धर्मनगरी के नाम से भी विख्यात कुरुक्षेत्र के 48 कोस के क्षेत्र में विभिन्न मंदिर स्थित है, जो काफी प्रसिद्ध है। इन्हीं मंदिरों में श्रीदेवीकूप (भद्रकाली )मंदिर मां सती के बावन शक्तिपीठों में शोभायान है। यहां प्रत्येक शनिवार व नवरात्र महोत्सव में श्रद्धालुओं की इम्तिहां भीड़ होती है। शास्त्रानुसार दक्ष यज्ञ में अपने पति भगवान शंकर की निंदा व अपमान देख-सुनकर भगवती सती ने अपने प्राणों को त्याग दिया। भगवान शिव उनके शव को हृदय से लगाए उन्मत्त की भांति ब्राह्मांड का चक्कर लगाने लगे। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से महाशक्ति के निवास स्थान मृत शरीर को बावन भागों में विभाजित कर लोक कल्याण के लिए पावन शक्तिपीठों के रूप में प्रतिष्ठित किया। नैना देवी, कामाख्या देवी, ज्वाला जी इत्यादि सभी बावन शक्तिपीठ मां के प्रिय निवास स्थल हैं। हरियाणा के एकमात्र शक्तिपीठ श्रीदेवीकूप (भद्रकाली) मंदिर का महत्व सर्वविदित है। पावन श्रीदेवीकूप पर स्थित सती जी का दाया चरण (टखना) मंदिर के इतिहास को बार-बार दोहाराता है। तंत्र-चूड़ामणि के अनुसार कुरुक्षेत्र च गुल्फत:। स्थाणुर्नाम च सावित्री।। इसी शक्तिपीठ पर महाभारत युद्ध से पूर्व पांडवों ने विजय कामना के लिए मां काली का पूजा-अर्चन किया। श्रीकृष्ण व श्री बलराम का मुंडन संस्कार भी इसी शक्तिपीठ में हुआ। इस शक्तिपीठ की महिमा अपार है।
कुरुक्षेत्रे परो गुल्फ
सावित्री स्थाणु भैरवम्।
गत्वा सुशोभते नित्यं
देव्या: पीठो महान्भुवि।।
मां भद्रकाली मंदिर में मां भद्रकाली की शांतस्वरूप व वस्त्राभरणभूषित, चतुर्भुज कृष्णवर्णयुक्त वरमुद्रा में भव्य विलक्षण प्रतिमा सुशोभित है। गणों के रूप में दक्षिणमुखी हनुमान जी, गणेश जी व भैरव जी विराजमान है। ऊपर मंदिर में मां वैष्णो की सौम्य प्रतिमा व पिंडी स्वरूप आदि शक्ति प्रतिष्ठित है। शिव परिवार में अद्भुत शिवलिंग हैं, जिसमें प्राकृतिक रूप से ललाट तिलक एवं सर्पानुभूति होती है। उत्कृष्ट कलात्मक चक्रव्यूह भी बना हुआ है। हजारों वर्षों से मां की सेवा में स्थित वट-वृक्ष के सान्निध्य में बैठकर अनेक संत महात्माओं ने अभीष्ट सिद्धि का लाभ प्राप्त किया है। मंदिर के दक्षिण में एक अत्यंत सुंदर एवं रेलिंगयुक्त पक्का पावन देवी तालाब मंदिर की शोभा बढ़ाता है, जिसके उत्तरी-पश्चिमी किनारों पर सूर्य-यंत्र तथा दक्षेश्वर महादेव का मंदिर है। मां का दिव्य कांतियुक्त, तेजोमय स्वरूप, अखंड प्रज्ज्वलित ज्योति के रूप में सदा-सदा से मुख्य मंदिर में प्रतिष्ठित है, जिसके दर्शन मात्र से भक्तों का कल्याण संभव है। बड़े-बड़े महात्माओं ने इस पावन शक्तिस्थल श्री देवीकूप (भद्रकाली) मंदिर में अराधना करके भगवती की कृपा से अभीष्ट सिद्धियां प्राप्त की है। मां अपने लाड़ले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। आप भी शुद्ध मन से इस शक्तिपीठ पर मां भद्रकाली से प्रार्थना करें। मां आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करेंगी।
मनोकामनां पूर्ण होने पर मां की भेंट में (सोना, चांदी अथवा मिट्टी) का घोड़ा चढ़ाने की ऐतिहासिक प्रथा है। पूजा के लिए नवरात्रों तथा शनिवार का विशेष महत्व है। दानी सज्जनों के सहयोग से यात्रियों के ठहरने के लिए आधुनिक धर्मकक्ष निर्माण किया गया है। मुख्यद्वार तथा रेलिंगयुक्त पक्की सड़क निर्माण से मार्ग सौंदर्यकरण में वृद्धि स्पष्ट दिखाई देती है।
वर्ष 2000 में 108 फीट ऊंचे शिखर का निर्माण करते समय पुरातन मंदिर की नींव से कुछ दुर्लभ कृतियां प्राप्त हुई थी, जो मंदिर में अवलोकन के लिए रखी गई हैं। शक्तिपीठ में नवरात्र महोत्सव के दौरान देश-दुनिया से श्रद्धालु पहुंचते हैं। अभी तक शक्तिपीठ में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, कई मुख्यमंत्री, राज्यपाल व केंद्रीय मंत्रियों, आलाधिकारियों सहित देश-विदेश की कई विभूतियां निभा चुके हैं घोड़े अर्पित करने की पंरपरा। पीठाध्यक्ष पंडित सतपाल शर्मा बताते हैं कि सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध में विजयश्री के बाद घोड़े चढ़ाए थे। शक्तिपीठ में और यह उल्लेख पुराणों में मिलता है।
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