मेघना
भारतीय संस्कृति में त्योहारों का विशेष महत्व है। त्योहार हमारी धार्मिक व सामाजिक पहचान हैं। भैया दूज का पावन त्योहार भाई-बहन के परस्पर प्रेम तथा स्नेह का प्रतीक है। इसका प्रचलन आदि काल माना जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को दीपावली के बाद भैया दूज पूरे देश में मनाई जाती है। इस दिन बहने अपने भाई को तिलक करके उसके उज्जवल भविष्य व लंबी उम्र की कामना करती हंै। इस पर्व को यम द्वितीया भी कहा जाता है। इस पर्व का मुख्य संबंध यम तथा उनकी बहन यमुना से है।कौन है यम तथा यमुना-
सूर्य भगवान की पत्नि का नाम संज्ञा देवी है। इनकी दो संताने पुत्र यमराज तथा कन्या यमुना हैं। एक बार संज्ञा देवी अपने पति सूर्य की उदीप्त किरणों को सहन न कर सकने के कारण उत्तरी ध्रुव प्रदेश में छाया बनकर रहने चली गईं। उसी छाया से ताप्ती नदी तथा शनिदेव का जन्म हुआ। इधर छाया का व्यवहार यम तथा यमुना से विमाता जैसा था। यम ने खिन्न होकर अपनी अलग यमपुरी बसाई।
यमुना अपने भाई को यमपुरी में पापियों को दंडित करने का कार्य करते देख गोलोक चली आईं, जो कृष्णावतार के समय भी थीं। इसी प्रकार समय व्यतीत होता गया। यम व यमुना लंबे समय तक अलग रहें। यमुना ने कई बार यमराज को अपने घर आने का निमंत्रण दिया। परंतु यम आ न सके। एक दिन यमराज ने अपनी बहन को मिलने का मन बनाया तथा अपने दूतो को भेजकर यमुना जी की खोज करवाई।
फिर गोलोक में विश्राम घाट पर उनका मिलन यमुना जी से हुआ। यमुना ने हर्ष विभोर होकर उनका सम्मान किया। उन्हें नाना प्रकार के भोजन करवाए। तब यम ने प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा। यमुना बोलीं- 'भैया, मैं आपसे यह वरदान चाहती हूं कि जो नर-नारी मेरे जल में स्नान करें उसे यमपुरी न जाना पड़े।Ó यमराज असमजंस में पड़ गए। चूंकि इस प्रकार तो यमपुरी का आसित्व ही समाप्त हो जाता।
भाई को धर्मसंकट में देख यमुना पुन: बोलीं- 'आप चिंता न करें। मुझे यह वरदान दीजिए कि जो लोग आज के दिन मथुरा नगरी में विश्राम घाट पर यमुना स्नान करें तथा अपनी बहन के घर भोजन करें, वे तुम्हारे लोक को न जाएं।Ó यमराज ने यमुना के वचन सुनकर 'तथास्तुÓ कह दिया। तभी से भैया दूज का त्योहार मनाया जाता है।
भैयादूज व राजा बलि
जब भगवान विष्णु ने राजा बलि को वामन रूप में पाताल में भेजा था, तब वामन भगवान ने राजा बलि को वरदान दिया था कि वह पाताल में राजा बलि के पहरेदार बन कर रहेंगे। अब वरदान के लिए भगवान को भी पाताल जाना पड़ा। भैया दूज के दिन लक्ष्मी जी ने एक गऱीब औरत का वेष बनाकर राजा बलि को भाई बनाने का आग्रह किया।
जिसे बलि ने स्वीकार कर लिया। लक्ष्मी जी ने बलि को तिलक लगाकर पूजा की। जब बलि ने उनसे वरदान मांगने को कहा, तो लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को आज़द करने का वरदान मांग लिया।
भैया दूज व श्रीकृष्ण-सुभद्रा-
द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने तारकासुर का वध किया। वध करने के बाद वह सीधे अपनी बहन सुभद्रा के घर गए थे। सुभद्रा ने घर आए श्रीकृष्ण का मिठाई व फूलों से ख़ूब स्वागत किया। तबसे यह त्योहार भैया दूज के रूप में मनाया जाता है।
कैसे करें भैया पूजन
भैया दूज वाले दिन आसन पर चावल के घोल से चौक बनाएं। इस चौक पर भाई को बिठाकर बहनें उनके हाथों की पूजा करती हैं। इस पूजा में सबसे पहले भाई की हथेली पर चावलों का घोल लगाती हैं। उसके ऊपर सिंदूर लगाकर फूल, पान, सुपारी तथा मुद्रा आदि हाथों पर रखकर धीरे-धीरे पानी हाथों पर छोड़ते हुए कुछ मंत्र बोलती हैं- 'गंगा पूजा यमुना को, यमी पूजे यमराज को। सुभद्रा पूजे कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे, मेरे भाई आप बढ़ें।Ó
