Monday, November 29, 2010

संस्थाये पहुचा रही बाढ से ग्रस्त लोगों तक आपदा राहत सामग्री

संजय बंसल हरिद्वार

हरिद्वार मे आयी बाढ से ग्रस्त लोगों तक जहां प्रशासन की मदद नही पहुंच पा रही है वहां पर मदद कुछ संस्थाये पहुचा रही है।जिनमे आज एच.ई.एल.वर्कर्स एसोसियेशन(एटक) व सी.एफ.एफ.पी इम्प्लोयी एसोसियेशन (एटक) तथा बी.एस.एन.एल.इम्प्लोईज यूनियन, के साथ भेल ठेकेदार , कल्याण एसोसिऐशन , आई.टी.सी. कर्मचारी महासंघ(सिडकुल) , अखिल भारतीय भेल ट्रेड युनियन फैडरेशन(एटक) ने मिलकर बैरागी कैम्प बस्ती हरिद्वार मे बाढ़ पीडितों को खाद्य सामग्री बांटने के लिए गये। वहां उन्होने बस्ती के सभी बाढ़ पीडित सदस्यो के प्रति अपनी हार्दिक सहानुभूति और संवेदना व्यक्त की। उन्होने बाढ पीडितों को से कहा कि आप लोग असंगठित क्षेत्र के सबसे शोषित और पीडित मजदूर हैं और मजदूर- मजदूर भाई-भाई के नाते ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी यथाशक्ति सामर्थ्य के साथ इस दुःःख की घडी में आपकी मदद करे ताकि आपके कष्ट को हम कुछ कम कर सकें। सभी यूनियनो के सदस्यो ने मिलकर बाढ़ पीडितो के परिवारो के सदस्यो को आटा, चावल,दाल चीनी चायपत्ती , तेल , नमक , व कपडा आदि सामग्री बांटी। इस बाढ़ राहत आपदा से पीडित लोगों की सहायता के लिये एच.ई.एल.वर्कर्स एसोसियेशन(एटक) से का0 एम .एस.त्यागी , अघ्याक्ष , का0 सुभाष त्यागी , कार्यवाहक अघ्यक्ष , रईश आलम , महामंत्री , इकबाल हादी उपाध्यक्ष , सी.एफ.एफ.पी इम्प्लोयी एसोसियेशन (एटक) से का0 ए.के.दास , कार्यवाहक अध्यक्ष , का0 मुनरिका यादव , वरिष्ठ उपाध्यक्ष , के.के.लाल , उपाध्यक्ष , बी.एस.एन.एल.इम्प्लोईज यूनियन से का0 एम.पी.सिंह चौहान, जिला अध्यक्ष , एस.सी.काला , जिलामंत्री , जयपाल सिंह , शाखा अध्यक्ष , मदन सिंह नेगी , शाखा मंत्री , बी.एस.एन.एल.आँफीसर्स यूनियन से खजान सिंह , विनय कुमार , भेल ठेकेदार , कल्याण एसोसिऐशन , रविश कुमार , अध्यक्ष , जीशान अहमद , महामंत्री , राजेन्द्र कुमार , डी.के. गुप्ता , आई.टी.सी. कर्मचारी महासंघ(सिडकुल), से असवनी कुमार , अध्यक्ष , राकेश कुमार , त्रिलोक , संतोष कुमार , अखिल भारतीय भेल ट्रेड युनियन फैडरेशन(एटक) का0 के.पी.सिंह , कोषाध्यक्ष , का0 मनमोहन सिंह , आदि ने आपदा राहत सामग्री को पहुचायां और उन्हें आश्वस्त किया कि स्थानीय प्रशासन व सरकार के द्वारा भी प्रयास करेंगें कि वे आपके घरो को नुकसान हुआ है उसकी भरपाई की जा सके। इस कार्य को सफल बनाने में अन्य प्रमुख लोगो मे का0 डी.के. सक्सैना प्रदेश अध्यक्ष (एटक) का0 जगमोहन सिंह बिष्ट उपाध्यक्ष (एटक हीप) , प्रदीप कुमार (जी.एम. बीएसएनएल), दीपक कुमार (डी.जी एम. बीएसएनएल) , राजेश धीमान आदि थे।





Friday, November 26, 2010

अतीत की आतंकी आहट

विदेशी मदद के जरिए पंजाब के युवाओं का आक्रोश भड़काकर आतंकवाद और खालिस्तान की मांग दोबारा जिंदा करने की कोशिशें हो रही हैं, बृजेश पांडे की रिपोर्ट

अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के पास लगी दुकानों में रोज की तरह आज भी काफी हलचल है. यहां सिख धर्म से जुड़े प्रतीकों और धार्मिक साहित्य की बिक्री होती है. बाकियों के मुकाबले दुकान नंबर 31 में लोगों की आवाजाही ज्यादा है. यहां खास तौर पर खालिस्तान आंदोलन के अगुआ और 1984 के ऑपरेशन ब्लूस्टार में मारे गए आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले से जुड़ी सीडी, किताबें, पोस्टर, कैलेंडर, टीशर्ट और स्टीकर मिलते हैं. दिलबाग सिंह की इस दुकान पर हम करीब एक घंटे तक खड़े रहते हैं और इस दौरान हमें दुकान पर आने वालों से दो सवाल बार-बार सुनने को मिलते हैं. 84 की सीडी हैंगा सी? और बाबा का पोस्टर देना.
आतंकियों के लिए दक्षिण-पूर्व एशिया के देश नई पनाहगाह बन रहे हैं जहां वे आसानी से घुसकर पाकिस्तान चले जाते हैं
पवन सिंह घर में चिपकाने के लिए एक पोस्टर खरीदते हैं. एक पोस्टर उनकी कार में लगा है. वे गर्व के साथ कहते हैं, बाबा जी हमारे संत हैं. और अगर ये आज होते तो सिखों की इतनी बेकद्री ना होती. इस दुकान से हर महीने भिंडरावाले के तकरीबन 450-500 पोस्टर और सीडी बिकती हैं. दिलबाग का अनुमान है कि पूरे पंजाब के लिए यह आंकड़ा 80-90 हजार होगा. वे कहते हैं, बाकी देश के लिए वे आतंकवादी हो सकते हैं लेकिन हमारे लिए वे पहले एक संत हंै और फिर एक लड़ाका.
दिलबाग की बात को यदि पिछले दिनों संसद में गृह राज्यमंत्री अजय माकन के बयान से जोड़कर देखें तो साफ हो जाता है कि राज्य में आतंकवादी गतिविधियां फिर बढ़ रही हैं. 16 अगस्त को माकन ने संसद में एक लिखित जवाब देते हुए सूचना दी थी,  रिपोट्र्स बताती हैं कि सिख आतंकवादी समूह, खासतौर पर जिनके अड्डे विदेशों में हैं, पंजाब में आतंकवाद को दोबारा जिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं. हम उन पर लगातार नजर रखे हुए हैं...
पिछले दिनों राज्य में हुई कुछ गिरफ्तारियों पर नजर डालें तो यह आशंका और पुष्ट हो जाती है. पिछले साल पंजाब में 15 से ज्यादा आतंकवादियों को गिरफ्तार किया गया. एक आतंकवादी मुंबई से पकड़ा गया था. इनमें से ज्यादातर बब्बर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआई) के सदस्य थे. बीकेआई खालिस्तान आंदोलन का सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन माना जाता है. 1995 में राज्य के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या और 1985 के कनिष्क बम कांड के लिए यही संगठन जिम्मेदार है.
28 जुलाई को बीकेआई के कथित पांच आतंकवादियों की गिरफ्तारी हुई.
18 जुलाई को पुलिस ने बीकेआई के चार आतंकवादियों को उनके कमांडर हरमोहिंदर सिंह के साथ पकड़ा था. हरमोहिंदर लुधियाना के शिंगार सिनेमा बम ब्लास्ट का मास्टरमाइंड था.
26 मार्च को राजपुरा सेक्टर में बीकेआई के तीन सदस्य पकड़े गए.
21 फरवरी को खालिस्तान लिबरेशन फोर्स के दो आतंकवादियों जवीर सिंह और हरवंत सिंह को पकड़ा गया.
28 जून को पटियाला पुलिस ने बीकेआई के पांच लोगों को पकड़ा तो आतंक के अंतर्राष्ट्रीय गठजोड़ की बात सामने आई. पटियाला के एसएसपी रणबीर सिंह खत्रा कहते हैं, इनमें से एक परगट सिंह बम एक्सपर्ट था और मलेशिया में एक साल तक रह चुका था. हमें मिली और खुफिया सूचनाओं के आधार पर इसकी पुष्टि की जा सकती है कि पंजाब में आतंक फैलाने के लिए कनाडा व अमेरिका के कट्टरपंथी गुट और आईएसआई, मलेशिया, सिंगापुर और थाईलैंड की जमीन का इस्तेमाल कर रहे हैं.
आतंकवादियों के लिए दक्षिण-पूर्व एशिया के देश नई पनाहगाह बन रहे हैं. रणबीर इसकी वजह बताते हैं, ये पर्यटक स्थल हैं जहां एशियाई काफी तादाद में रहते हैं. आतंकवादियों के लिए यहां घुसना और वहां से बिना किसी दिक्कत के पाकिस्तान भागना आसान है. प्रशिक्षण के बाद वे इसी तरह आसानी से भारत आ जाते हैं और उन पर कोई शक भी नहीं करता. पंजाब पुलिस के पूर्व प्रमुख केपीएस गिल, जिन्हें राज्य में आतंकवाद के खात्मे का श्रेय दिया जाता है, कहते हैं, हो सकता है कोशिशें अभी बिलकुल शुरुआती स्तर पर हों लेकिन कनाडा, अमेरिका, और कुछेक यूरोपीय देशों में ठिकाना बनाकर बैठे कट्टरपंथी समूह पूरी कोशिश  कर रहे हैं कि पंजाब में आतंक के दौर की वापसी हो जाए.
पंजाब में लगभग डेढ़ दशक से शांति थी. आतंकवादियों की ताजा सुगबुगाहट पर यह सवाल उठना लाजिमी है कि राज्य के युवाओं में दोबारा खालिस्तान आंदोलन की तरफ मुडऩे की आखिर वजह क्या है.  जवाब है उपेक्षा. पंजाब के युवाओं की आकांक्षाओं की लगातार अनदेखी की गई है, खालसा एक्शन कमेटी के संयोजक मोखम सिंह बताते हैं, राज्य और केंद्र दोनों ने पंजाब के युवाओं के सपनों का दमन किया है. राज्य तो बहुत धनी है लेकिन लोग गरीबी में जी रहे हैं. इसलिए उनमें काफी गुस्सा है, इसे कोई नहीं समझ रहा है. यहां रोजगार के मौके नहीं हैं. कुछ नहीं है.
दल खालसा के प्रवक्ता कंवर पाल सिंह कहते हैं, ये बच्चे भावुक हैं, उनकी भावनाएं आहत हैं. उनके मां-बाप, रिश्तेदारों और आम सिखों के साथ जो हुआ, ये उसे देख-सुनकर बड़े हुए हैं. आप एक पीढ़ी को मार देते हैं तो दूसरी आ जाती है. जैसे कश्मीर में हुआ जहां पुरानी पीढ़ी से कमान युवा पीढ़ी ने ले ली है, यहां भी वैसा ही है. राज्य के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी इससे इत्तेफाक रखते हैं. नाम न बतानेे की शर्त पर वे कहते हैं, आतंकी गतिविधियां चलाने वालों के लिए ये युवा, जिनके पास न कोई रोजगार है न भविष्य, आसान शिकार हैं. सीमा से लगती आबादी में तो नशीली दवाओं ने हालात काफी बिगाड़ दिए हैं. आतंकवादी सरगना वहां ऐसे युवाओं की बातें सुनते हैं, उन्हें दिलासा देते हुए कुछ पैसा देते हैं और उनके गुस्से का इस्तेमाल भारत के खिलाफ गतिविधियों के लिए करते हैं.
पंजाब पुलिस से जुड़े सूत्र बताते हैं कि राज्य में आतंकवाद के दोबारा उभार की बात भले ही नजरअंदाज की जा रही हो लेकिन जनवरी, 2004 में फरार हुए आतंकवादी जगतार सिंह हवारा की गतिविधियां सरकार की आंखें खोलने के लिए काफी हैं. भारत में बीकेआई का मुखिया जगतार सिंह चंडीगढ़ की बुड़ैल जेल तोड़कर भागा था. जांच रिपोर्ट बताती है कि इस दौरान उसने भारी मात्रा में असलाह, जिसमें 35 किलो आरडीएक्स सहित कई एके-47 बंदूकें शामिल थीं, जुटा लिया था. यही नहीं, पंजाब में उससे सहानुभूति रखने वाले 100 से ज्यादा लोगों ने असलाह इक_ा करने और उसके रहने-खाने की व्यवस्था करने में मदद की थी. हालांकि जगतार सिंह को 18 महीने बाद पकड़ लिया गया, लेकिन ये जानकारियां चेतावनी के संकेत जैसी तो हैं ही.
खुफिया एजेंसियों से जुड़े सूत्र भी इन मामलों में पाकिस्तान की आईएसआई के हाथ होने की पुष्टि करते हैं. मोखम सिंह बताते हैं, पंजाब में लंबे समय से शांति का माहौल रहा है लेकिन आईएसआई, बीकेआई जैसे समूहों पर दबाव डाल रही है कि वे पंजाब में फिर से अपनी गतिविधियां शुरू करें. आईएसआई कनाडा से इस तरह के दूसरे गुटों के लिए फंड जुटाने का काम कर रही है. मोखम सिंह कहते हैं, 1990 के आसपास आतंकवाद खत्म होने के बाद से कुछ नहीं बदला है. एक लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई लेकिन कोई हल नहीं निकला. सब कुछ वैसा ही है. हम बारूद के ढ़ेर पर बैठे हैं जिसके लिए एक चिंगारी ही काफी होगी.  

सर्वधर्म समभाव के पैरोकार

युगदृष्टा गुरुनानक देव  प्रकाश पर्व पर विशेष 
- प्रीतमसिंह छाबड़ा

आज से 540 वर्ष पूर्व भारत की पावन धरती पर एक युगांतकारी युगदृष्टा, महान दार्शनिक, चिंतक, क्रांतिकारी समाज सुधारक, धर्म एवं नैतिकता के सत्य शाश्वत मूल्यों के प्रखर उपदेशक, निरंकारी ज्योति का सन्? 1469 में दिव्य प्रकाश हुआ। इस दिव्य प्रकाश पुंज का नाम रखा नानक।
नानकजी के भीतर अल्लाह का नूर, ईश्वर की ज्योति को सबसे पहले दायी दौलता, बहन नानकीजी एवं नवाब रायबुलार ने पहचाना। पुरोहित पंडित हरदयाल ने जब उनके दर्शन किए, उसी क्षण भविष्यवाणी कर दी थी कि यह बालक ईश्वरीय ज्योति का साक्षात अलौकिक स्वरूप है। भाई गुरदासजी ने भी बड़े सुंदर शब्दों में उच्चारित किया 'सतिगुरु नानक प्रगटिआ मिटी धुंधु जगि चानणु होआ।
नानकजी बाल्यकाल से संत प्रवृत्ति के थे। उनका मन आध्यात्मिक ज्ञान, साधना एवं लोक कल्याण के चिंतन में डूबा रहता। उन्होंने संसार के कल्याण के लिए ज्ञान साधना द्वारा झूठे धार्मिक उन्माद एवं आडंबरों का विरोध किया। मन की पवित्रता, सदाचार एवं आचरण पर विशेष बल देते हुए एक परमेश्वर की भक्ति का सहज मार्ग सभी प्राणियों के लिए प्रशस्त किया।  
  दुनिया में सभी स्वार्थ के लिए झुकते हैं, परोपकार के लिए नहीं। गुरुदेव स्पष्ट ऐलान करते हैं कि मात्र सिर झुकाने से क्या होगा, जब हृदय अशुद्ध हो, मन में विकार हो, चित में प्रतिशोध हो।  
गुरुनानकजी की सिद्धों से मुलाकात हुई तो सिद्धों ने सवाल किया कि हमारी जाति 'आई है, तुम्हारी जाति कौन-सी है? गुरुदेव ने फरमाया- 'आई पंथी सगल जमाती मनि जीतै जगु जीतु। अर्थात सारे संसार के लोगों को अपनी जमात का समझना, किसी को छोटा या बड़ा न समझना ही हमारा पंथ (जाति) है। श्री गुरुजी ने संस्कारों एवं रूढिय़ों को नए सुसंस्कारित अर्थों में ग्रहण कर उच्च मानवीय मूल्यों की स्थापना की और 'मनि जीतै जगु जीतु का सिद्धांत प्रस्तुत किया।
यह सिद्धांत था मन पर कंट्रोल करने का, क्योंकि मन पर विजय पाकर ही सारी दुनिया पर विजय प्राप्त की जा सकती है। यह जीत तीर-तलवार या बम के गोलों की न होकर सिद्धांतों की जीत होती है और इस जीत के पश्चात मनुष्य जीवनरूपी बाजी जीतकर ही जाता है। जब गुरुजी से प्रश्न किया कि आपकी नजर में हिन्दू बड़ा है या मुसलमान?

कुछ काम भी आई सीबीआई?

