया रूप मिला है, लेकिन भ्रष्टार की दिमक अभी भी कई विभागों में सरकारी धन व जनता के अधिकारों को चाटने में लगी हुई है। जिसको बाहर निकाल कर फेकना अति आवश्यक है। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब भारत का हर नागरिक रो उठेगा और मुंह से एक आवाज निकलेगी की फिर गुलामी आ गए। आज अगर केंद्र सरकर हो या केंद्र प्रशासन के माध्यम से आरटीआई का कानून देश के हर नागरिक को प्राप्त हुआ है तो उसे देश के हर नागरिक को सोचना चाहिए यह उसे प्राप्त सरकार के माध्यम से कानून ही नहीं बल्कि भ्रष्टाचार को रोकने के लिए व्रह्मास्त्र हाथ लगे है। यह कार्य आरटीआई क्लॉब या आरटीआई आवेदक का नहीं बल्कि हर नागरिक का है और देश का हर नागरिक आरटीआई आवेदक बन सकता है। जिस कारण आरटीआई के माध्यम से भ्रष्टाचार की दिमक को बाहर निकालकर फेंका जा सकता है। बसर्ते आरटीआई की सही जानकारी व उपयोग होना चाहिए।total state

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