कुछ जगह पर मंत्र बोलकर भी भाई की हथेली की पूजा की जाती है। इस प्रकार के शब्द इस लिए बोले जाते हैं, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि आज के दिन अगर भंयकर पशु भी काट लें, तो यमराज के दूत उसके भाई के प्राण नहीं ले जा सकते।
इसके बाद भाई को तिलक लगाकर कलावा बांधा जाता है। भाई का मुंह मीठा करवाने के लिए माखन मिस्री खिलाया जाता है तथा यमराज के नाम से एक चौमुखा दीपक जलाकर घर की दहलीज़ के बाहर रखा जाता है।
चील दर्शन शुभ
जिस प्रकार विजयदशमी के दिन नीलकंठ तथा पितृपक्ष में काग यानी कौवों का दर्शन शुभ माना जाता है, उसी प्रकार यम द्वितीया के दिन दिखी चील वरदान का पर्याय मानी जाती है। मान्यता है कि चील के दर्शन का तात्पर्य है कि बहन की प्रार्थना स्वीकार कर यमराज ने उसके भाई को अभयदान दे दिया है।
ऐसा माना जाता है कि चील आपकी प्रार्थना को यमराज तक पहुंचा देती है। विशेष रूप से अगर सफेद चील नजर आ जाए, तो इसे परम सौभाग्य की निशानी माना जाता है। गोस्वामी तुलसी दास जी ने रामचरित्र मानस में राम-विवाह के लिए आयोध्या से चलने वाली बारात को मिले शुभ शगुनों में इस शगुन की भी चर्चा की है—क्षेमकरी कह क्षेम विसेसी
यम द्वितीया तथा यमनोत्री
सूर्यपुत्री यमुना का उद्गम स्थल यमुनौत्री हैं, जो केदार खंड उत्तराखंड के चारो धामों में से एक हैं। यमुनौत्री हिमाल्य के विशाल शिखर के पश्चिम में समुद्री तट से 3185 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। यमुना जी का अद्गम स्थल यमुनौत्री से 6 किलोमीटर ऊपर कालिंदी पर्वत पर है। कालिंदी पर्वत की गोद में यमुना जी शैशव रूप में बहती हैं।
यमुनौत्री के कपाट वैशाख के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को खुलते हैं तथा कार्तिक मास में भैया दूज के दिन बंद हो जाते हैं। शीतकाल में 6 महीने खरसाली के पंडे यमुना जी की पूजा अपने गांव में ही करते हैं। यहीं पर असित मुनि ने तप किया था। वह अपनी अध्यात्मिक व मानसिक शक्ति के बल पर प्रतिदिन गंगौत्री तथा यमुनौत्री में स्नान करके लौट जाया करते थे। गंगा, यमुना जी की सौतेली बहन हैं तथा दोनों को हमारी संस्कृति में माता का दर्जा प्राप्त है।
भैयादूज पर चित्रगुप्त पूजन
पौराणिक आख्यान के अनुसार चित्रगुप्त जी की उत्पति ब्रह्मजी से हुई। सृष्टि रचना के बाद ब्रह्मा जी ने जब धर्मराज को धर्मप्रदान मानकर जीवों के शुभाशुभ कार्यो का न्याय कर योग्य फल देने का अधिकार दिया।
तब धर्मराज ने इस कठिन कार्य को करने के लिए प्रार्थना कर ऐसे सहायक की मांग की, जो न्यायी, बुद्धिमान, चरित्रवान व लेखा कर्य में विज्ञ हो। ब्रह्मा जी के शरीर से हाथ में क़लम-दवात लिए विलक्ष्ण तेजस्वी पुरुष की उत्पत्ति हुई। तब ब्रह्मा जी ने कहा- 'तुम मेरे चित में गुप्त रूप से रहे हो। अत: तुम्हारा नाम चित्रगुप्त है। तुम धर्मराज की सहायता करो। तबसे चित्रगुप्त समस्त प्राणियों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रचाते हैं। भैया दूज के दिन चित्रगुप्त का पूजन क़लम-दवात सहित किया जाता है। ब्रह्म जी की काया से उत्पन्न होने के कारण इन्हें कायस्थ भी कहा जाता है।
भैयादूज का महत्व
कलियुग के प्रभाव से आज पारिवारिक रिश्तों में मिठास कम होती जा रही है। हमारे महर्षियों को कलियुग के इस प्रभाव का पहले ही अहसास था। अत: पर्व व त्योहारों के रूप में ऐसे उपक्रमों का प्रयोजन किया गया, जिससे आपसी सद्भाव बढ़े। दूरियां कम हों तथा इसके लिए निरंतर प्रयास होता रहे। भैया दूज भी पारिवारिक व सामाजिक दूरियां कम करने का माध्यम है। जिनकी बहन या भाई नहीं होता, वे किसी अन्य प्रियजन को भाई अथवा बहन मान कर पूजन करते हैं। इससे समाज में स्वच्छ सद्भावना का माहौल तैयार होता है। नैतिक मूल्यों में बढ़ौतरी होती है।
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