(रमन किरपाल की रिपोर्ट; राना अयूब, श्रीकांत एस और अनुकंपा गुप्ता के सहयोग से)50 सवाल जिनके जवाब सीबीआई को देने हैं.सबसे स्वस्थ वे समाज होते हैं जो किसी भी प्रकार की जांच-परख से जरा भी भयभीत नहीं होते, मामलों की तह तक पहुंचना जिनकी मानसिकता का एक हिस्सा होता है और जो इस उद्देश्य की पूर्ति के उपकरणों की व्यवस्था करने से जरा भी नहीं हिचकते. ऐसा ही एक उपकरण केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई है जिसकी स्थापना भ्रष्टाचार और राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के उद्देश्य से 1963 में की गई थी. आज 47 साल के बाद स्थिति जस की तस है. आज के भारत में बदलाव की, सुधार की उम्मीद के हरकारों की बात करें तो इनमें सबसे पहला नाम सीबीआई का होना चाहिए था. इसकी वजह से, जिनमें जरूरी है उनमें भय और हममें न्याय की लड़ाई के प्रति विश्वास का संचार होना चाहिए था.
मगर सीबीआई की वर्तमान स्थिति दोनों में से कुछ भी नहीं कर पाती. वैधानिक रूप से सीबीआई देश के कार्मिक मंत्रालय से संबद्ध संस्था है जो सीधे देश के प्रधानमंत्री के अधीन आती है. इसे अपने कार्य के लिए जरूरी शक्तियां दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना कानून, 1946 के तहत जारी एक प्रस्ताव से मिलती हैं. इसके मुताबिक संघीय क्षेत्र सीधे तौर पर सीबीआई के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. मगर राज्यों में किसी जनसेवक की जांच और उसके ऊपर कार्रवाई के लिए उसे राज्य सरकार की अनुमति की आवश्यकता होती है. यहां तक कि सीबीआई अपने अधीन रहे मामलों को लेकर भी खुदमुख्तार नहीं है. वह अपने आप सर्वोच्च अदालत में विशेष अनुमति याचिका तक दायर नहीं कर सकती. उदाहरण के तौर पर, एक विशेष सीबीआई अदालत ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में लालू प्रसाद यादव को बरी कर दिया. सीबीआई कहती है कि उसके पास उनके खिलाफ तमाम मजबूत साक्ष्य हैं. मगर विधि मंत्रालय ने उसे याचिका दायर करने की अनुमति ही नहीं दी. इसके अलावा सीबीआई संयुक्त सचिव से ऊपर के स्तर के किसी भी सरकारी अधिकारी के खिलाफ जांच की कार्रवाई शुरू नहीं कर सकती. ऐसा करने के लिए उसे केंद्र सरकार की अनुमति की आवश्यकता होती है. वर्तमान में ऐसे कम से कम 30 प्रार्थनापत्र सरकार के पास लंबित पड़े हुए हैं.
यहां तक कि मुकदमा चलाने के लिए भी सीबीआई को केंद्र सरकार का मुंह ताकना पड़ता है. देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी का कोई अधिकारी बिना केंद्र सरकार की अनुमति के देश से बाहर जांच के लिए नहीं जा सकता जबकि आज के वैश्विक गांव वाले वातावरण में कदम-कदम पर ऐसी आवश्यकताएं आन खड़ी होना कोई बड़ी बात नहीं. देश के सबसे चर्चित मामलों में से एक में सीबीआई को ओत्तावियो क्वात्रोची के पीछे जाना था. विधि मंत्रालय ने इस मामले को ही बंद करवा दिया. क्वात्रोची निकल गया.
संभवत: इसी सत्र में लोकसभा सीबीआई की भूमिका पर चर्चा करने वाली है क्योंकि इसके एक सदस्य ने निजी तौर पर ऐसा करने के लिए एक कदम उठाया है. सीबीआई का होना ही कानूनन सही नहीं है. मैं अपने निजी विधेयक के माध्यम से एक बीज बो रहा हूं. हो सकता है कि कुछ सालों में इससे कोई फल निकल आए, कांग्रेस प्रवक्ता और लुधियाना से सांसद मनीष तिवारी कहते हैं. सवाल उठता है कि अपने देश की सर्वोच्च जांच संस्था के नाम पर हम हर तरह की जंजीरों में गले तक जकड़ी, बात-बात पर कभी इस तो कभी उसका मुंह ताकने को मजबूर संस्था को कैसे स्वीकार कर सकते हैं. हम कड़वी लेकिन स्वस्थ लोकतंत्र और समाज के लिए जरूरी सच्चाइयों को घर के पिछवाड़े दफन कर अपने साथ सब-कुछ सही होने की उम्मीदें कैसे पाल सकते हैं? 30 करोड़ की आबादी वाले अमेरिका की संघीय जांच संस्था(एफबीआई) के बजट की तुलना सीबीआई से करने की सोचना भी पाप होगा. वह काफी हद तक स्वतंत्र भी है और इसीलिए दुनिया भर में प्रतिष्ठित है. मगर हमने सीबीआई को, जब कर सकते हैं तब अपने पक्ष में और विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए, किसी लायक नहीं छोड़ा. 50 सवालों के जरिए किया गया तहलका का यह आकलन भी इसी बात की पुष्टि करता है.
50.
गुजरात फर्जी मुठभेड़
सीबीआई ने अभय चुडासमा के खिलाफ मिल रही शिकायतों पर एक लंबे समय तक गौर क्यों नहीं किया?
सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में कथित तौर पर शामिल होने के आरोप में अहमदाबाद के भूतपूर्व डीसीपी (क्राइम ब्रांच) अभय चुडासमा को इस साल अप्रैल में गिरफ्तार किया गया था. एक लंबे समय तक जांच एजेंसी को चुडासमा के खिलाफ शिकायतें मिलती रही थीं मगर वह बैठी रही. चुडासमा पर उद्योगपतियों और बिल्डरों से जबरन-वसूली के लिए एक बहुत बड़़ा रैकेट चलाने, इसके लिए सोहराबुद्दीन को इस्तेमाल करने का आरोप है. 23 जुलाई को सीबीआई ने अहमदाबाद में एक विशेष अदालत में एक आरोप-पत्र दाखिल किया जिसमें चुडासमा समेत कुल 15 लोगों पर अपहरण, आपराधिक षडयंत्र और हत्या जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे. गौरतलब है कि चुडासमा गुजरात के भूतपूर्व गृह राज्यमंत्री अमित शाह के भरोसेमंद पुलिस अफसर थे.
49.
इस पूरे मामले की जांच प्रक्रिया को गुमराह करने वाले पुलिस अफसर गीता जौहरी और ओपी माथुर को न तो हिरासत में लिया गया और न ही उनके बयान दर्ज किए गए, क्यों?
सीबीआई से पहले गुजरात पुलिस का विशेष जांच दल इस मामले की जांच कर रहा था. गीता जौहरी तब राज्य की पुलिस महानिरीक्षक थीं और ओपी माथुर सीआईडी (अपराध) के मुखिया. फिलहाल ये दोनों अफसर संदेह के घेरे में हैं. जौहरी को तो ठीक से जांच न करने के लिए अदालत से फटकार भी पड़ी. अब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके आरोप लगाया है कि सीबीआई उन पर नेताओं का नाम लेने के लिए दबाव डाल रही है.
48.
सोहराबुद्दीन हत्याकांड
सीबीआई ने राजस्थान के पूर्व गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया से गहन पूछताछ क्यों नहीं की जबकि सोहराबुद्दीन हत्याकांड में उनकी कथित संलिप्तता की चर्चा है?
खबरों के मुताबिक सोहराबुद्दीन केस में सीबीआई के अहम गवाह आजम खान ने बताया कि राजस्थान की एक फर्म, राजस्थान मार्बल्स ने सोहराबुद्दीन को खत्म करवाने के लिए गुलाब चंद कटारिया को 10 करोड़ रुपए दिए थे.
47.
क्या हमारी जांच एजेंसी राजनेताओं की मिलीभगत से आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने वाले पुलिस अफसरों पर नकेल कसने में विफल नहीं रही है?
नवंबर, 2005 में हुए सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले का अकेला चश्मदीद गवाह प्रजापति एक मुठभेड़ में करीब एक साल बाद दिसंबर, 2006 में मारा गया था. गुजरात सीआईडी द्वारा अब जाकर इस साल 30 जुलाई को बनासकांठा की एक अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया गया. इसमें तीन आईपीएस अफसर डीजी वंजारा, विपुल अग्रवाल और एमएन दिनेश को मुख्य अभियुक्त ठहराया गया था. वंजारा और दिनेश पिछले तीन साल से पुलिस हिरासत में हैं. राजस्थान कैडर के आईपीएस दिनेश को जब 2007 में गिरफ्तार किया गया तो राजस्थान के तत्कालीन गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया और पुलिस महानिदेशक इस मामले में हस्तक्षेप करने गुजरात तक पहुंच गए थे.
46.
हरेन पंड्या हत्याकांड
सीबीआई अब तक मुफ्ति सुफियान का पता क्यों नहीं लगा पाई है?
गुजरात के पूर्व गृहमंत्री पंड्या की हत्या गन-मैन अशगर अली ने मुफ्ति सुफियान के इशारे पर की थी. आरोप लगे कि इस हत्या के पीछे मोदी और अमित शाह का हाथ था क्योंकि पंड्या ने एलिसब्रिज सीट खाली न करके और 2002 में हुए दंगों की जांच कर रही न्यायाधीशों की एक टीम के सामने उपस्थित होकर मोदी को खुलेआम चुनौती दी थी. उसी समय युवा मुसलमान नेता सुफियान अहमदाबाद की लाल मस्जिद से उत्तेजक भाषण देते हुए कट्टरपंथियों के बीच लोकप्रिय हो रहा था. 2002 के दंगे के बाद वह पहले से भी ज्यादा कट्टरपंथी हो गया था. नमाज खत्म होने के बाद सुफियान अकसर उन्मादी भाषण दिया करता था. कहा जाता है कि उसके तार अहमदाबाद अंडरवल्र्ड से जुड़े थे.
45.
सीबीआई का आरोप पत्र यह क्यों नहीं बताता कि मुठभेड़ के छह दिन बाद सुफियान देश से बाहर भागने में कैसे सफल हो गया?
44.
मामले की जांच कर रहे अफसरों के तबादले में नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सीबीआई ने मुख्यमंत्री से पूछताछ क्यों नहीं की?
43.
सुफियान को पकडऩे के लिए इंटरपोल से मदद क्यों नहीं ली गई?
42.
सीबीआई ने तुलसी प्रजापत हत्याकांड में जांच करके आरोपियों को क्यों नहीं पकड़ा जबकि उच्चतम न्यायालय ने उसे इस संबंध में निर्देश दिया था?
41.
प्रजापत मामले की सुनवाई टलने से सीआईडी को आरोपी अधिकारियों को हिरासत में लेने का वक्त मिल गया है. सीबीआई ने जांच शुरू कर दी होती तो इस स्थिति से बचा नहीं जा सकता था ?
40.
क्या सीबीआई उस समय सत्तारूढ़ बीजेपी के निर्देशों पर नहीं चल रही थी, जैसा कि हरेन पंड्या के पिता वि_ल पंड्या का आरोप है?
रिपोर्टों के मुताबिक पंड्या की हत्या को उनके पिता वि_ल पंड्या ने राजनीतिक षड्यंत्र बताया और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी उंगली उठाई थी. हालांकि बाद में सीबीआई ने कहा कि मोदी के हत्याकांड से जुड़े होने का कोई सबूत नहीं मिला है. मुख्य हत्यारा अशगर अली बाद में हैदराबाद से गिरफ्तार किया गया. सीबीआई के मुताबिक अशगर को पंड्या की हत्या की सुपारी मुफ्ति सुफियान ने दी थी. वि_ल पंड्या ने गोधरा जांच समिति के सामने बयान दिया कि हरेन पंड्या के कहे अनुसार 2002 में हुआ दंगा राज्य के द्वारा प्रायोजित और मोदी द्वारा नियोजित था.
39.
मायावती का आय से अधिक संपत्ति का मामला
इसी साल 28 अप्रैल को मायावती ने संसद में कटौती प्रस्ताव का समर्थन करके यूपीए सरकार को गिरने से बचाया. एक हफ्ते के भीतर ही आयकर विभाग ने आय से अधिक संपत्ति मामले में उन्हें क्लीन चिट दे दी. जब सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि वह मायावती के खिलाफ मुकदमा चलाने को तैयार है तो फिर वह पीछे क्यों हट गई?
2003 में मायावती की कुल संपत्ति एक करोड़ रुपए थी लेकिन तीन ही साल में यह पचास करोड़ रुपए हो गई यानी पचास गुना बढ़ोतरी. सीबीआई ने इसे आधार बनाकर उन पर मामला दर्ज किया था. मायावती की कई बेनामी जमीन-जायदाद के बारे में जांच करने के बाद ब्यूरो ने दावा किया था कि वह कार्रवाई करने को तैयार है. लेकिन आज तक आरोप पत्र दाखिल नहीं किया जा सका.
38.
ताज कॉरिडोर मामला
यदि इस मामले की जांच का कोई नतीजा नहीं निकला तो क्या सीबीआई इससे जुड़ी केस डायरियां सार्वजनिक करेगी?
2002 में मायावती की पहल पर ताजमहल के आसपास पर्यटक सुविधाएं विकसित करने के लिए 175 करोड़ रुपए की परियोजना की शुरुआत हुई. सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 74 करोड़ रुपए खर्च होने तक निर्माण स्थल पर सिर्फ पत्थर फिंकवाने का काम हुआ था.
37.
आय से अधिक संपत्ति के मामले में 6 साल बाद भी मायावती के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल क्यों नहीं किया गया?
36.
राज्यपाल ने सीबीआई को मायावती पर मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी थी. क्या दोबारा उनसे मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी गई?
35.
जम्मू-कश्मीर सेक्स कांड
क्या उमर अब्दुल्ला 2006 के सेक्स प्रकरण मामले में आरोपित हैं?
2006 में पुलिस को कश्मीरी औरतों का यौन शोषण दर्शाती कुछ वीसीडी मिली थीं. पीडीपी ने इस घटना के बाद आरोप लगाया था कि सीबीआई के आरोप पत्र में राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का नाम भी है.
34.
सीबीआई आरोप पत्र दाखिल करने में इतना वक्त क्यों लगा रही है?
33.
इस मामले में गिरफ्तार किए गए पुलिस अधिकारियों को क्यों छूट जाने दिया गया?
32.
मिसाइल घोटाला
2006 में एफआईआर दर्ज करने के बाद दो साल तक सीबीआई ने जॉर्ज फर्नांडीस से पूछताछ क्यों नहीं की?
2000 में भारत ने इजरायल से बराक मिसाइलें खरीदी थीं. सौदे में कथित गड़बड़ी के लिए सीबीआई ने फर्नांडीस के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी. फर्नांडीस का दावा था कि तब रक्षामंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार रहे डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने सौदे को मंजूरी दी थी. सौदे में दो करोड़ की रिश्वत का आरोप है.
31.
जूदेव रिश्वत मामला
सीबीआई दिलीप सिंह जूदेव रिश्वत कांड में ढ़ीली क्यों पड़ गई?
केंद्र में भाजपा नेतृत्व वाली सरकार के मंत्री जूदेव कैमरे के सामने रिश्वत लेते पकड़े गए. 2005 में सीबीआई ने कहा कि इस स्टिंग ऑपरेशन के पीछे छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के बेटे अमित का हाथ है.
30.
मुलायम सिंह की आय से अधिक संपत्ति का मामला
आखिर क्या वजह थी कि सीबीआई ने 2007 में मुलायम सिंह यादव के खिलाफ कार्रवाई आगे नहीं बढ़ाई और क्यों कार्रवाई रिपोर्ट अदालत में जमा करने से पहले केंद्र को भेजी गई?
ब्यूरो ने अपनी प्राथमिक रिपोर्ट अक्टूबर, 2007 में दाखिल करते हुए दावा किया था कि उसके पास मुलायम सिंह पर मामला दर्ज करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं.
29.
2009 में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में मुलायम और उनके परिवार के खिलाफ केस दायर करने की अपनी अर्जी को वापस लेने की याचिका दी. क्यों?
क्या यह जुलाई, 2008 में वामदलों के केंद्र सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद  समाजवादी पार्टी द्वारा केंद्र को समर्थन देने का पुरस्कार था?
28.
लालू-राबड़ी देवी का आय से अधिक संपत्ति का मामला
बिहार के इन दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के खिलाफ पुख्ता सबूत होने के दावे के बावजूद सीबीआई जांच प्रक्रिया आगे क्यों नहीं बढ़ा रही?
2004 में सीबीआई ने इस मामले में सालों से चल रही जांच को किनारे कर दिया और यूपीए सरकार के लिए लालू प्रसाद और राबड़ी देवी को फायदा पहुंचाने का रास्ता तैयार कर दिया. 2006 में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने दोनों को बरी कर दिया, लेकिन सीबीआई मामले को हाई कोर्ट नहीं ले गई.
27.
ओपी चौटाला : आय से अधिक संपत्ति का मामला
आरोप है कि सीबीआई ने ओमप्रकाश चौटाला के खिलाफ कार्रवाई तब शुरू की जब वे यूपीए सरकार के लिए राजनीतिक रूप से गैरजरूरी हो गए.
हरियाणा के पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके चौटाला के खिलाफ सीबीआई ने अज्ञात स्रोतों से कथित छह करोड़ रुपए अर्जित करने के मामले में आरोप पत्र दाखिल किया था. आरोप पत्र विधानसभा अध्यक्ष की अनुमति मिलने के बाद दाखिल किया गया था.
26.
सीके जाफर शरीफ : आय से अधिक संपत्ति का मामला
पूर्व मंत्री सीके जाफर शरीफ के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला दर्ज करने के बाद भी सीबीआई को आगे बढऩे की अनुमति क्यों नहीं मिली?
सीबीआई ने 1997 में सीके जाफर शरीफ के खिलाफ पद के दुरुपयोग और आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया था. लेकिन 2006 में उसने मामला बंद करने की अर्जी दे दी क्योंकि केंद्र से उसे आगे जांच की अनुमति नहीं मिली.
25.
एनडीए शासनकाल में लालू प्रसाद के खिलाफ सीबीआई ने काफी सक्रियता दिखाई थी, लेकिन यूपीए सरकार बनने के बाद इस मामले में ब्यूरो की रफ्तार सुस्त क्यों पड़ गई?
24.
विशेष अदालत में लालू के खिलाफ मामला खारिज हो जाने के बाद सीबीआई हाई कोर्ट क्यों नहीं गई?
23.
सीबीआई ने पप्पू यादव की जमानत याचिका के खिलाफ कार्रवाई करने में देर क्यों लगाई?
22.
जयललिता उपहार मामला
क्या जयललिता मामले को सीबीआई बिलकुल भूल चुकी है?
सीबीआई के मुताबिक तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री को विदेश से तीन करोड़ रुपए का 'डोनेशनÓ मिला था, जिसे उन्होंने 1992-93 के दौरान इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करते समय अपनी आय के रूप में दर्शाया. जब एचडी देवगौड़ा सरकार में तमिल मनीला कांग्रेस के पी. चिदंबरम वित्तमंत्री थे तब उन्होंने सीबीआई प्रमुख जोगिंदर सिंह से डोनेशन देने वाले की पहचान पता करने की बात कही थी. सिंह ने इस पर कार्रवाई भी शुरू की, लेकिन जांच आज भी बेनतीजा जारी है.
21.
भविष्यनिधि घोटाला
तकरीबन दो साल तक जांच के बाद सीबीआई आज भी दावा कर रही है कि जजों के खिलाफ मामला चलाने के लिए उसके पास पर्याप्त सबूत नहीं हैं, आखिर इसकी क्या वजह है?
अप्रैल, 2010  में सीबीआई ने सर्वोच्च न्यायालय में करोड़ों रुपए के भविष्यनिधि घोटाले से संबंधित जांच की स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की थी. ब्यूरो ने इसमें उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय के तीन जजों सहित राज्य के उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष और लोकायुक्त पर करोड़ों रुपए के भविष्यनिधि घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया था. सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस तरुण चटर्जी के अलावा आरोपितों की सूची में उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीश भी शामिल थे. आरोप था कि 2001 से 2008 के बीच गाजियाबाद की जिला अदालत के कोषाधिकारी आशुतोष अस्थाना ने जिला अदालत के न्यायाधीशों के साथ मिलकर तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के भविष्यनिधि खाते से करोड़ों रुपए निकाले.
20.
इस मामले में ब्यूरो ने जजों से पूछताछ की कोशिश क्यों नहीं की?
19.
प्रथम दृष्टया सबूत होने के बाद भी जजों के घरों पर छापे क्यों नहीं पड़े?
18.
बोफोर्स घूसखोरी मामला
मलेशिया और अर्जेंटीना में दो बार गिरफ्तार होने के बाद भी सीबीआई ने ओटावियो क्वात्रोची के खिलाफ रेडकॉर्नर नोटिस क्यों वापस लिया?
जब-जब केंद्र में गैरकांग्रेसी सरकार रही, इटली के इस हथियार सौदेबाज के खिलाफ सीबीआई जांच में तेजी बनी रही. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मृत्यु के बाद भी सीबीआई, मलेशिया और अर्जेंटीना सहित जहां भी क्वात्रोची गया, उसके पीछे पड़़ी रही. लेकिन बाद में मामला धीरे-धीरे रफा-दफा कर दिया गया.
17.
हर्षद मेहता शेयर घोटाला
शेयर घोटाले में पूछताछ के दौरान हर्षद मेहता ने कई राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों के नाम उजागर किए थे. सीबीआई ने मामले में उनकी भूमिका की जांच क्यों नहीं की?
शेयर दलाल हर्षद मेहता ने बैंकिंग तंत्र की खामियों का फायदा उठाकर बैंकों का पैसा शेयरों की खरीद-फरोख्त में लगाया और शेयर बाजार को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया. मामला खुला तो शेयर बाजार भरभराकर गिरा और निवेशकों व बैंकों को करोड़ों रुपए का घाटा उठाना पड़ा. मेहता पर 72 आपराधिक मामले दर्ज हुए.
16.
यूरिया घोटाला
1995 के यूरिया घोटाले के प्रमुख आरोपितों में शामिल पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव के भतीजे बी संजीव राव और बेटे पीवी प्रभाकर राव कैसे बच गए?
15.
संजीव राव ने माना था कि रिश्वत की रकम कहां छुपाई गई, उन्हें पता है. फिर भी आरोप पत्र में उनका नाम क्यों नहीं था?
14.
प्रधानमंत्री कार्यालय के कौन-कौन अफसर इस मामले से जुड़े थे?
13.
झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड
सीबीआई ने इस मामले में ज्यादातर अभियुक्तों के दोषी साबित हो जाने के बाद क्या किया है?
इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने साफ-साफ कहा था कि रिश्वत लेने और देने वाले सांसद अपने विशेषाधिकार का फायदा नहीं उठा सकते और उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है.
12.
सीबीआई ने सत्यम मामले में राजनेताओं की भूमिका की जांच क्यों नहीं की?
7 जनवरी, 2009 को सत्यम के चेयरमैन रामालिंगा राजू ने अपने बोर्ड मेंबरों और सेबी को यह बताते हुए इस्तीफा दिया था कि आईटी कंपनी के खाते में 5,000 करोड़ रुपए से भी ज्यादा का घालमेल है.
11.
जैन हवाला कांड
उच्चतम न्यायालय ने हवाला कांड में राजनेताओं के खिलाफ लचर जांच-पड़ताल के लिए सीबीआई की आलोचना की थी, इससे कोई सबक लिया गया?
18 करोड़ डॉलर के इस घोटाले में वह पैसा भी शामिल था जो हवाला कारोबारी जैन भाइयों ने कथित तौर पर नेताओं को दिया. इस रकम का एक हिस्सा हिजबुल मुजाहिदीन को मिलने की बात भी हुई. लालकृष्ण आडवाणी और मदनलाल खुराना मुख्य आरोपितों में से थे. अदालत ने हवाला रिकॉर्डों को अपर्याप्त सबूत माना.
10.
एनके जैन ने दावा किया था कि उसने पीवी नरसिंहा राव को एक करोड़ रु. दिए. इसके बाद सीबीआई के सबूत जुटाने की रफ्तार अचानक धीमी क्यों पड़ गई?
9.
सेंट किट्स मामला
सेंट किट्स के दौरे के बाद धोखाधड़ी के इस मामले की तफ्तीश के लिए सीबीआई को कौन-से सुराग मिले?
सेंट किट्स धोखाधड़ी मामले में भूतपूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव के साथ-साथ केंद्रीय मंत्री केके तिवारी, सिद्धपुरुष चंद्रास्वामी और उनके सचिव केएन अग्रवाल के ऊपर आरोप लगे थे. मामला था वीपी सिंह की छवि को खराब करने के लिए फर्जीवाड़ा करने का. राव पर ये आरोप 1996 में तब लगाए गए जब वे प्रधानमंत्री के पद से हट चुके थे. बाद में सबूतों के अभाव में अदालत ने उन्हें इस आरोप से बरी कर दिया. बाकी आरोपी भी आखिरकार छूट गए.
8.
बाबरी विध्वंस
बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सीबीआई कोई भी पुख्ता सबूत नहीं जुटा पाई. क्यों?
6 दिसंबर, 1992 को कथित तौर पर संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की शह पर बाबरी मस्जिद को गिरा दिया. सीबीआई ने आरोप पत्र दाखिल किया जिसमें लालकृष्ण आडवाणी समेत 24 नेताओं का नाम था. इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ इस पर फैसला सुना चुकी है.
7.
पाठक धोखाधड़ी मामला
इतने बड़े नेताओं पर इतने गंभीर आरोप लगे पर सीबीआई साक्ष्य जुटाने में नाकाम क्यों रही?
इंग्लैंड में रहने वाले कारोबारी लक्खूभाई पाठक ने तांत्रिक चंद्रास्वामी, उनके सचिव केएन अग्रवाल और पीवी नरसिंहा राव पर एक लाख डॉलर की धोखाधड़ी का आरोप लगाया था.
6.
तेलगी स्टांप पेपर घोटाला
सीबीआई ने उन नेताओं के खिलाफ जांच जारी क्यों नहीं रखी जिनका नाम तेलगी ने लिया था?
2006 में अब्दुल करीम तेलगी की गिरफ्तारी हुई. पूछताछ में उसने शरद पवार, छगन भुजबल समेत कई और राजनेताओं और नौकरशाहों के नाम लिए जो इस घोटाले में उसके हिस्सेदार थे. कभी फल बेचने वाले तेलगी को 1994 में स्टांप पेपर बेचने का लाइसेंस मिला और तब-से उसने फर्जी स्टांप पेपर छापने शुरू कर दिए.
5.
क्या एक अकेला आदमी नेताओं की शह के बिना इतना बड़ा घोटाला कर सकता है?
4.
हजारों करोड़ के इस घोटाले की जांच में सीबीआई को क्या मिला?
3.
आरुषि हत्याकांड को दो साल हो गए हैं. सीबीआई की क्या उपलब्धि है?
2.
सिख विरोधी दंगे
1984 के सिख विरोधी दंगों के मुख्य अभियुक्तों में से एक सज्जन कुमार के खिलाफ सीबीआई अभी तक ढुलमुल रवैया ही अपना रही है. क्यों?
सीबीआई के यह कहने पर कि सज्जन कुमार गायब हैं, फरवरी, 23 को इस केस की सुनवाई कर रही अदालत ने उसे फटकार लगाई.
1.
सिख विरोधी दंगे
कांग्रेस के सांसद जगदीश टाइटलर को क्लीन चिट देने में सीबीआई को 15 साल क्यों लग गए?
उत्तर भारत में चार दिन तक हिंसा हुई. खासकर दिल्ली में. कांग्रेस के इशारों पर नाचती भीड़ ने निहत्थे सिखों को मारा. औरत, मर्द, बच्चे, बूढ़े सबको. सिखों के घरों और उनकी दुकानों को लूटा और जलाया गया. गुरुद्वारों तक को नहीं बख्शा गया. इस साल 10 फरवरी को सीबीआई ने दिल्ली कोर्ट में अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपी जिसमें भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री जगदीश टाइटलर को क्लीन चिट मिल गई. सीबीआई ने दिसंबर, 2007 में ही टाइटलर को क्लीन चिट दे दी थी पर अदालत ने इसे खारिज कर दिया था और एजेंसी को निर्देश दिए थे कि इस मामले में टाइटलर की भूमिका की दोबारा जांच हो. अप्रैल 2, 2009 को भी सीबीआई ने अपर्याप्त सबूतों का हवाला देते हुए टाइटलर को क्लीन चिट दी थी. क्लीन चिट देने के लिए सीबीआई ने जिन दस्तावेजों का सहारा लिया था उन्हें हासिल करने के मकसद से दाखिल एक पीडि़त की अर्जी पर जवाब देने के लिए दिल्ली की एक अदालत ने जांच एजेंसी को दो महीने का वक्त दिया है.

