Sunday, November 21, 2010

लौटेगा हाकी का स्वर्णिम युग

नई दिल्ली। भारतीय हाकी अभी भले ही बुरे दौर से गुजर रही हो लेकिन पूर्व ओलंपियन ने आशा जताई कि यदि युवा खिलाड़ी कड़ी मेहनत करें और उनके सामने पुराने जमाने के दिग्गजों को प्रेरणा-स्रोत के तौर पर पेश किया जाए तो भारत में राष्ट्रीय खेल का स्वर्णिम युग लौटाने में मदद मिल सकती है।
भारत की 1975 की विश्व कप विजेता टीम के कप्तान अजित पाल सिंह सहित कई पूर्व ओलंपियन ने सोमवार को वरिष्ठ खेल पत्रकार सत्येंद्र पाल सिंह की पुस्तक 'भारतीय हाकी तथा राष्ट्रमंडल खेल' के विमोचन के अवसर पर दद्दा ध्यानचंद, रूप सिंह, बलबीर सिंह सीनियर, लेसली क्लाडियस, से लेकर धनराज पिल्लै जैसे स्टार खिलाडिय़ों को नई पीढ़ी के सामने आदर्श के तौर पर स्थापित करने की जरूरत पर जोर दिया। अजित पाल ने किताब का विमोचन करने के बाद कहा, 'हम हाकी में लगातार पिछड़ते जा रहे हैं और आज सबसे अहम विषय यही है कि हम कैसे फिर से खोया हुआ सम्मान हासिल करें। मुझे लगता है कि मौजूदा दौर के खिलाडिय़ों को कड़ी मेहनत करने की जरूरत है। उन्हें पुराने जमाने के खिलाडिय़ों से सीख लेनी होगी इसलिए उन्हें स्वर्णिम युग के बारे में बताना जरूरी है ताकि वह उससे प्रेरणा ले सकें।' पूर्व भारतीय कप्तान ने आशा जताई कि भारतीय हाकी टीम राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीतने में सफल रहेगी।
उन्होंने कहा, 'राष्ट्रमंडल खेलों में भले ही चोटी की टीमें भाग ले रही हैं लेकिन हमारी टीमों में पोडियम तक पहुंचने का माद्दा है।' इस अवसर पर पूर्व ओलंपियन और कोच जफर इकबाल ने कहा कि भारतीय हाकी को फिर से पटरी पर लाने के लिए गंभीर प्रयास करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, 'आजकल की पीढ़ी पुराने खिलाडिय़ों के बारे में नहीं जानती। इसके लिए प्रयास किए जाने चाहिए। नई पीढ़ी इन खिलाडिय़ों के बारे जानकर इस खेल के प्रति प्रेरित हो सकती है जो कि बहुत जरूरी है।' पूर्व ओलंपियन हरविंदर सिंह ने कहा कि फुटबाल में ब्राजील और क्रिकेट में आस्ट्रेलिया ने भी उतार चढ़ाव देखे हैं। उन्होंने कहा, 'हमने 1968 [मैक्सिको ओलंपिक] में जब कांस्य पदक जीता तो बहुत निराश थे क्योंकि हमें स्वर्ण पदक की आशा थी लेकिन आज हम पदक के लिए भी तरस रहे हैं।'

उन्होंने कहा, 'लेकिन हमें निराश होने की जरूरत नहीं है। कोशिश जारी रखनी चाहिए क्योंकि फुटबाल में ब्राजील और क्रिकेट में आस्ट्रेलिया ने भी उतार चढ़ाव देखे हैं लेकिन उन्होंने प्रयास जारी रखे और आज भी वह इन खेलों में चोटी की टीमों में शामिल हैं।' पूर्व ओलंपियन और कोच एम के कौशिक ने कहा, 'हमें माडर्न हाकी और इसकी जरूरतों को भी समझने की जरूरत है। हाकी में आज पैसा काफी है और युवाओं को इस खेल को अपनाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।' सत्येंद्र पाल सिंह ने हिंदी में लिखी अपनी इस किताब में भारतीय हाकी के इतिहास से लेकर, ओलंपिक, विश्व कप, एशियाई खेल, राष्ट्रमंडल खेल और एशिया कप में भारत के सफर का रोचक वर्णन किया गया है। किताब में अपने जमाने के कुछ दिग्गज खिलाडिय़ों और उनकी खेल शैली का भी विवरण है जबकि महिला हाकी और उसकी खिलाडिय़ों को भी अलग से जगह दी गई है।
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