बाल दिवस पर कई तरह के बचपन की बातें

अपने यंहा कई तरह के समाजों की तरह कई तरह के बचपन भी एक मुल्?क में एक ही समय पर पल बढ़ रहा है। बाल दिवस आया और ऐसा नहीं हुआ कि कई बच्?चों के चेहरे पर कोई खास मुस्?कराहट या कोई और भाव आया हो। बच्?चों का बचपन वाकई खोता जा रहा है। बड़ी और ऊंची इमारतों में रहने वाले मां बाप अपने बच्?चों को सिखाते हैं कि क्?या करें और कैसे रहें। इसमें गलत भी नहीं है लेकिन बच्?चों को जो पूछना हो जो बालसुलभ सवालात उनके जहन में आते हैं उनके जवाब देने के लिए कोई नहीं होता। मां काम करती है और पिता भी काम में मशगूल, अकेला बचपन या तो आया या क्रैश में अपने जैसे औरों के साथ समय को धकेलने की कोशिश करते करते एक दिन बड़ा हो जाता है। ऐसे में कई भावों का उसे कभी अहसास ही नहीं होता। उसे वे मूल्?य मिल ही नहीं पाते है जो मानव जीवन के लिए बेहद जरूरी हैं। अर्थ के शास्?त्र की मजबूरी ने मानव के सारे शास्?त्र बदल डाले हैं। सब को भागने की पड़ी है, समेटने की पड़ी है। बच्?चों का बचपन इसका सीधा शिकार हो रहा है। ये उन बच्?चों की बाते हैं जिनके पास सुविधाओं की कोई कमी नही है, बस रिश्?तों की कमी है। उनके अम्?मा दादा, बाबा, नाना नानी , कोई ऐसा नाम नहीं है जिसका साथ उनके नन्?हे बचपन के लिए आवश्?यक है। वे बढ़ तो रहे हैं लेकिन शायद रिश्?तों का अदब तहजीब उनसे दूर होता जा रहा है। आने वाले दिनों में शायद ये बच्?चे बचपन की बातों के किस्?से और कहानियां किताबों में ही पढ़ेंगे या फिल्?मों में ही देख सकेंगे। तब पता नही क्?या हालात होंगे। खुदा खैर करे।
उधर अपने मुल्?क में एक अलग किस्?म के बच्?चे भी हैं। बच्?चे तो बच्?चे हैं, कोई भेद उनमें नहीं होता, इसलिए उन मजबूरों की बात भी करनी आवश्?यक है जिनको इसका पता ही नहीं चल पाता कि बचपन वाकई होता क्?या है। इस भाव से उनकी मुलाकात शायद ही कभी होती हो। अलसुबह जब सभ्?य समाज के बच्?चे गर्म रजाइयों में सुंदर नींद का आनंद ले रहे होते हैं, वे बच्?चे सड़कों पर कचरा बीनते हैं, या रेलवे के प्?लेटफार्मों पर खाना ढूंढ रहे होते हैं,या फिर भीख मांग रहे होते हैं। ऐसे बच्?चे जिनका घर नहीं होता या अगर होता भी है तो महज समझौता होता है,क्?योंकि अगर उनके मां बाप उन्?हें ऐसे कामों पर नहीं भेजेंगे तो परिवार नहीं चल सकेगा। यहीं उनका बचपन है। भारी बोझ है उनके कमजोर कांधो पर। पर हिम्?मत देखों कि वे बेफिक्र जीते हैं और लड़ते हुए जिंदगी को आइना दिखाते हैं कि हमारे जज्?बे के आगे चुनौतियां क्?या हैं। लेकिन ऐसे बहुत कम ही हो पाते है। बहुत से ऐसे भी दिख जाएंगे जो सड़कों पर नशे में बेसुध चलते हैं। नाक पर मैला सा कपड़ा या रूमाल लगाए खतरनाक इंक रिमूवर सूंघते हुए या किसी और खतरनाक नशे के आगोश में। कैसा बचपन होगा कि जो सब गम भुला कर नशे में डूब जाना चाहता है। कौन से कारण हैं जो वे नशे के आदी हो जाते हैं। ये भी एक अलग कहानी है। और कुछ ऐसे बच्?चों के किस्?से भी हैं जिनमें दस साल की उम्र के बच्?चे हैं। जब उनके नटखटपने के दिन होने चाहिए, वे खतरनाक कामों में लगे होते हैं। कोई कांच की सुदंर रंग बिरंगी चूडिय़ा बनाने में तो कोई खतरनाक रासायनिक उद्योगों में , और बहुत से ऐसे भी हैं जो बड़े और समाज के कथित ऊंचे लोगों के घरों में बंधुआ की तरह काम करते हैं। बहुतेरे ऐसे भी हैं जो निठारी जेसे हादसों का शिकार होते हैं। कुछ बच्?चों की तस्?करी भी हो जाती है। सरकार और हाकिमों की नाक के नीचे अपने मुल्?क का एक बचपन बरबाद हो रहा है। कैसे कहें कि इन मासूमों को बाल दिवस की कोई खुशी हुई होगी। कुछ अखबारों में अगले दिन बाल दिवस के अवसर पर आकाओं और इनके नाम पर दुकानें चलाने वाली संस्?थाओं के कथित समाज सेवा जैसे कार्यक्रमों के फोटो होंगे। वे लोग इन बच्?चों का और अखबार की कतरनों का सदुपयोग विदेशी संस्?थाओं से अपने संस्?थानों के लिए इन बच्?चों के कल्?याण की योजनाओं के लिए मोटी अनुदान राशियां लेने के कामों में लाएंगे। खैर पता नहीं कभी इन बच्?चों को बचपन का पता चलेगा भी या नहीं।

भैया जैसा नहीं कोई दूज

मेघना

भारतीय संस्कृति में त्योहारों का विशेष महत्व है। त्योहार हमारी धार्मिक व सामाजिक पहचान हैं। भैया दूज का पावन त्योहार भाई-बहन के परस्पर प्रेम तथा स्नेह का प्रतीक है। इसका प्रचलन आदि काल माना जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को दीपावली के बाद भैया दूज पूरे देश में मनाई जाती है। इस दिन बहने अपने भाई को तिलक करके उसके उज्जवल भविष्य व लंबी उम्र की कामना करती हंै। इस पर्व को यम द्वितीया भी कहा जाता है। इस पर्व का मुख्य संबंध यम तथा उनकी बहन यमुना से है।कौन है यम तथा यमुना-
सूर्य भगवान की पत्नि का नाम संज्ञा देवी है। इनकी दो संताने पुत्र यमराज तथा कन्या यमुना हैं। एक बार संज्ञा देवी अपने पति सूर्य की उदीप्त किरणों को सहन न कर सकने के कारण उत्तरी ध्रुव प्रदेश में छाया बनकर रहने चली गईं। उसी छाया से ताप्ती नदी तथा शनिदेव का जन्म हुआ। इधर छाया का व्यवहार यम तथा यमुना से विमाता जैसा था। यम ने खिन्न होकर अपनी अलग यमपुरी बसाई।
यमुना अपने भाई को यमपुरी में पापियों को दंडित करने का कार्य करते देख गोलोक चली आईं, जो कृष्णावतार के समय भी थीं। इसी प्रकार समय व्यतीत होता गया। यम व यमुना लंबे समय तक अलग रहें। यमुना ने कई बार यमराज को अपने घर आने का निमंत्रण दिया। परंतु यम आ न सके। एक दिन यमराज ने अपनी बहन को मिलने का मन बनाया तथा अपने दूतो को भेजकर यमुना जी की खोज करवाई।
फिर गोलोक में विश्राम घाट पर उनका मिलन यमुना जी से हुआ। यमुना ने हर्ष विभोर होकर उनका सम्मान किया। उन्हें नाना प्रकार के भोजन करवाए। तब यम ने प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा। यमुना बोलीं- 'भैया, मैं आपसे यह वरदान चाहती हूं कि जो नर-नारी मेरे जल में स्नान करें उसे यमपुरी न जाना पड़े।Ó यमराज असमजंस में पड़ गए। चूंकि इस प्रकार तो यमपुरी का आसित्व ही समाप्त हो जाता।
भाई को धर्मसंकट में देख यमुना पुन: बोलीं- 'आप चिंता न करें। मुझे यह वरदान दीजिए कि जो लोग आज के दिन मथुरा नगरी में विश्राम घाट पर यमुना स्नान करें तथा अपनी बहन के घर भोजन करें, वे तुम्हारे लोक को न जाएं।Ó यमराज ने यमुना के वचन सुनकर 'तथास्तुÓ कह दिया। तभी से भैया दूज का त्योहार मनाया जाता है।
भैयादूज व राजा बलि
जब भगवान विष्णु ने राजा बलि को वामन रूप में पाताल में भेजा था, तब वामन भगवान ने राजा बलि को वरदान दिया था कि वह पाताल में राजा बलि के पहरेदार बन कर रहेंगे। अब वरदान के लिए भगवान को भी पाताल जाना पड़ा। भैया दूज के दिन लक्ष्मी जी ने एक गऱीब औरत का वेष बनाकर राजा बलि को भाई बनाने का आग्रह किया।
जिसे बलि ने स्वीकार कर लिया। लक्ष्मी जी ने बलि को तिलक लगाकर पूजा की। जब बलि ने उनसे वरदान मांगने को कहा, तो लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को आज़द करने का वरदान मांग लिया।
भैया दूज व श्रीकृष्ण-सुभद्रा-
द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने तारकासुर का वध किया। वध करने के बाद वह सीधे अपनी बहन सुभद्रा के घर गए थे। सुभद्रा ने घर आए श्रीकृष्ण का मिठाई व फूलों से ख़ूब स्वागत किया। तबसे यह त्योहार भैया दूज के रूप में मनाया जाता है।
कैसे करें भैया पूजन
भैया दूज वाले दिन आसन पर चावल के घोल से चौक बनाएं। इस चौक पर भाई को बिठाकर बहनें उनके हाथों की पूजा करती हैं। इस पूजा में सबसे पहले भाई की हथेली पर चावलों का घोल लगाती हैं। उसके ऊपर सिंदूर लगाकर फूल, पान, सुपारी तथा मुद्रा आदि हाथों पर रखकर धीरे-धीरे पानी हाथों पर छोड़ते हुए कुछ मंत्र बोलती हैं- 'गंगा पूजा यमुना को, यमी पूजे यमराज को। सुभद्रा पूजे कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे, मेरे भाई आप बढ़ें।Ó
कुछ जगह पर मंत्र बोलकर भी भाई की हथेली की पूजा की जाती है। इस प्रकार के शब्द इस लिए बोले जाते हैं, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि आज के दिन अगर भंयकर पशु भी काट लें, तो यमराज के दूत उसके भाई के प्राण नहीं ले जा सकते।
इसके बाद भाई को तिलक लगाकर कलावा बांधा जाता है। भाई का मुंह मीठा करवाने के लिए माखन मिस्री खिलाया जाता है तथा यमराज के नाम से एक चौमुखा दीपक जलाकर घर की दहलीज़ के बाहर रखा जाता है।
चील दर्शन शुभ
जिस प्रकार विजयदशमी के दिन नीलकंठ तथा पितृपक्ष में काग यानी कौवों का दर्शन शुभ माना जाता है, उसी प्रकार यम द्वितीया के दिन दिखी चील वरदान का पर्याय मानी जाती है। मान्यता है कि चील के दर्शन का तात्पर्य है कि बहन की प्रार्थना स्वीकार कर यमराज ने उसके भाई को अभयदान दे दिया है।
ऐसा माना जाता है कि चील आपकी प्रार्थना को यमराज तक पहुंचा देती है। विशेष रूप से अगर सफेद चील नजर आ जाए, तो इसे परम सौभाग्य की निशानी माना जाता है। गोस्वामी तुलसी दास जी ने रामचरित्र मानस में राम-विवाह के लिए आयोध्या से चलने वाली बारात को मिले शुभ शगुनों में इस शगुन की भी चर्चा की है—क्षेमकरी कह क्षेम विसेसी
यम द्वितीया तथा यमनोत्री
सूर्यपुत्री यमुना का उद्गम स्थल यमुनौत्री हैं, जो केदार खंड उत्तराखंड के चारो धामों में से एक हैं। यमुनौत्री हिमाल्य के विशाल शिखर के पश्चिम में समुद्री तट से 3185 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। यमुना जी का अद्गम स्थल यमुनौत्री से 6 किलोमीटर ऊपर कालिंदी पर्वत पर है। कालिंदी पर्वत की गोद में यमुना जी शैशव रूप में बहती हैं।
यमुनौत्री के कपाट वैशाख के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को खुलते हैं तथा कार्तिक मास में भैया दूज के दिन बंद हो जाते हैं। शीतकाल में 6 महीने खरसाली के पंडे यमुना जी की पूजा अपने गांव में ही करते हैं। यहीं पर असित मुनि ने तप किया था। वह अपनी अध्यात्मिक व मानसिक शक्ति के बल पर प्रतिदिन गंगौत्री तथा यमुनौत्री में स्नान करके लौट जाया करते थे। गंगा, यमुना जी की सौतेली बहन हैं तथा दोनों को हमारी संस्कृति में माता का दर्जा प्राप्त है।
भैयादूज पर चित्रगुप्त पूजन
पौराणिक आख्यान के अनुसार चित्रगुप्त जी की उत्पति ब्रह्मजी से हुई। सृष्टि रचना के बाद ब्रह्मा जी ने जब धर्मराज को धर्मप्रदान मानकर जीवों के शुभाशुभ कार्यो का न्याय कर योग्य फल देने का अधिकार दिया।
तब धर्मराज ने इस कठिन कार्य को करने के लिए प्रार्थना कर ऐसे सहायक की मांग की, जो न्यायी, बुद्धिमान, चरित्रवान व लेखा कर्य में विज्ञ हो। ब्रह्मा जी के शरीर से हाथ में क़लम-दवात लिए विलक्ष्ण तेजस्वी पुरुष की उत्पत्ति हुई। तब ब्रह्मा जी ने कहा- 'तुम मेरे चित में गुप्त रूप से रहे हो। अत: तुम्हारा नाम चित्रगुप्त है। तुम धर्मराज की सहायता करो। तबसे चित्रगुप्त समस्त प्राणियों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रचाते हैं। भैया दूज के दिन चित्रगुप्त का पूजन क़लम-दवात सहित किया जाता है। ब्रह्म जी की काया से उत्पन्न होने के कारण इन्हें कायस्थ भी कहा जाता है।
भैयादूज का महत्व
कलियुग के प्रभाव से आज पारिवारिक रिश्तों में मिठास कम होती जा रही है। हमारे महर्षियों को कलियुग के इस प्रभाव का पहले ही अहसास था। अत: पर्व व त्योहारों के रूप में ऐसे उपक्रमों का प्रयोजन किया गया, जिससे आपसी सद्भाव बढ़े। दूरियां कम हों तथा इसके लिए निरंतर प्रयास होता रहे। भैया दूज भी पारिवारिक व सामाजिक दूरियां कम करने का माध्यम है। जिनकी बहन या भाई नहीं होता, वे किसी अन्य प्रियजन को भाई अथवा बहन मान कर पूजन करते हैं। इससे समाज में स्वच्छ सद्भावना का माहौल तैयार होता है। नैतिक मूल्यों में बढ़ौतरी होती है।

Sunday, November 21, 2010

साथ रहने का शऊर

उत्तर प्रदेश में सिद्धार्थनगर जिले के दो गांव अपने नामों और आबादी केसमीकरण के कारण ध्यान खींचते हैं. रेयाज उल हक की रिपोर्ट
एक हजार से अधिक की आबादी वाला अल्लाहपुर किसी आम गांव जैसा ही है-फूस की झोंपडिय़ां और पक्के मकान, गांव के बीच में तालाब और आम के पेड़ों के बीच से निकलती सड़क पर बिछी हुई लाल ईंटें. अगर आपने गांव के नाम पर ध्यान दिया हो तो आपको जानकर थोड़ी हैरानी हो सकती है कि इस गांव में सिर्फ एक मुस्लिम परिवार है, बाकी सभी घर हिंदुओं के हैं. और अल्लाहपुर के पास की नहर पार करें तो एक दूसरा गांव मिलेगा, भगवानपुर. मुख्य सड़क से गांव की तरफ मुड़ते ही घर शुरू हो जाते हैं-यहां तीन सौ परिवारों में सिर्फ 30 हिंदू हैं. बाकी परिवार मुस्लिमों के हैं.
70 वर्षीय बिंदेश्वरी प्रसाद उत्साह के साथ बताते हैं, 'पर्व-त्योहार में भले शामिल नहीं हो पाएं लेकिन शादी-गमी में सब शामिल होते हैं. अल्लाहपुर में एक मुसलिम परिवार है. कभी हमारे यहां कथा भागवत हुई तो उसे सुनने वे लोग भी आते हैं, खाना-पीना भी करते हैंÓ
भारतीय समाज में रहते हुए आदमी जिस तरह चीजों को देखने लगता है उसमें आबादी के समीकरण के हिसाब से नामों का ऐसा मिलाप अचंभे में डाल देता है. जाने कब से ये गांव कमोबेश इस संतुलन के साथ सहजता से रहते आए हैं. समाजवादी आंदोलन से जुड़े रहे स्थानीय पत्रकार नजीर मलिक पास के ही डुमरियागंज के हैं. बचपन से उनका आना-जाना इन गांवों की तरफ रहा है. वे बताते हैं कि उन्हें कम से कम तीन पीढिय़ों से इन गांवों के बसे होने की जानकारी है.
तीन पीढिय़ां. मतलब लगभग 150 साल. कोई नहीं जानता कि इन गांवों के नाम किसने रखे होंगे. जो सब जानते हैं वह है साथ रहने का शऊर.
तो देश-दुनिया में इतनी घटनाएं होती रहती हैं. सांप्रदायिक तनाव पैदा होते रहते हैं. चुनाव आते रहते हैं. क्या कभी किसी तरह की फूट नहीं पड़ी? वे कहते हैं, 'क्या कोई फूट डालेगा? जब वे हममें मिल जाएंगे और हम उनमें तो कोई क्या फूट डालेगा? यहां भाजपा वाले भी वोट मांंगने आते हैं और कांग्रेस वाले भी.Ó लेकिन कभी-कभी लगता है कि साथ रहने का यह शऊर शायद थोड़ा दूर रहने के कारण पैदा हुआ है. अल्लाहपुर के ही जयंती प्रसाद कहते हैं, 'इस गांव में होते तो शायद कुछ खटपट होती, लेकिन वे दूसरे गांव में हैं वह भी थोड़ी दूर है. नजदीक होते तो शायद कुछ खटपट हो भी सकती थी.
अल्लाहपुर के अकेले मुसलिम परिवार के मुखिया रुआब अली अपने घर के सामने भैंसों का चारा काट रहे हैं. खेती उनका मुख्य पेशा है, साथ में वे सिलाई का काम भी कर लेते हैं. वे अपने पुश्तैनी मकान में रहते हैं और गांव में अकेला मुसलिम परिवार होने में उन्हें कोई मुश्किल नहीं है. हालांकि उनके परिवार की एक महिला कहती हैं, 'हम चाहते हैं कि किसी दूसरे गांव चले जाएं जहां और भी मुसलिम रहते हों. यहां अच्छा नहीं लगता.Ó रुआब अली और उनके भाई हजरत अली उस महिला की बातों पर ध्यान नहीं देते. लेकिन वह महिला अपनी बात पूरी करती है, 'हमें पर्व-त्योहारों पर दूसरे गांव जाना पड़ता है. इसीलिए अच्छा नहीं लगता. बाकी तो यहां कोई दिक्कत ही नहीं है.
भगवानपुर से आज किसी की बारात गई है, इसलिए अधिकतर लोग गांंव में नहीं हैं. बात करने के लिए गांव के आखिरी छोर पर एक घर के पास अब्दुल मजीद मिलते हैं. उनकी बातें सुनकर अल्लाहपुर के बिंदेश्वरी प्रसाद की बातें याद आ जाती हैं, 'इस गांव में 30 हिंदू परिवार भी रहते हैं. लेकिन कभी कोई दिक्कत नहीं हुई. सब मिल-जुलकर रहते हैं.Ó नजीर मलिक कहते हैं, 'यह मिथक बना दिया गया है कि जहां मुसलमानों की आबादी ज्यादा है, वहां दंगे होते हैं. इस पूरे इलाके और खासतौर से भगवानपुर-अल्लाहपुर इलाके में मुसलिम आबादी खासी है. लेकिन यहां कभी दंगे नहीं हुए. झगड़े जरूर हुए हैं, लेकिन वे हिंदुओं-मुसलमानों के झगड़े नहीं थे. वे जमींदारों और किसानों के बीच के संघर्ष थे, जिनमें दोनों के धर्म अलग-अलग हुआ करते थे.

लक्ष्मी आई है

ऐसा नहीं है कि लक्ष्मी मैया का संबंध सिर्फ दीवाली से ही हो। लड़कियों से भी लक्ष्मी मैया का गहरा नाता है। जब घर में कन्या का जन्म होता है तो अपने घर-परिवारों में यह वाक्य तब सुनने को अक्सर मिल जाता है कि लक्ष्मी आई है। पहली बेटी होने पर कोई सीधे-सीधे यह तो कहता ही नहीं है कि बधाई हो। सब यही कहते हैं कि चलो अच्छा हुआ घर में लक्ष्मी आई है। जब वे कहते हैं कि चलो अच्छा हुआ तो ध्वनित यह होता है कि जैसे कुछ अच्छा नहीं हुआ है। पिछले दिनों मेरी बेटी अमरीका से अपनी नवजात बिटिया के साथ मेरे घर कुछ दिन बिताने आई हुई है। सब सगे-संबंधी और मिलने-जुलने वाले उससे मिलने आ रहे हैं। मुझे भी नानी बनने पर अपार खुशी और संतुष्टि की अनुभूति हो रही है। बधाई देने के लिये आनेवाले हर व्यक्ति ने आमतौर से यह वाक्य कहा कि जी अच्छा हो गया घर में लक्ष्मी आई है। मैं तो इस वाक्य को सुनने की आदि पहले से ही हूं इसलिये मुझे खास आश्चर्य नहीं हुआ। पर एक दिन मेरी बेटी किसी से उलझ पड़ी और यह वाक्य सुनते ही बोली- क्यूं आंटी यह क्यूं कह रहे हो कि लक्ष्मी आई है? यह क्यूं नहीं कह रहे कि सरस्वती आई है? या फिर यही कहो कि बिटिया आई है। क्या बेटा होने पर आप यह कहते कि विष्णु आया है या ब्रह्मा आया है? सवाल ने उन्हें निरुत्तरित कर दिया और वे घिघियानी सी हंसी हंसने लगीं। मेरे दिमाग में भी झनझनाहट हुई। जब उस आंटी ने बुरा सा मुंह बनाया तो मैंने स्थिति को संभालते हुए बर्फी की प्लेट उनके सामने करते हुए कहा कि चलो छोड़ो लक्ष्मी आई है कि सरस्वती, आप मुंह मीठा करो। वो महिला तो मुंह मीठा करके अपना सा मुंह लेकर चली गई पर मुझे लगा कि स्थिति संभली नहीं है। और यह वह स्थिति है कि जिसे संभालना आसान नहीं होता है। शताब्दियों से हमने अपनी बेटियों के रूप में लक्ष्मी को देखा पर बेटी मंे बेटी के रूप को नहीं देखा मानो हम बेटी में लक्ष्मी देखकर स्वयं को तसल्ली दे रहे हों। क्या बेटियां कोई करंसी या सोने-चांदी के सिक्के है जो घर की अर्थव्यवस्था को संभाल लेंगी? और फिर जब कोई देवी उनके रूप में देखनी है तो सरस्वती क्यों नहीं? इसका सीधा सा अर्थ यही है कि इस समाज को दौलत सेे ऊपर कभी कुछ लगा ही नहीं। आज भी हमारी करोड़ो लक्ष्मियां तो ऐसी हैं जो स्कूल की दहलीज तक कभी जा ही नहीं पाई और उन्हें अपना नाम चाहे वो लक्ष्मी हो या सरस्वती, लिखना-पढ़ना तक नहीं आता है। और एक पाठ तो इस समाज को भी पढ़ना ही होगा जिसमें लोगों को सिखाया जाए कि प्रसव-पीड़ा सहकर जिस मां ने संतान रूप में बेटी या बेटा जो भी पैदा किया है, उसे गले से लगाया जाए।

देश की धरती बनाम शौचालय

शमीम शर्मा
मेरे देश की धरती पर फसलें हैं, फूल हैं, घास है, कारखाने हैं, मकान हैं, सड़कें हैं, पुल हैं, घर हैं, गलियां हैं, मोहल्ले हैं, बाजार हैं। पर ये चीजें हैं कहीं-कहीं। एक ऐसी चीज भी है जो हर जगह है। सरकारी भवनों, न्यायालयों की इमारतों, सिनेमाघर के बाहर, बाजार या गलियों के कोनों, खुली जगह आदि पर हर जगह। और तो और मंदिर-मस्जिद के पिछवाड़ों को भी लोगों ने नहीं बख्शा। यह वह जगह है जहां की अपनी एक सडांध है और गंदगीभरा नज़ारा है। जहां से निकलते हुए आप नाक सिकोड़े बिना नहीं जा सकते। और अगर आप महिला हैं तो आपकों अपनी गर्दन घुमाकर दूसरी ओर करनी ही पड़ेगी। यह जगह किसी ठेकेदार या सरकार द्वारा नहीं बनवाई गई है और न ही यह जगह किसी समाज सेवी की देन है। यह तो हमारे मर्दों ने अपनी सुविधा के लिये बना ली है। ऐसी ही जगहों पर लिखा होता है- यहां गधा पिशाब कर रहा है और फिर भी आदमी नाम का जीव लगा ही रहता है। और जिन स्थानों पर यह विशेषतौर पर लिख दिया जाए कि यहां ऐसा करना मना है तो समझ लीजिये कि वह स्थान तो सार्वजनिक शौचालय बन जाता है। मुझे तो उन दीवारों और जमीन के हिस्सों पर तरस आता है जहां इस तरह की हरकत की जाती है। आदमी के मूत्र से सिंची यह जमीन अपने भाग्य को जरूर कोसती होगी। खेत-खलिहानों को तो इस कर्म के लिये आदमी अपना अधिकार समझते हैं। कभी कोई बस सड़क पर पहिया पंक्चर होने की वजह से रुक जाए तो सारे आदमी यहां-वहां अपना काम अधिकारपूर्वक कर लेते हैं। लज्जा के भाव की बात करना तो महामूर्खता है। वैसे भी उसने शताब्दियों पहले ही घोषणा कर दी थी कि लज्जा नारी का आभूषण है यानी कि पुरुष का उससे कोई लेना-देना नहीं है। कई बार तो लगता है कि आदमी ने तो पूरे देश की धरती को शौचालय ही समझ लिया है। धरती को मां कहने वाले और धरती के लिये अपनी जान तक देने वाले ने देश की पूरी धरती को ही पिशाबघर बना दिया है। जब उसे धरती मां की ही कोई चिन्ता नहीं है तो उन महिलाओं की तो क्या ही होगी जो आसपास से गुजर रही होती हैं। भृकुटियां तान कर कई पुरूष कहना चाहेंगे कि जरूरत पड़ने पर क्या किया जाए? क्या जरूरत पड़ने पर वे अपने घर की रसोई या शयनकक्ष में ऐसी क्रिया करते हैं? ऐसे क्षणों में वे सिर्फ प्रतीक्षा करते हैं। महिलाओं को जब शौचालय नहीं मिलते तो वे भी तो प्रतीक्षा ही करती हैं। आदमी इन्तजार करना कब सीखेगा या इन्तजार करवाने के लिये भी वह किसी कानून की बाट जोह रहा है?

एक बर की बात है अक लाल किले की दीवार के सहारे हल्का होण लाग रह्या था अर वो एक सिपाही नैं देख लिया। सिपाही उस धोरै जाकै लट्ठ खड़का कै बोल्या- शर्म नहीं आती लाल किले की दीवार खराब करते होए? ल्या काढ़ दस का नोट। नत्थू बेचारा पहल्ली बर दिल्ली गया था अर उसनैं अपने पजामे का नाला बांधकै झट दस का नोट कुर्ते की गोज मैं तैं काढ़कै दे दिया। थोड़ी देर बाद नत्थू नैं देख्या अक वो सिपाही एक रेहड़ी पै खड़्या समोसे खाण लाग रह्या था। नत्थू हिम्मत करके उस धोरै गया अर बूज्झण लाग्या- आं रै! जै मैं लाल किले की दीवार नहीं भिगोता तो तैं कित तैं समोसे खाता?

अब संरक्षित हो जाएंगे राजस्थान में वन्यजीव

राजस्थान देश के उन अग्रणी राज्यों में से एक है जहां राज्य सरकार ने वन्य जीव संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की है. राज्य में पिछले कुछ समय से वन्य जीवों की कम हो रही संख्या को देखते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निर्देश पर वन्य जीव संरक्षण के लिए विशेष कदम उठाए गए हैं. इन कदमों की वजह से ही अकेले सरिस्का क्षेत्र में ही वन्य जीव अपराध के 37 प्रकरण दर्ज किए गए और दोषियों की धरपकड़ की गई. ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी वन्यजीव शिकारी को न्यायालय ने 7 साल की सजा सुनाई है.
वनमंत्री रामलाल जाट ने न्यायालय के इस आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि इस निर्णय से वन्य जीव शिकारियों को संदेश जाएगा कि यदि उन्होंने वन्य जीवों का शिकार किया तो इससे भी कड़ा दंड मिल सकता है. राज्य में वन्य जीव शिकारियों के खिलाफ मामले तो पहले भी दर्ज होते हैं लेकिन उन्हें 3 या 4 साल की ही सजा मिल पाई है. इसी दिशा में कुछ समय पहले सरिस्का में बाघों का सफाया करने वाले कुख्यात वन्य जीव शिकारियों जीवनदास व सुरता कालबेलिया को पकडऩे की कार्रवाई भी हुई.
राज्य में वन्य जीव संरक्षण के प्रति सरकार की गंभीरता का ही यह परिणाम है कि जहां सरिस्का व रणथंभौर में बाघों की संख्या मात्र 26 रह गई थी वह बढ़कर 44 तक पहुंच गई है. रणथम्भौर को देश के 37 बाघ परियोजना क्षेत्रों में श्रेष्ठ बाघ परियोजना क्षेत्र में शामिल किया जाता है. यहां वर्तमान में 41 बाघ हैं और यहां के प्रबंधन को भी देश के बेहतरीन बाघ परियोजना प्रबंधन में शुमार करते हुए राज्य सरकार ने इस दिशा में गौरव प्रदान किया है.
बहरहाल, राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार के सत्ता में आने के बाद वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण की दिशा में अच्छे कार्य किए गए हैं. वन्यजीव संरक्षण के प्रयासों को इसी से बेहतर समझा जा सकता है कि रणथम्भौर देश का पहला ऐसा राष्ट्रीय उद्यान हो गया है, जहां पिछले कुछ समय में बाघों की संख्या तेजी से बढ़ी है. गौरतलब है कि देश में 2 राष्ट्रीय उद्यान और 25 अभ्यारण्य बनाए गए हैं. दो बाघ परियोजनाएं रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान और सरिस्का अभ्यारण्य भी यहांं. राज्य में 33 शिकार निषिद्ध क्षेत्र घोषित किए गए हैं. बाघविहीन हो चुके सरिस्का अभ्यारण्य में रणथम्भौर के 3 बाघों को हवाई मार्ग से शिफ्ट करने के बाद सरिस्का को भी देश के श्रेष्ठ अभ्यारण्यों में शुमार किए जाने के प्रयास तेज गति से किए जा रहे हैं. रणथम्भौर में पर्यटन को सुव्यवस्थित करने के लिए ऑनलाइन टिकट का भी प्रबंध किया गया है. यही नहीं नाहरगढ़ सेंचुरी के 80 हेक्टेयर क्षेत्र में एक ही जगह पर जू, बीयर रेस्क्यू सेंटर, घडिय़ाल पार्क, लॉयन सफारी व हाथी सवारी के लिए भी 4 करोड़ 30 लाख रुपए का प्रावधान किया गया है.
सरिस्का एवं केवलादेव उद्यान में भी पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कार्ययोजना तैयार की गई है. नाबार्ड के सहयोग से रणथम्भौर, सरिस्का एवं केवलादेव में आने वाले तीन वर्षों के लिए 42 करोड़ 54 लाख रुपए की लागत से जल स्रोतों के विकास कार्य करवाने का प्रावधान भी किया गया है. राज्य में बाघों की सुरक्षा के लिए विशेष कदम उठाते हुए केंद्र प्रवर्तित योजना के अंतर्गत एक विशिष्ट बाघ संरक्षण बल के गठन की दिशा में प्रयास प्रारंभ किए गए हैं. इस पर प्रतिवर्ष 3 करोड़ 72 लाख रुपए खर्च कर बाघों की सुरक्षा की जाएगी. इसी प्रकार जोधपुर में माचिया क्षेत्र को सेंट्रल जू अथॉरिटी के मापदंडों के अनुसार बायोलॉजिकल पार्क के रूप में विकसित करने की परियोजना पर भी काम शुरू हो गया है. total state

ऊंटों के लिए भी ब्यूटी सैलून

बाडमेर से चंदन भाटी की रिपोर्ट
भारत-पाकिस्तान की सीमा पर बसे राजस्थानी जिले बाड़मेर के ऊंट विश्व में अपनी खास पहचान रखते हैं. रेगिस्तान के जहाज के नाम से मशहूर इन ऊंटों की पशुपालक खास देखभाल करते हैं. एक दशक में ऊंटों की संख्या में काफी कमी आई है. कभी ग्रामीण अंचल में ऊंट घर-घर की जरूरत रहे हैं. रेगिस्तानी धोरों में संचार व यातायात के बेहतर साधनों में ऊंटों का ही उपयोग किया जाता था तो खेतोंं में जुताई का काम भी किसान ऊंटों के माध्यम से ही करते थे.
संचार, यातायात और कृषि के उन्नत साधनों ने ऊंटों का महत्व काफी कम कर दिया. ऊंट कभी पशु मेलों की जान हुआ करते थे और उनकी कीमत लाखों में लगती थी. आज ऊंट मेलों में ऊंट मालिकों को उनकी पर्याप्त कीमत नहीं मिलने के कारण तरह-तरह के जतन करने पड़ रहे हैं. ऊंटों की खूबसूरती बढ़ाने के लिए अब जगह-जगह ब्यूटी पार्लर खुल गए हैं जहां ऊंटों को सजाया-संवारा जाता है.
डेज़र्ट ब्यूटी पार्लर ऐसा ही सैलून है जहां ऊंटों की विशेष कटिंग की जाती है. सैलून संचालक मगाराम बताते हैं कि ऊंटों की कीमतें कम होने के कारण ऊंट पालकों के सामने आजीविका का भारी संकट खड़ा हो गया है. ऊंट पालक अपने ऊंटों को खास लुक देने के लिए तरह-तरह की कटिंग करवाकर लोगों को आकर्षित करते हैं. इससे कई मर्तबा ऊंट पालकों को अच्छे खरीदार मिल जाते हैं. आजकल ऊंटों के शरीर पर विशेष प्रकार की कटिंग करके टैटू बनाए जाते हैं. मगाराम के मुताबिक यह टैटू लोगों को काफी आकर्षित करते हैं. विशेष प्रकार के टैटू बनाने की कीमत 500 से 700 रुपए तक ली जाती है.
उधर, जैसलमेर में आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए भी ऊंट विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं. राजस्थान में कैमल सफारी की सवारी के लिए बुकिंग हाथों-हाथ हो जाती है, साथ ही किराया भी अच्छा मिलता है. कैमल सफारी का काम करने वाले सादिक खान ने बताया कि ऊंटों का रूप संवारने का अच्छा खासा लाभ मिलता है. ऊंटों के बालों पर तरह-तरह की कटिंग करवाकर फूल-पत्ती, बेल-बूटे आदि उकेरे जाते हैं. सैलानियों को इस तरह के डिजाइन काफी पसंद आते हैं और इस तरह के कैमल सफारी उनकी पहली पसंद होते हैं. पूर्व में ऊंटों के इस तरह के सैलून नहीं होते थे, मगर विभिन्न पशु मेलों में इनका प्रचलन देखकर बाड़मेर और जैसलमेर में इस तरह के कैमल ब्यूटी पार्लर काफी संख्या में खुल गए हैं, जो रेगिस्तान के जहाज को संवारने का काम करते हैं. पूर्व में पशुपालक स्वयं ऊंटों के बाल काटते थे. ग्रामीण क्षेत्रों में सभी पशुपालक एक स्थान पर एकत्रित हो जाते थे और ऊंटों के बाल काटते थे लेकिन अब आधुनिक ब्यूटी पार्लर खुल गए हैं जहां ऊंटों के विशेष डिजाइन से बाल काटे जाते हैं.


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थोड़े हिंदू, थोड़े मुसलमां, पूरे इंसां

योगिंदर सिकंद
नसीब खान ने हाल ही में अपने बेटे प्रकाश सिंह की शादी राम सिंह की बेटी गीता से की. तीन महीने पहले हेमंत सिंह की बेटी देवी का निकाह एक मौलवी की मौजूदगी में लक्ष्मण सिंह से हुआ. माधो सिंह को जब से याद है वो गांव की ईदगाह में नमाज पढ़ते आ रहे हैं मगर जब होली या दीवाली का त्यौहार आता है तो भी उनका जोश देखने लायक होता है.
नामों और परंपराओं के इस अजीबोगरीब घालमेल पर आप हैरान हो रहे होंगे. मगर राजस्थान के अजमेर और ब्यावर से सटे करीब 160 गांवों में रहने वाले करीब चार लाख लोगों की जिंदगी का ये अभिन्न हिस्सा है. चीता और मेरात समुदाय के इन लोगों को आप हिंदू भी कह सकते हैं और मुसलमान भी. ये दोनों समुदाय छोटे किसानों और भूमिहीन मजदूरों से मिलकर बने हैं और इनमें आपसी विवाह संबंधों की परंपरा बहुत लंबे समय से चली आ रही है. खुद को चौहान राजपूत बताने वाले ये लोग अपना धर्म हिंदू-मुस्लिम बताते हैं. उनका रहन-सहन, खानपान और भाषा काफी-कुछ दूसरी राजस्थानी समुदायों की तरह ही है मगर जो बात उन्हें अनूठा बनाती है वो है दो अलग-अलग धर्मों के मेल से बनी उनकी मजहबी पहचान.
ये समुदाय कैसे बने इस बारे में कई किस्से प्रचलित हैं. एक के मुताबिक एक मुसलमान सुल्तान ने उनके इलाके पर फतह कर ली और चीता-मेरात के एक पूर्वज हर राज के सामने तीन विकल्प रखे. फैसला हुआ कि वो इस्लाम, मौत या फिर समुदाय की महिलाओं के साथ बलात्कार में से एक विकल्प को चुन ले. कहा जाता है कि हर राज ने पहला विकल्प चुना मगर पूरी तरह से इस्लाम अपनाने के बजाय उसने इस धर्म की केवल तीन बातें अपनाईं—बच्चों को खतना करना, हलाल का मांस खाना और मुर्दों को दफनाना. यही वजह है कि चीता-मेरात अब भी इन्हीं तीन इस्लामी रिवाजों का पालन करते हैं जबकि उनकी बाकी परंपराएं दूसरे स्थानीय हिंदुओं की तरह ही हैं.
मगर चीता-मेरात की इस अनूठी पहचान पर खतरा मंडरा रहा है. इसकी शुरुआत 1920 में तब से हुई जब आर्य समाजियों ने इन समुदायों को फिर पूरी तरह से हिंदू बनाने के लिए अभियान छेड़ दिया. आर्यसमाज से जुड़ी ताकतवर राजपूत सभा ने समुदाय के लोगों से कहा कि वो इस्लामी परंपराओं को छोड़कर हिंदू बन जाएं. कहा जाता है कि कुछ लोगों ने इसके चलते खुद को हिंदू घोषित किया भी मगर समुदाय के अधिकांश लोग इसके खिलाफ ही रहे. उनका तर्क था कि उनके पूर्वज ने मुस्लिम सुल्तान को वचन दिया था और इस्लामी रिवाजों को छोडऩे का मतलब होगा उस वचन को तोडऩा.
अस्सी के दशक के मध्य में चीता-मेरात समुदाय के इलाकों में हिंदू और मुस्लिम संगठनों की सक्रियता बढ़ी जिनका मकसद इन लोगों को अपनी-अपनी तरफ खींचना था. अजमेर के आसपास विश्व हिंदू परिषद ने भारी संख्या में इस समुदाय के लोगों को हिंदू बनाया. उन्हें अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए इस संगठन ने गरीबी से ग्रस्त इस समुदाय के इलाकों में कई मंदिर, स्कूल और क्लीनिक बनाए. विहिप का दावा है कि चीता-मेरात पृथ्वीराज चौहान के वंशज हैं और उनके पूर्वजों को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया था.
मगर समुदाय का एक बड़ा हिस्सा अब भी इस तरह के धर्मांतरण के खिलाफ है. इसकी एक वजह ये भी है कि हिंदू बन जाने के बाद भी दूसरे हिंदू उनके साथ वैवाहिक संबंध बनाने से ये कहते हुए इनकार कर देते हैं कि मुस्लिमों के साथ संबंधों से चीता-मेरात अपवित्र हो गए हैं.
इस इलाके में इस्लामिक संगठन भी सक्रिय हैं. इनमें जमैतुल उलेमा-ए-हिंद, तबलीगी जमात और हैदराबाद स्थित तामीरे मिल्लत भी शामिल हैं जिन्होंने यहां मदरसे खोले हैं और मस्जिदें स्थापित की हैं. जिन गांवों में ऐसा हुआ है वहां इस समुदाय के लोग अब खुद को पूरी तरह से मुसलमान बताने लगे हैं. हिंदू संगठनों के साथ टकराव और प्रशासन की सख्ती के बावजूद पिछले दो दशक के दौरान इस्लाम अपनाने वाले इस समुदाय के लोगों की संख्या उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है.
मगर इस सब के बावजूद चीता-मेरात काफी कुछ पहले जैसे ही हैं. हों भी क्यों नहीं, आखिर पीढियों पुरानी परंपराओं से पीछा छुड़ाना आसान नहीं होता. समुदाय के एक बुजुर्ग बुलंद खान कहते हैं, हमारा दर्शन है जियो और जीने दो. लोगों को ये आजादी होनी जाहिए कि वो जिस तरह से चाहें भगवान की पूजा करें. खान मानते हैं कि उनमें से कुछ अपनी पहचान को लेकर शर्म महसूस करते हैं. वो कहते हैं, लोग हमें ये कहकर चिढ़ाते हैं कि हम एक ही वक्त में दो नावों पर सवार हैं. मगर मुझे लगता है कि हम सही हैं. हम मिलजुलकर साथ-साथ रहते हैं. हम साथ-साथ खाते हैं और आपस में शादियां करते हैं. धर्म एक निजी मामला है और इससे हमारे संबंधों पर असर नहीं पड़ता.
खान के भतीजे रोहन सिंह बीच में बोल पड़ते हैं, हम खास हैं. मुझे नहीं लगता कि पूरे भारत में हमारे जैसा कोई दूसरा समुदाय होगा.
उनकी बात में दम है.

एक हवेली, एक कहानी

देवेश वशिष्ठ खबरी
पुरानी हवेलियां बूढ़ी औरतों सी होती हैं. इठलाते बचपन की तरह किसी ने उन्हें प्यार से उठाया. जवान अल्हड़ नक्काशियां की. उनकी चुनरी पर धानी, नीले, लाल और चटख रंग भरे. फिर इन नशीली हवेलियों ने बुढ़ापे का वो दौर भी देखा जब उनकी ड्योढ़ी की रौनक धीरे-धीरे कर खत्म होने लगी. कभी-कभी राजस्थान के राजपूताना किले, हवेलियां, शाही छतरियां और बावडिय़ां, इतिहास की गाढ़ी मोटी जिल्द में लिपटी किसी किताब की कहानियों सरीखे भी लगते हैं, जिन्हें आज भी पढ़ा-सुना जा सकता है. और इन कहानियों के पात्र जैसे अब भी वहीं मौजूद हों...दीवारों पर बने भित्ति चित्रों की शक्ल में. दीवारों पर उकरे रंग. छतरियों पर छितरे रंग. छज्जों में छिपते रंग. आलों में खोए रंग. राजा रंग. दासी रंग. सैनिक रंग. सेठिया रंग. अगर मुझे कोई दोबारा व्याकरण गढऩे की इज़ाजत दे दे तो इन हवेलियों में बैठकर मैं रंगों को यही नाम दे सकूंगा.
राजस्थान की जमीन पर कई जगह प्रकृति ने उजास रंग नहीं भरे तो यहां की आवारगी ने सतरंगी रंगों में सराबोर 'सवा सेर सूतÓ हर सिर पर बांध लिया. रंगों की इसी चाह ने रेतीले मटीले राजस्थान के हर घर को हवेली बना दिया और हर दीवार को आर्ट गैलेरी.
राजस्थान का शेखावाटी 'ओपन आर्ट गैलेरीÓ कहा जाता है. चुरू, झुंझनू और सीकर जिलों को मिलाकर एक शब्द में 'शेखावाटीÓ कहने का रिवाज है. इसी शेखावाटी में झुंझनू जिले का नवलगढ़ हर सुबह सूरज से रंगों की तश्तरी लेकर हर घर को हवेली बना देता है. नवलगढ़ में तकरीबन 700 छोटी-बड़ी हवेलियां हैं. हर हवेली की देहरी और उसके पार का चौबारा बातें करता है. अगर सिर्फ भव्य और बड़ी हवेलियों की बात करें तो भी 200 का आंकड़ा तो पार हो ही जाएगा. नवलगढ़ की हवेलियों के बारे में सुना था. पर जब देखने पहुंच गया तो लगा कि सावन का अंधा हो गया हूं. हर तरफ सिर्फ रंग ही रंग दिख रहे हैं. दीवारों पर उकरे रंग. छतरियों पर छितरे रंग. छज्जों में छिपते रंग. आलों में खोए रंग. राजा रंग. दासी रंग. सैनिक रंग. सेठिया रंग. अगर मुझे कोई दोबारा व्याकरण गढऩे की इज़ाजत दे दे तो इन हवेलियों में बैठकर मैं रंगों को यही नाम दे सकूंगा. जितने रंग उतनी हवेलियां. जितनी हवेलियां उतनी कलाकारी. और जितनी कलाकारी उतनी कहानियां. 'जित देखूं, तित तूंÓ हर गली में हवेली. हर घर हवेली. मोरारका की हवेली... पोद्दार की हवेली... सिंघानिया की हवेली... गोयनका की हवेली... जबलपुर वालों की हवेली... जोधपुर वालों की हवेली... कलकत्ता वालों की हवेली... सेठ जी की हवेली... सूबेदार की हवेली... राजा की हवेली... हर मौसम की हवेली... जैसे पुराना रोम जूलियस सीजर जैसे उपन्यासों से झटके से बाहर उतर पड़ा है और हर काला हर्फ एक हवेली बन गया है.
नवलगढ़ के इन रंगमहलों को देखकर मन में सवाल उमडऩे-घुमडऩे लगे- किसने बनवाईं इतनी हवेलियां? एक साथ... एक जैसी... और यहीं क्यों... इतनी सारी...
वहां के लोगों से पूछा- जितने मुंह उतनी कहानियां... हर कहानी की अलग वजहें... और हर वजह के अपने-अपने सवाल...मन नहीं माना तो किताबें कुरेदनी शुरू कीं. किसी ने बताया कि यहां से सिल्क रूट गुजरता था. दो सदी पहले तक यहां 36 करोड़पतियों के घराने थे. एक हवेली बनी. दूसरी बनी. तीसरी... चौथी और फिर पूरा शहर बस गया. खाटी हवेलियों का शहर. शेखावाटी के लिखित-अलिखित इतिहास के जानकारों के मुताबिक पन्द्रहवीं शताब्दी(1443) से अठारहवीं शताब्दी के मध्य यानी 1750 तक शेखावाटी इलाके में शेखावत राजपूतों का आधिपत्य था. तब इनका साम्राज्य सीकरवाटी और झुंझनूवाटी तक था. शेखावत राजपूतों के आधिपत्य वाला इलाका शेखावाटी कहलाया. लेकिन भाषा-बोली, रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा और सामाजिक-सांस्कृतिक एकरूपता होने के नाते चुरू जिला भी शेखावटी का हिस्सा माना जाने लगा. इतिहासकार सुरजन सिंह शेखावत ने अपनी किताब 'नवलगढ़ का संक्षिप्त इतिहासÓ की भूमिका में लिखा है कि राजपूत राव शेखा ने 1433 से 1488 तक यहां शासन किया. इसी किताब में एक जगह लिखा है कि उदयपुरवाटी(शेखावाटी) के शासक ठाकुर टोडरमल ने अपने किसी एक पुत्र को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने के स्थान पर 'भाई बंट प्रथाÓ (सभी बेटों में राज्य का बंटवारा) लागू कर दी. नतीजतन एक-एक गांव तक चार-पांच शेखावतों में बंट गया. इस प्रथा ने शेखावतों को राजा से भौमिया(एक भूमि का मालिक) बना दिया. ऐसा ही कुछ झुंझनू के उस वक्त के शासक ठाकुर शार्दूल सिंह ने किया और झुंझनू उनके पांच पुत्रों- जोरावर सिंह, किशन सिंह, अखैसिंह, नवल सिंह और केशर सिंह की भूमियों में बंट गया. नवल सिंह का नवलगढ़ उसी भाई बंट प्रथा का ही एक नमूना है. केन्द्रीय सत्ता के अभाव ने सेठ-साहूकारों और उद्योगपतियों को खूब फलने-फूलने का मौका दिया. हवेलियों के रंग पहले संपन्नता के प्रतीक बने, और फिर परंपरा बन गये. खेती करते हुए किसान से लेकर युद्ध करते सेनानी तक. रामायण की कथाओं से लेकर महाभारत के विनाश तक. देवी-देवताओं से लेकर ऋषि-मुनियों तक... पीर बाबा के इलाज से लेकर रेलगाड़ी तक... हवेली की हर चौखट, हर आला रंगा-पुता. इंसान की कल्पना जितनी उड़ान भर सकती है, इन हवेली की दीवारों पर उड़ी. जो कहानी चितेरे के दिमाग पर असर कर गई वो दीवार पर आ गई. जो बात दिल में दबी रह गई, उससे भी हवेली की दीवारों को रंगीन कर दिया गया...
आज़ादी के बाद हवेलियों के संपन्न मालिकों ने देश-विदेश के बड़े-बड़े शहरों का रुख किया और जितनी तेजी से एक हवेली को देखकर दूसरी बनी थी उसी तरह एक पर ताला जड़ा तो दूसरी हवेलियों के दरवाजे भी धड़ाधड़ बंद होने लगे. शेखावाटी की हवेलियों के रंग फीके पडऩे लगे हैं. अचानक जैसे इठलाती हवेलियां बूढ़ी हो गई हैं. इन बूढ़ी मांओं को सहारे की ज़रूरत है. जो इन्हें देखे... इनकी देखभाल करे.total state

पुष्कर मेला

अजमेर से 11 कि.मी. दूर हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पुष्कर है. यहां पर कार्तिक पूर्णिमा को मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक भी आते हैं. हजारों हिन्दु लोग इस मेले में आते हैं व अपने को पवित्र करने के लिए पुष्कर झील में स्नान करते हैं. भक्तगण एवं पर्यटक श्री रंग जी एवं अन्य मंदिरों के दर्शन कर आत्मिक लाभ प्राप्त करते हैं.
राज्य प्रशासन भी इस मेले को विशेष महत्व देता है. स्थानीय प्रशासन इस मेले की व्यवस्था करता है एवं कला संस्कृति तथा पर्यटन विभाग इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयाजन करते हैं.
इस समय यहां पर पशु मेला भी आयोजित किया जाता है, जिसमें पशुओं से संबंधित विभिन्न कार्यक्रम भी किए जाते हैं, जिसमें श्रेष्ठ नस्ल के पशुओं को पुरस्कृत किया जाता है. इस पशु मेले का मुख्य आकर्षण होता है.
भारत में किसी पौराणिक स्थल पर आमतौर पर जिस संख्या में पर्यटक आते हैं, पुष्कर में आने वाले पर्यटकों की संख्या उससे कहीं ज्यादा है. इनमें बडी संख्या विदेशी सैलानियों की है, जिन्हें पुष्कर खास तौर पर पसंद है. हर साल कार्तिक महीने में लगने वाले पुष्कर ऊंट मेले ने तो इस जगह को दुनिया भर में अलग ही पहचान दे दी है. मेले के समय पुष्कर में कई संस्कृतियों का मिलन सा देखने को मिलता है. एक तरफ तो मेला देखने के लिए विदेशी सैलानी पडी संख्या में पहुंचते हैं, तो दूसरी तरफ राजस्थान व आसपास के तमाम इलाकों से आदिवासी और ग्रामीण लोग अपने-अपने पशुओं के साथ मेले में शरीक होने आते हैं. मेला रेत के विशाल मैदान में लगाया जाता है. ढ़ेर सारी कतार की कतार दुकानें, खाने-पीने के स्टाल, सर्कस, झूले और न जाने क्या-क्या. ऊंट मेेला और रेगिस्तान की नजदीकी है इसलिए ऊंट तो हर तरफ देखने को मिलते ही हैं लेकिन कालांतर में इसका स्वरूप विशाल पशु मेले का हो गया है.total state

अतीत की आतंकी आहट

विदेशी मदद के जरिए पंजाब के युवाओं का आक्रोश भड़काकर आतंकवाद और खालिस्तान की मांग दोबारा जिंदा करने की कोशिशें हो रही हैं, बृजेश पांडे की रिपोर्ट
अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के पास लगी दुकानों में रोज की तरह आज भी काफी हलचल है. यहां सिख धर्म से जुड़े प्रतीकों और धार्मिक साहित्य की बिक्री होती है. बाकियों के मुकाबले दुकान नंबर 31 में लोगों की आवाजाही ज्यादा है. यहां खास तौर पर खालिस्तान आंदोलन के अगुआ और 1984 के ऑपरेशन ब्लूस्टार में मारे गए आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले से जुड़ी सीडी, किताबें, पोस्टर, कैलेंडर, टीशर्ट और स्टीकर मिलते हैं. दिलबाग सिंह की इस दुकान पर हम करीब एक घंटे तक खड़े रहते हैं और इस दौरान हमें दुकान पर आने वालों से दो सवाल बार-बार सुनने को मिलते हैं. 84 की सीडी हैंगा सी? और बाबा का पोस्टर देना.
आतंकियों के लिए दक्षिण-पूर्व एशिया के देश नई पनाहगाह बन रहे हैं जहां वे आसानी से घुसकर पाकिस्तान चले जाते हैं
पवन सिंह घर में चिपकाने के लिए एक पोस्टर खरीदते हैं. एक पोस्टर उनकी कार में लगा है. वे गर्व के साथ कहते हैं, बाबा जी हमारे संत हैं. और अगर ये आज होते तो सिखों की इतनी बेकद्री ना होती. इस दुकान से हर महीने भिंडरावाले के तकरीबन 450-500 पोस्टर और सीडी बिकती हैं. दिलबाग का अनुमान है कि पूरे पंजाब के लिए यह आंकड़ा 80-90 हजार होगा. वे कहते हैं, बाकी देश के लिए वे आतंकवादी हो सकते हैं लेकिन हमारे लिए वे पहले एक संत हंै और फिर एक लड़ाका.
दिलबाग की बात को यदि पिछले दिनों संसद में गृह राज्यमंत्री अजय माकन के बयान से जोड़कर देखें तो साफ हो जाता है कि राज्य में आतंकवादी गतिविधियां फिर बढ़ रही हैं. 16 अगस्त को माकन ने संसद में एक लिखित जवाब देते हुए सूचना दी थी, रिपोट्र्स बताती हैं कि सिख आतंकवादी समूह, खासतौर पर जिनके अड्डे विदेशों में हैं, पंजाब में आतंकवाद को दोबारा जिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं. हम उन पर लगातार नजर रखे हुए हैं...
पिछले दिनों राज्य में हुई कुछ गिरफ्तारियों पर नजर डालें तो यह आशंका और पुष्ट हो जाती है. पिछले साल पंजाब में 15 से ज्यादा आतंकवादियों को गिरफ्तार किया गया. एक आतंकवादी मुंबई से पकड़ा गया था. इनमें से ज्यादातर बब्बर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआई) के सदस्य थे. बीकेआई खालिस्तान आंदोलन का सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन माना जाता है. 1995 में राज्य के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या और 1985 के कनिष्क बम कांड के लिए यही संगठन जिम्मेदार है.
28 जुलाई को बीकेआई के कथित पांच आतंकवादियों की गिरफ्तारी हुई.
18 जुलाई को पुलिस ने बीकेआई के चार आतंकवादियों को उनके कमांडर हरमोहिंदर सिंह के साथ पकड़ा था. हरमोहिंदर लुधियाना के शिंगार सिनेमा बम ब्लास्ट का मास्टरमाइंड था.
26 मार्च को राजपुरा सेक्टर में बीकेआई के तीन सदस्य पकड़े गए.
21 फरवरी को खालिस्तान लिबरेशन फोर्स के दो आतंकवादियों जवीर सिंह और हरवंत सिंह को पकड़ा गया.
28 जून को पटियाला पुलिस ने बीकेआई के पांच लोगों को पकड़ा तो आतंक के अंतर्राष्ट्रीय गठजोड़ की बात सामने आई. पटियाला के एसएसपी रणबीर सिंह खत्रा कहते हैं, इनमें से एक परगट सिंह बम एक्सपर्ट था और मलेशिया में एक साल तक रह चुका था. हमें मिली और खुफिया सूचनाओं के आधार पर इसकी पुष्टि की जा सकती है कि पंजाब में आतंक फैलाने के लिए कनाडा व अमेरिका के कट्टरपंथी गुट और आईएसआई, मलेशिया, सिंगापुर और थाईलैंड की जमीन का इस्तेमाल कर रहे हैं.
आतंकवादियों के लिए दक्षिण-पूर्व एशिया के देश नई पनाहगाह बन रहे हैं. रणबीर इसकी वजह बताते हैं, ये पर्यटक स्थल हैं जहां एशियाई काफी तादाद में रहते हैं. आतंकवादियों के लिए यहां घुसना और वहां से बिना किसी दिक्कत के पाकिस्तान भागना आसान है. प्रशिक्षण के बाद वे इसी तरह आसानी से भारत आ जाते हैं और उन पर कोई शक भी नहीं करता. पंजाब पुलिस के पूर्व प्रमुख केपीएस गिल, जिन्हें राज्य में आतंकवाद के खात्मे का श्रेय दिया जाता है, कहते हैं, हो सकता है कोशिशें अभी बिलकुल शुरुआती स्तर पर हों लेकिन कनाडा, अमेरिका, और कुछेक यूरोपीय देशों में ठिकाना बनाकर बैठे कट्टरपंथी समूह पूरी कोशिश कर रहे हैं कि पंजाब में आतंक के दौर की वापसी हो जाए.
पंजाब में लगभग डेढ़ दशक से शांति थी. आतंकवादियों की ताजा सुगबुगाहट पर यह सवाल उठना लाजिमी है कि राज्य के युवाओं में दोबारा खालिस्तान आंदोलन की तरफ मुडऩे की आखिर वजह क्या है. जवाब है उपेक्षा. पंजाब के युवाओं की आकांक्षाओं की लगातार अनदेखी की गई है, खालसा एक्शन कमेटी के संयोजक मोखम सिंह बताते हैं, राज्य और केंद्र दोनों ने पंजाब के युवाओं के सपनों का दमन किया है. राज्य तो बहुत धनी है लेकिन लोग गरीबी में जी रहे हैं. इसलिए उनमें काफी गुस्सा है, इसे कोई नहीं समझ रहा है. यहां रोजगार के मौके नहीं हैं. कुछ नहीं है.
दल खालसा के प्रवक्ता कंवर पाल सिंह कहते हैं, ये बच्चे भावुक हैं, उनकी भावनाएं आहत हैं. उनके मां-बाप, रिश्तेदारों और आम सिखों के साथ जो हुआ, ये उसे देख-सुनकर बड़े हुए हैं. आप एक पीढ़ी को मार देते हैं तो दूसरी आ जाती है. जैसे कश्मीर में हुआ जहां पुरानी पीढ़ी से कमान युवा पीढ़ी ने ले ली है, यहां भी वैसा ही है. राज्य के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी इससे इत्तेफाक रखते हैं. नाम न बतानेे की शर्त पर वे कहते हैं, आतंकी गतिविधियां चलाने वालों के लिए ये युवा, जिनके पास न कोई रोजगार है न भविष्य, आसान शिकार हैं. सीमा से लगती आबादी में तो नशीली दवाओं ने हालात काफी बिगाड़ दिए हैं. आतंकवादी सरगना वहां ऐसे युवाओं की बातें सुनते हैं, उन्हें दिलासा देते हुए कुछ पैसा देते हैं और उनके गुस्से का इस्तेमाल भारत के खिलाफ गतिविधियों के लिए करते हैं.
पंजाब पुलिस से जुड़े सूत्र बताते हैं कि राज्य में आतंकवाद के दोबारा उभार की बात भले ही नजरअंदाज की जा रही हो लेकिन जनवरी, 2004 में फरार हुए आतंकवादी जगतार सिंह हवारा की गतिविधियां सरकार की आंखें खोलने के लिए काफी हैं. भारत में बीकेआई का मुखिया जगतार सिंह चंडीगढ़ की बुड़ैल जेल तोड़कर भागा था. जांच रिपोर्ट बताती है कि इस दौरान उसने भारी मात्रा में असलाह, जिसमें 35 किलो आरडीएक्स सहित कई एके-47 बंदूकें शामिल थीं, जुटा लिया था. यही नहीं, पंजाब में उससे सहानुभूति रखने वाले 100 से ज्यादा लोगों ने असलाह इक_ा करने और उसके रहने-खाने की व्यवस्था करने में मदद की थी. हालांकि जगतार सिंह को 18 महीने बाद पकड़ लिया गया, लेकिन ये जानकारियां चेतावनी के संकेत जैसी तो हैं ही.
खुफिया एजेंसियों से जुड़े सूत्र भी इन मामलों में पाकिस्तान की आईएसआई के हाथ होने की पुष्टि करते हैं. मोखम सिंह बताते हैं, पंजाब में लंबे समय से शांति का माहौल रहा है लेकिन आईएसआई, बीकेआई जैसे समूहों पर दबाव डाल रही है कि वे पंजाब में फिर से अपनी गतिविधियां शुरू करें. आईएसआई कनाडा से इस तरह के दूसरे गुटों के लिए फंड जुटाने का काम कर रही है. मोखम सिंह कहते हैं, 1990 के आसपास आतंकवाद खत्म होने के बाद से कुछ नहीं बदला है. एक लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई लेकिन कोई हल नहीं निकला. सब कुछ वैसा ही है. हम बारूद के ढ़ेर पर बैठे हैं जिसके लिए एक चिंगारी ही काफी होगी. total state

आरटीआई सूचना का अधिकार कितना उपयोग कितना दूरूपयोग

वैसे तो मनुष्य पैदा होते ही हजारों अधिकार लेकर पैदा होता है, लेकिन युवा होने तक कई सैकड़ों अधिकारों का हकदार बन जाता है। यही कारण है कि आज देश भर में अपने हकों और अधिकारों को लेकर लड़ाई झगड़ा सम्प्रदायिक दंगें व आतंकवाद जैसे राक्षषों ने जन्म ले लिया है। इन के साथ—साथ सुचना का अधिकार भी शामिल हो गया है, लेकिन जिस अधिकार को लेकर आज हर कोई सर उठाए खड़ा है कि अधिकार आखिर क्या चीज है अधिकार किसे कहते है। आज घर मकान जमीन से लेकर देश प्रांतों को लेकर अपना अधिकार जताते हुए मांग करते हुए नजर आते है। मनुष्य जरा सा भी नहीं सोचता की जिस देश को हम अपना अधिकार जताते है अपना गुलाम बनाना चाहते है क्या यहीं सब करना मनुष्य का अधिकार है।
यदि इन बातों को छोड़ कर बात आज की यानी बीसवीं सताब्दी की करे तो आज मनुष्य के हाथ जिस का नाम (आरटीआई) सुचना का अधिकार जैसा हथियार हाथ लग गया है जो सिधा—सिधा ब्रह्म अस्त्र सावित हो रहा है। वैसे तो भारत देश में लोकतंत्र आजादी से पहले से ही जन्म ले चुका है आज 63 वर्ष के बाद भी आजादी का जश्र तो हर वर्ष मनाते है, लेकिन असली आजादी को लेकर कोई भी जानने की जहमत नहीं उठाता हर नागरिक अपने आप को स्वतंत्र भारतीय कहता है, लेकिन हम 70-75 वर्ष पहले के देखों तो हर व्यक्ति अपने अधिकार को एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में सौप दिया था जिसे हम राजा कहते थे। उस समय भी मानव आजाद तो था स्वतंत्र तो था, लेकिन अपने राजा के आगे उसे अपने हक व अधिकार का उपयोग करना मना ही था, लेकिन अंग्रेजों के आने के बाद देश की शासन व प्रशासन प्रणाली वैसी नहीं रही और अंग्रेजों के भारत से जाने के बाद देश की शासन व प्रशासन प्रणाली बदल गए। ठिक उसी तरह 12 अक्तुबर 2005 को देश के हर व्यक्ति को मानव अधिकार प्राप्त हुआ जिसका नाम सूचना का अधिकार (आरटीआई) प्राप्त हुआ है। इस अधिकार के प्राप्त होते ही देश में एक नए लोकतंत्र का उदय हुआ।
सूचना के अधिकार के माध्यम से देश के हर नागरिक को देश व प्रदेशों के शासन व प्रशासन से उसके कार्य को लेकर व नागरिक से जुड़े हर पहलुओं के बारे में सवाल करने के लिए नई लोकतंत्र भूमिका में ला खड़ा कर दिया है। इस सूचना के अधिकार के तहत देश के नागरिक को अपने प्रलंबित कामों के लिए सरकारी दफ्तरी बाबूओं के आगे गिड़गिड़ाने की आवश्यकता नहीं रही। अगर आप का काम नहीं हुआ तो आप सरकारी कर्मचारी व बड़े अधिकारी तक को अपने सवालों के घेरे में लेकर उनकी वाट लगा सकता है कि आपने मेरा काम क्यों नहीं किया था। इस बात को कहने में भी संकोच नहीं रहा की आप को महीने भर की पगार किस काम की दी जाती है। यहीं सूचना का अधिकार बह्म अस्त्र बन कर हर नागरिक के हाथ मे लगा है जिसके आगे हर कोई नतमस्तक है।
लेकिन यह कानून लागू क्यों हुआ आज कई लोगों के दिमाग को यह बात सून्न कर चुकी है। मगर सूचना का अधिकार तो देश में भ्रष्टाचार को खत्म करने में का नाम है। इस भ्रष्टाचार नामक दीमक को नष्ट करना है जो कि देश की जड़ों में लग चुकी है और हर साख तक पहुंचने की कोशिश कर रही है। वैसे तो विश्व में स्विडन विश्व का पहला देश है जिसने 240 वर्ष पहले सूचना का अधिकार लागू किया था। वहीं पर 1766 को (फ्रिडम ऑफ प्रैस) एक्ट पारित हुआ था। उसके बाद फिन लैंड में 1959 को कानून के रूप में सूचना का अधिकार लागू हुआ। उसके बाद अमेरिका में 1966 में कानून लागू हुआ। इसी तरह हर दो—तीन वर्षों के बाद विदेशों में ऑस्ट्रैलिया, कनेड़ा, न्यूजिलैंड आदी देशों में सूचना का अधिकार लागू हुआ था।
लेकिन भारत में सिर्फ राजस्थान पहला राज्य है जिसने सूचना का अधिकार लागू करने की कोशिश की। यहां पर मजदूर संगठनों ने मिल कर जोरों शोर से आंदोलन किया और देश में पहला कानून सूचना का अधिकार राजस्थान की वजाय तामिलनाडू में 17 अप्रैल 1997 को लागू हुआ। इस तीन महीने के बाद गोवा में उसके बाद मध्य प्रदेश में व 2000 को कर्नाटक में व दिल्ली में 2001, महाराष्ट्र में 2002 को लागू हुआ। यह कानून बनाने के लिए राजस्थान से (निखिल डे), दिल्ली से (अरविंद केजरीवाल), महाराष्ट्र के अन्ना हजारे ने वहुत बड़ा योगदान दिया इसके बाद केंद्र सरकार ने पुरे देश भर में 12 अक्तुबर 2005 को यह कानून सूचना का अधिकार लागू कर दिया। इस कानून को लागू होते ही कई शहरों व विभागों में हड़कंप मच गया। कुछ लोगों के खुशी से चेहरे लाल हो गए, लेकिन आरटीआई है क्या इसका इस्तेमाल कैसे किया जाए अभी तक पुरी तरह से भी मालूम नहीं था। मगर फिर भी देश के हर एक व्यक्ति को इसकी परिभाषा का ज्ञान एक दूसरे के माध्यम से हो रहा है, लेकिन आज देश में कई बड़े शहरों में आरटीआई सूचना का अधिकार के नाम से संगठन व बड़े कलव कई समूह बन चुके है। जिन के माध्यम से नागरिकों को सूचना का अधिकार का सही उपयोग बताया जा रहा है। मगर इसका सही उपयोग कुछ ही प्रतिशत हो रहा है। कुछ लोगों की सोच तो बिल्कुल इस कानून के बिपरीत होती नजर आ रही है।
क्योंकि अगर अपने विभाग में किसी कर्मचारि की अपने अधिकारी से अच्छी बनती है या फिर अधिकारी का किसी मसहुर नेता से अच्छे संबंध है उसके यहां आना जाना है तो उसी विभाग का कोई कर्मचारी झट से आरटीआई आवेदक के पास पहुंच जाता है और अपनी विभाग की कई जानकारियों देते हुए विभाग में कर्मचारी अधिकारी या विभाग से कई जुड़ी जानकारियां प्राप्त करने के लिए सूचना के अधिकार के माध्यम से प्राप्त करने के लिए आवेदन करबाता है और फिर जब तक उस विभाग से जानकारी नहीं आ जाती तब तक वह कर्मचारी की आंखें विभाग की हर कर्मचारी की हर्कतों पर गड़ी रहती है। अपने कार्य के तरफ कम और दूसरे की हरकतों पर ज्यादा ध्यान रहता है ऐसा क्यों? शायद इसी लिए की जिस कर्मचारी के माध्यम से सूचना का अधिकार प्राप्त सूचना मिली है उस कर्मचारी को उसके हक अधिकार की सही कीमत नहीं मिली होगी। या फिर विभाग में जितना पैसा आया था उसमें से कुछ प्रतिशत हिस्सा बड़े अधिकारी ने अपने हित के लिए खर्च कर लिया होगा और जिसका बटवारा वहीं कर्मचारी चाहता है जिसने आरटीआई के माध्यम से जानकारी लेने के लिए आवेदक करवाया है। वह अधिकारी वाट लग गई। ऐसे ही कई मामले बड़े देशों से लेकर छोटे शहरों तथा गांव में सामने आ रहे है। कई विभागों व संस्थाओं की सूचना प्राप्त करने के बाद कुछ भी घोटाला या भ्रष्टाचार जैसा सावित कुछ भी नहीं होता। मगर विभाग की 15 से 20 दिनों तक उठ वैठ हो जाती है। अगर विभाग का कोई अधिकारी व कर्मचारी यह कहता है कि 15 से 30 दिन के अंदर पूरे 4—5 सालों को खाका तैयार करते—करते थक गए है तो उन्हें जबाव आता है कि आप पैसे किस बात के लेते है। आप को महीने भर की तनखवा किस काम की दी जाती है।
आज देश में ग्रामीण रोजगार के तहत देश के देहाती बड़े — छोटे शहरों व गांव में नरेगा का कार्य जोरों सोर से चला है और इसका फायदा गांव में रहने वाले कई प्रतिशत लोगों को हुआ हैं। जिससे रोजगार भी मिला धन भी मिला साथ ही साथ अपने ही गांव में पानी, स्कूल तथा सड़कों का कई प्रकार से विकास हुआ। नरेगा के तहत जो लोग रोजगार कमाने के लिए घर से वाहर जाते थे उन्हें घर पर ही रोजगार मिल रहा है। इस कार्य में सबसे ज्यादा महिलाएं आगे आई हैं। जिन महिलाओं ने कभी रुपयों को अपने हाथ में पकड़ कर ठीक ढंग से नहीं देखा था उन्होंने भी धन राशि एकत्रित करना सीख लिया है, लेकिन नरेगा में जितना ज्यादा धन और रोजगार है इसमें उतना ही भ्रष्टाचार भी पनप रहा है। आज आरटीआई के तहत नरेगा में हुई धांधलियों का परदाफास तो हुआ है साथ ही साथ कई पंचायति कर्मचारियों के साथ साथ प्रधानों को भी भ्रष्टाचार में संलिप्त पाए जाने पर उन्हें अपनी नोकरियों से हाथ धोना पड़ा है। आज हालात यह है कि किसी गांव का प्रधान नरेगा में घोटाला करता है तो इस बात का शक गांव के ही किसी व्यक्ति को हो जाता है तो वह पहले प्रधान से सांठगांठ करता है और जब उन्हें लगता है कि प्रधान उसकी बातों में नहीं आ रहा हैं तो उसकी आरटीआई डालने के बारे में सोचता है। भले ही आरटीआई की जानकारी ना हो फिर भी जहां तक उसकी सोच है प्रधान की कार्य की जानकारी प्राप्त करता और किसी आरटीआई आवेदक के नाम से जानकारी प्राप्त करता है और उसके हाथ प्रधान का घोटाला लग जाता है बस फिर क्या प्रधान के पास खबर पहुंच जाती है कि प्रधान के नाम की जानकारी किस व्यक्ति के हाथ लगी है फिर शुरू हो जाती है आरटीआई दवाने की बात। ले दे कर दोनों के बीच सौदा तय हो जाता है और आरटीआई का नाम खत्म हो जाता है और प्रधान के घोटाले को बड़े अधिकारी तक पहुंचने से पहले तक दवा दिया जाता है। इसी तरह से आरटीआई के माध्यम से कई लोगों ने अपनी दुकान चला रखी है जो कि बिल्कुल गलत है।
बहुत से आरटीआई आवेदक इसकी सही जानकारी प्राप्त कर के दूसरे लोगों को भी जानकारी देने के वजाय इसका उपयोग भ्रष्टाचार फैलाने में कर रहे है। आज देश में सौकड़ों विभाग ऐसे है जिनकी कार्यशौली पर किसी ने भी आज तक आंख तक नहीं उठाई है और इस विभागों में भ्रष्टाचार की गारंटी भी कोई नहीं है हुआ है या नहीं, लेकिन कुछ लोग आरटीआई के माध्यम से विभागों की जानकारी प्राप्त कर के पकड़ेे जाने पर बड़े अधिकारी से सांठगांठ कर के भ्रष्टाचार के ऊपर पड़े परदे को उठाने के वजाय भ्रष्टाचार पर और परदा डाल रहे है। यह आरटीआई का उपयोग है या दुरूपयोग इस बात को भलीभांति जाना जा सकता है।
आज ज्यादातर लोग आरटीआई का उपयोग अपनी पैंशन, ऐरियर, प्रोमोशन या अपनी महीने भर के पगार को बड़ाने के लिए इस्तेमाल कर रहे है। यह बात भी आरटीआई का उपयोग नहीं बताती है आरटीआई अपने हित के साथ—साथ जनता के कार्य व हित में उपयोग में लाने वाले कानून का नाम है ना कि अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए। आरटीआई के माध्यम से हम अपने गांव या शहर में आने वाले पैसों का सही उपयोग हो रहा है या नहीं यह धन राशि जनता के कार्य में लग रही है कि नहीं की जानकारी सूचना के अधिकार के माध्यम से ले सकते है तथा किसी भी विभाग में घोटाला और भ्रष्टाचार हो रहा है तो उसको भी खत्म करने में आरटीआई सक्ष्म है। आज देश में आरटीआई के माध्यम से सैकड़ों हजारों लोगों के साथ—साथ विभागों और प्रशासन को भी फायदा हुआ हैं। विभागों में बैठे हुए कई भ्रष्ट कर्मचारियों को भी आरटीआई की माध्यम से ही पकड़ा गया है। आज देश के जरूरतमंदों को अनाज, मकान व रोगजार तक आरटीआई के माध्यम से ही प्राप्त हुआ है। कई जगह पर तो आरटीआई के माध्यम से नई कानून तक बन चुके है। कई गांव को अपना अधिकार मिला है इन गांव में वर्षों से रूकी हुई कई योजना को भी आरटीआई के माध्यम से नया रूप मिला है, लेकिन भ्रष्टार की दिमक अभी भी कई विभागों में सरकारी धन व जनता के अधिकारों को चाटने में लगी हुई है। जिसको बाहर निकाल कर फेकना अति आवश्यक है। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब भारत का हर नागरिक रो उठेगा और मुंह से एक आवाज निकलेगी की फिर गुलामी आ गए। आज अगर केंद्र सरकर हो या केंद्र प्रशासन के माध्यम से आरटीआई का कानून देश के हर नागरिक को प्राप्त हुआ है तो उसे देश के हर नागरिक को सोचना चाहिए यह उसे प्राप्त सरकार के माध्यम से कानून ही नहीं बल्कि भ्रष्टाचार को रोकने के लिए व्रह्मास्त्र हाथ लगे है। यह कार्य आरटीआई क्लॉब या आरटीआई आवेदक का नहीं बल्कि हर नागरिक का है और देश का हर नागरिक आरटीआई आवेदक बन सकता है। जिस कारण आरटीआई के माध्यम से भ्रष्टाचार की दिमक को बाहर निकालकर फेंका जा सकता है। बसर्ते आरटीआई की सही जानकारी व उपयोग होना चाहिए।total state

ईद-उल-जुहा

यह त्यौहार अरबी में ईद-उल-जुहा और भारतीय उपमहाद्वीप में बकरीद के नाम से जाना जाता है। क्योंकि इस अवसर पर बकरे की कुर्बानी या बलि की परंपरा है। ईद-उल-जुहा में ईद शब्द अरबी भाषा के आईद से बना, जिसका अर्थ है उत्सव। इसी प्रकार जुहा शब्द अरबी शब्द उज्जहैय्या से बना जिसका अर्थ होता है बलिदान या कुर्बानी। इस दिन मुसलमान एक बकरे की कुर्बानी देता है। यह परंपरा पैगम्बर हजरत इब्राहीम की याद में निभाई जाती है। जो अल्लाह के लिए अपने बेटे की कुर्बानी देने को तैयार हो गए थे। ईद-उल-जुहा इस्लामी कैलेंडर के जिलहज मास के दसवें से बारहवें दिन मनाया जाता है। विभिन्न देशों में यह उत्सव तीन दिन या अधिक समय तक मनाया जाता है। इस त्योहार की परंपरा मुस्लिम धर्म के तीर्थ स्थान मक्का में हज यात्रा की रस्म से जुड़ा है। ईद-उल-जुहा का त्योहार सऊदी अरब में दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा माउंट अराफात से नीचे उतर कर मक्का की हज यात्रा पूर्ण होने के अंतिम दिन मनाया जाता है। इस दिन मस्जिदों में नमाज एवं प्रार्थना की जाती है और कुर्बानी दी जाती है। ईद की नमाज और इबादत के बाद कुर्बानी का मांस गरीबों में भी बांटा जाता है। यह परंपरा का पालन हर मुसलमान अपने-अपने देश में भी करता है। यह रमजान महीने की समाप्ति के लगभग 70 दिन बाद मनाया जाता है। बकरीद का त्योहार पैगम्बर हजरत इब्राहीम की अल्लाह में आस्था की परीक्षा में सफलता और अल्लाह द्वारा कुर्बानी स्वीकार करने के रूप में मनाया जाता है। मक्का के पास मीना में हजरत इब्राहीम ने अपने सबसे प्रिय व्यक्ति की कुर्बानी करने के अल्लाह का आदेश पाकर अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने का फैसला किया। ऐसा करने के लिए इब्राहीम ने अपने बेटे इस्माइल के गले पर तलवार रखी। किंतु खुदा की कृपा से इस्माइल के स्थान पर एक दुम्बा (जो भेड़ की नस्ल का होता है) कुर्बान हुआ।परंपरा के अनुसार, अमीर परिवार में प्रति व्यक्ति एक जानवर कुर्बान कर उस मांस का दो तिहाई भाग गरीबों के बीच के वितरित करते हैं। जिन व्यक्ति की सामथ्र्य कम हो, उन परिवारों में एक जानवर को कुर्बान किया जा सकता है। बहुत गरीबों के लिए सात या सत्तर परिवार एक साथ मिलकर एक जानवर की कुर्बानी कर सकते हैं। रोग से मुक्त ऊंट, बकरी या भेड़ हो, सबसे अच्छी कुर्बानी माना जाता है। ईद के तीसरे दिन तक दोपहर से पहले किसी भी समय की कुर्बानी दी जा सकती है। भारत में भी सभी प्रदेशों में बकरी और भेड़ की कुर्बान दी जाती है और दुआएं की जाती हैं। जिस तरह मीठी ईद पर सदका और दान दिया जाता है, उसी प्रकार बकरीद पर कुर्बानी के मांस का एक भाग गरीबों को दिया जाता है। मूलत: कुर्बानी का एक हिस्सा स्वयं के लिए, दूसरा परिजनों एवं रिश्तेदारों के लिए और तीसरा गरीबों के दान के लिए होता है। मुसलमानों के लिए ईद-उल-जुहा का दिन पैगम्बर हजरत के खुदा के प्रति समर्पण भाव को याद दिलाता है। यह हज यात्रा (मक्का की तीर्थयात्रा) पूरी होने का दिन भी होता है। इसलिए ईद-उल-जुहा को हजारों मुसलमानों के द्वारा शांति और समृद्धि के लिए अल्लाह की विशेष इबादत करते हैं, नमाज अदा करते हैं, दुआएं की जाती है। इस्लाम धर्म के अनुसार, यह दिन पवित्र कुरान के पूर्ण होने की घोषणा का भी माना जाता है।ईद-उल-जुहा या बकरीद का त्योहार पूरी दुनिया में मुसलमानों के बीच काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन सभी मुस्लिम पुरुष और महिलाएं नए वस्त्र पहनते हैं और एक-दूसरे को बधाई और उपहारों का आदान-प्रदान होता है। भारत में यह त्योहार कुर्बानी के दिन के रूप में पारंपरिक उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है।कुर्बानी और गरीबों को दान के बाद सभी मुसलमान एक-दूसरे को ईद मुबारक बोलकर शुभकामनाएं देते हैं। अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के घर जाते हैं। इस दिन विशेष व्यंजनों को तैयार किया जाता है और परिवार, दोस्तों को परोसा जाता है तथा तोहफे इस शुभ दिन पर दिए जाते हैं। यह पर्व धर्म और ईश्वर के प्रति समर्पण भाव पैदा करता है। साथ ही समाज में आपसी प्रेम, भाईचारे की भावना एवं गरीबों,दीन-दुखियों के प्रति संवेदना के भाव जगाता है।total state

युगदृष्टा गुरुनानक देव सर्वधर्म समभाव के पैरोकार

 प्रीतमसिंह छाबड़ा
आज से 540 वर्ष पूर्व भारत की पावन धरती पर एक युगांतकारी युगदृष्टा, महान दार्शनिक, चिंतक, क्रांतिकारी समाज सुधारक, धर्म एवं नैतिकता के सत्य शाश्वत मूल्यों के प्रखर उपदेशक, निरंकारी ज्योति का सन्? 1469 में दिव्य प्रकाश हुआ। इस दिव्य प्रकाश पुंज का नाम रखा नानक।
नानकजी के भीतर अल्लाह का नूर, ईश्वर की ज्योति को सबसे पहले दायी दौलता, बहन नानकीजी एवं नवाब रायबुलार ने पहचाना। पुरोहित पंडित हरदयाल ने जब उनके दर्शन किए, उसी क्षण भविष्यवाणी कर दी थी कि यह बालक ईश्वरीय ज्योति का साक्षात अलौकिक स्वरूप है। भाई गुरदासजी ने भी बड़े सुंदर शब्दों में उच्चारित किया 'सतिगुरु नानक प्रगटिआ मिटी धुंधु जगि चानणु होआ।'
नानकजी बाल्यकाल से संत प्रवृत्ति के थे। उनका मन आध्यात्मिक ज्ञान, साधना एवं लोक कल्याण के चिंतन में डूबा रहता। उन्होंने संसार के कल्याण के लिए ज्ञान साधना द्वारा झूठे धार्मिक उन्माद एवं आडंबरों का विरोध किया। मन की पवित्रता, सदाचार एवं आचरण पर विशेष बल देते हुए एक परमेश्वर की भक्ति का सहज मार्ग सभी प्राणियों के लिए प्रशस्त किया।
दुनिया में सभी स्वार्थ के लिए झुकते हैं, परोपकार के लिए नहीं। गुरुदेव स्पष्ट ऐलान करते हैं कि मात्र सिर झुकाने से क्या होगा, जब हृदय अशुद्ध हो, मन में विकार हो, चित में प्रतिशोध हो।
गुरुनानकजी की सिद्धों से मुलाकात हुई तो सिद्धों ने सवाल किया कि हमारी जाति 'आई' है, तुम्हारी जाति कौन-सी है? गुरुदेव ने फरमाया- 'आई पंथी सगल जमाती मनि जीतै जगु जीतु।' अर्थात सारे संसार के लोगों को अपनी जमात का समझना, किसी को छोटा या बड़ा न समझना ही हमारा पंथ (जाति) है। श्री गुरुजी ने संस्कारों एवं रूढिय़ों को नए सुसंस्कारित अर्थों में ग्रहण कर उच्च मानवीय मूल्यों की स्थापना की और 'मनि जीतै जगु जीतु' का सिद्धांत प्रस्तुत किया।
यह सिद्धांत था मन पर कंट्रोल करने का, क्योंकि मन पर विजय पाकर ही सारी दुनिया पर विजय प्राप्त की जा सकती है। यह जीत तीर-तलवार या बम के गोलों की न होकर सिद्धांतों की जीत होती है और इस जीत के पश्चात मनुष्य जीवनरूपी बाजी जीतकर ही जाता है। जब गुरुजी से प्रश्न किया कि आपकी नजर में हिन्दू बड़ा है या मुसलमान? total state

सर इबादत में हैं झुकने वाले बहुत

सर इबादत में हैं झुकने वाले बहुत


लब पे हर्फ़-ए-दुआ दिल हैं काले बहुत

अश्क दामन में बार-ए-गिरां बंदगी

जिंदगी के लिए गम के नाले बहुत

उन मज़ारों की बालीं पे जलते दीए

जिनकी यादों से रोशन उजाले बहुत

उनके नामो निशां मिट के जिंदा रहे

जिनकी अज़मत के चर्चे हवाले बहुत

शहर-ए-उलफत से नफरत के शोले उठे

ख्वाब क्या क्या जले रोए छाले बहुत

पेट की आग अश्कों से बुझती कहां

सानी फ़ाक़ाकशी के निवाले बहुतtotal state

कुछ काम भी आई सीबीआई?

(रमन किरपाल की रिपोर्ट; राना अयूब, श्रीकांत एस और अनुकंपा गुप्ता के सहयोग से)

50 सवाल जिनके जवाब सीबीआई को देने हैं.

सबसे स्वस्थ वे समाज होते हैं जो किसी भी प्रकार की जांच-परख से जरा भी भयभीत नहीं होते, मामलों की तह तक पहुंचना जिनकी मानसिकता का एक हिस्सा होता है और जो इस उद्देश्य की पूर्ति के उपकरणों की व्यवस्था करने से जरा भी नहीं हिचकते.
ऐसा ही एक उपकरण केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई है जिसकी स्थापना भ्रष्टाचार और राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के उद्देश्य से 1963 में की गई थी. आज 47 साल के बाद स्थिति जस की तस है.
आज के भारत में बदलाव की, सुधार की उम्मीद के हरकारों की बात करें तो इनमें सबसे पहला नाम सीबीआई का होना चाहिए था. इसकी वजह से, जिनमें जरूरी है उनमें भय और हममें न्याय की लड़ाई के प्रति विश्वास का संचार होना चाहिए था.मगर सीबीआई की वर्तमान स्थिति दोनों में से कुछ भी नहीं कर पाती.
वैधानिक रूप से सीबीआई देश के कार्मिक मंत्रालय से संबद्ध संस्था है जो सीधे देश के प्रधानमंत्री के अधीन आती है. इसे अपने कार्य के लिए जरूरी शक्तियां दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना कानून, 1946 के तहत जारी एक प्रस्ताव से मिलती हैं. इसके मुताबिक संघीय क्षेत्र सीधे तौर पर सीबीआई के अधिकार क्षेत्र में आते हैं.मगर राज्यों में किसी जनसेवक की जांच और उसके ऊपर कार्रवाई के लिए उसे राज्य सरकार की अनुमति की आवश्यकता होती है.यहां तक कि सीबीआई अपने अधीन रहे मामलों को लेकर भी खुदमुख्तार नहीं है.वह अपने आप सर्वोच्च अदालत में विशेष अनुमति याचिका तक दायर नहीं कर सकती. उदाहरण के तौर पर, एक विशेष सीबीआई अदालत ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में लालू प्रसाद यादव को बरी कर दिया.सीबीआई कहती है कि उसके पास उनके खिलाफ तमाम मजबूत साक्ष्य हैं.मगर विधि मंत्रालय ने उसे याचिका दायर करने की अनुमति ही नहीं दी.
इसके अलावा सीबीआई संयुक्त सचिव से ऊपर के स्तर के किसी भी सरकारी अधिकारी के खिलाफ जांच की कार्रवाई शुरू नहीं कर सकती.
ऐसा करने के लिए उसे केंद्र सरकार की अनुमति की आवश्यकता होती है. वर्तमान में ऐसे कम से कम 30 प्रार्थनापत्र सरकार के पास लंबित पड़े हुए हैं.
यहां तक कि मुकदमा चलाने के लिए भी सीबीआई को केंद्र सरकार का मुंह ताकना पड़ता है. देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी का कोई अधिकारी बिना केंद्र सरकार की अनुमति के देश से बाहर जांच के लिए नहीं जा सकता जबकि आज के वैश्विक गांव वाले वातावरण में कदम-कदम पर ऐसी आवश्यकताएं आन खड़ी होना कोई बड़ी बात नहीं. देश के सबसे चर्चित मामलों में से एक में सीबीआई को ओत्तावियो क्वात्रोची के पीछे जाना था. विधि मंत्रालय ने इस मामले को ही बंद करवा दिया. क्वात्रोची निकल गया.
संभवत: इसी सत्र में लोकसभा सीबीआई की भूमिका पर चर्चा करने वाली है क्योंकि इसके एक सदस्य ने निजी तौर पर ऐसा करने के लिए एक कदम उठाया है. सीबीआई का होना ही कानूनन सही नहीं है. मैं अपने निजी विधेयक के माध्यम से एक बीज बो रहा हूं. हो सकता है कि कुछ सालों में इससे कोई फल निकल आए, कांग्रेस प्रवक्ता और लुधियाना से सांसद मनीष तिवारी कहते हैं. सवाल उठता है कि अपने देश की सर्वोच्च जांच संस्था के नाम पर हम हर तरह की जंजीरों में गले तक जकड़ी, बात-बात पर कभी इस तो कभी उसका मुंह ताकने को मजबूर संस्था को कैसे स्वीकार कर सकते हैं. हम कड़वी लेकिन स्वस्थ लोकतंत्र और समाज के लिए जरूरी सच्चाइयों को घर के पिछवाड़े दफन कर अपने साथ सब-कुछ सही होने की उम्मीदें कैसे पाल सकते हैं? 30 करोड़ की आबादी वाले अमेरिका की संघीय जांच संस्था(एफबीआई) के बजट की तुलना सीबीआई से करने की सोचना भी पाप होगा. वह काफी हद तक स्वतंत्र भी है और इसीलिए दुनिया भर में प्रतिष्ठित है. मगर हमने सीबीआई को, जब कर सकते हैं तब अपने पक्ष में और विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए, किसी लायक नहीं छोड़ा. 50 सवालों के जरिए किया गया तहलका का यह आकलन भी इसी बात की पुष्टि करता है.

50. गुजरात फर्जी मुठभेड़
सीबीआई ने अभय चुडासमा के खिलाफ मिल रही शिकायतों पर एक लंबे समय तक गौर क्यों नहीं किया?
सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में कथित तौर पर शामिल होने के आरोप में अहमदाबाद के भूतपूर्व डीसीपी (क्राइम ब्रांच) अभय चुडासमा को इस साल अप्रैल में गिरफ्तार किया गया था. एक लंबे समय तक जांच एजेंसी को चुडासमा के खिलाफ शिकायतें मिलती रही थीं मगर वह बैठी रही. चुडासमा पर उद्योगपतियों और बिल्डरों से जबरन-वसूली के लिए एक बहुत बड़़ा रैकेट चलाने, इसके लिए सोहराबुद्दीन को इस्तेमाल करने का आरोप है. 23 जुलाई को सीबीआई ने अहमदाबाद में एक विशेष अदालत में एक आरोप-पत्र दाखिल किया जिसमें चुडासमा समेत कुल 15 लोगों पर अपहरण, आपराधिक षडयंत्र और हत्या जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे. गौरतलब है कि चुडासमा गुजरात के भूतपूर्व गृह राज्यमंत्री अमित शाह के भरोसेमंद पुलिस अफसर थे.

49. इस पूरे मामले की जांच प्रक्रिया को गुमराह करने वाले पुलिस अफसर गीता जौहरी और ओपी माथुर को न तो हिरासत में लिया गया और न ही उनके बयान दर्ज किए गए, क्यों?
सीबीआई से पहले गुजरात पुलिस का विशेष जांच दल इस मामले की जांच कर रहा था. गीता जौहरी तब राज्य की पुलिस महानिरीक्षक थीं और ओपी माथुर सीआईडी (अपराध) के मुखिया. फिलहाल ये दोनों अफसर संदेह के घेरे में हैं. जौहरी को तो ठीक से जांच न करने के लिए अदालत से फटकार भी पड़ी. अब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके आरोप लगाया है कि सीबीआई उन पर नेताओं का नाम लेने के लिए दबाव डाल रही है.

48. सोहराबुद्दीन हत्याकांड
सीबीआई ने राजस्थान के पूर्व गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया से गहन पूछताछ क्यों नहीं की जबकि सोहराबुद्दीन हत्याकांड में उनकी कथित संलिप्तता की चर्चा है?
खबरों के मुताबिक सोहराबुद्दीन केस में सीबीआई के अहम गवाह आजम खान ने बताया कि राजस्थान की एक फर्म, राजस्थान मार्बल्स ने सोहराबुद्दीन को खत्म करवाने के लिए गुलाब चंद कटारिया को 10 करोड़ रुपए दिए थे.

47.क्या हमारी जांच एजेंसी राजनेताओं की मिलीभगत से आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने वाले पुलिस अफसरों पर नकेल कसने में विफल नहीं रही है?
नवंबर, 2005 में हुए सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले का अकेला चश्मदीद गवाह प्रजापति एक मुठभेड़ में करीब एक साल बाद दिसंबर, 2006 में मारा गया था. गुजरात सीआईडी द्वारा अब जाकर इस साल 30 जुलाई को बनासकांठा की एक अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया गया. इसमें तीन आईपीएस अफसर डीजी वंजारा, विपुल अग्रवाल और एमएन दिनेश को मुख्य अभियुक्त ठहराया गया था. वंजारा और दिनेश पिछले तीन साल से पुलिस हिरासत में हैं. राजस्थान कैडर के आईपीएस दिनेश को जब 2007 में गिरफ्तार किया गया तो राजस्थान के तत्कालीन गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया और पुलिस महानिदेशक इस मामले में हस्तक्षेप करने गुजरात तक पहुंच गए थे.

46. हरेन पंड्या हत्याकांड
सीबीआई अब तक मुफ्ति सुफियान का पता क्यों नहीं लगा पाई है?
गुजरात के पूर्व गृहमंत्री पंड्या की हत्या गन-मैन अशगर अली ने मुफ्ति सुफियान के इशारे पर की थी. आरोप लगे कि इस हत्या के पीछे मोदी और अमित शाह का हाथ था क्योंकि पंड्या ने एलिसब्रिज सीट खाली न करके और 2002 में हुए दंगों की जांच कर रही न्यायाधीशों की एक टीम के सामने उपस्थित होकर मोदी को खुलेआम चुनौती दी थी. उसी समय युवा मुसलमान नेता सुफियान अहमदाबाद की लाल मस्जिद से उत्तेजक भाषण देते हुए कट्टरपंथियों के बीच लोकप्रिय हो रहा था. 2002 के दंगे के बाद वह पहले से भी ज्यादा कट्टरपंथी हो गया था. नमाज खत्म होने के बाद सुफियान अकसर उन्मादी भाषण दिया करता था. कहा जाता है कि उसके तार अहमदाबाद अंडरवल्र्ड से जुड़े थे.

45.सीबीआई का आरोप पत्र यह क्यों नहीं बताता कि मुठभेड़ के छह दिन बाद सुफियान देश से बाहर भागने में कैसे सफल हो गया?

44. मामले की जांच कर रहे अफसरों के तबादले में नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सीबीआई ने मुख्यमंत्री से पूछताछ क्यों नहीं की?

43. सुफियान को पकडऩे के लिए इंटरपोल से मदद क्यों नहीं ली गई?

42. सीबीआई ने तुलसी प्रजापत हत्याकांड में जांच करके आरोपियों को क्यों नहीं पकड़ा जबकि उच्चतम न्यायालय ने उसे इस संबंध में निर्देश दिया था?

41. प्रजापत मामले की सुनवाई टलने से सीआईडी को आरोपी अधिकारियों को हिरासत में लेने का वक्त मिल गया है. सीबीआई ने जांच शुरू कर दी होती तो इस स्थिति से बचा नहीं जा सकता था ?

40. क्या सीबीआई उस समय सत्तारूढ़ बीजेपी के निर्देशों पर नहीं चल रही थी, जैसा कि हरेन पंड्या के पिता वि_ल पंड्या का आरोप है?
रिपोर्टों के मुताबिक पंड्या की हत्या को उनके पिता वि_ल पंड्या ने राजनीतिक षड्यंत्र बताया और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी उंगली उठाई थी. हालांकि बाद में सीबीआई ने कहा कि मोदी के हत्याकांड से जुड़े होने का कोई सबूत नहीं मिला है. मुख्य हत्यारा अशगर अली बाद में हैदराबाद से गिरफ्तार किया गया. सीबीआई के मुताबिक अशगर को पंड्या की हत्या की सुपारी मुफ्ति सुफियान ने दी थी. वि_ल पंड्या ने गोधरा जांच समिति के सामने बयान दिया कि हरेन पंड्या के कहे अनुसार 2002 में हुआ दंगा राज्य के द्वारा प्रायोजित और मोदी द्वारा नियोजित था.

39. मायावती का आय से अधिक संपत्ति का मामला
इसी साल 28 अप्रैल को मायावती ने संसद में कटौती प्रस्ताव का समर्थन करके यूपीए सरकार को गिरने से बचाया. एक हफ्ते के भीतर ही आयकर विभाग ने आय से अधिक संपत्ति मामले में उन्हें क्लीन चिट दे दी. जब सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि वह मायावती के खिलाफ मुकदमा चलाने को तैयार है तो फिर वह पीछे क्यों हट गई?
2003 में मायावती की कुल संपत्ति एक करोड़ रुपए थी लेकिन तीन ही साल में यह पचास करोड़ रुपए हो गई यानी पचास गुना बढ़ोतरी. सीबीआई ने इसे आधार बनाकर उन पर मामला दर्ज किया था. मायावती की कई बेनामी जमीन-जायदाद के बारे में जांच करने के बाद ब्यूरो ने दावा किया था कि वह कार्रवाई करने को तैयार है. लेकिन आज तक आरोप पत्र दाखिल नहीं किया जा सका.

38. ताज कॉरिडोर मामला
यदि इस मामले की जांच का कोई नतीजा नहीं निकला तो क्या सीबीआई इससे जुड़ी केस डायरियां सार्वजनिक करेगी?
2002 में मायावती की पहल पर ताजमहल के आसपास पर्यटक सुविधाएं विकसित करने के लिए 175 करोड़ रुपए की परियोजना की शुरुआत हुई. सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 74 करोड़ रुपए खर्च होने तक निर्माण स्थल पर सिर्फ पत्थर फिंकवाने का काम हुआ था.

37. आय से अधिक संपत्ति के मामले में 6 साल बाद भी मायावती के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल क्यों नहीं किया गया?

36. राज्यपाल ने सीबीआई को मायावती पर मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी थी. क्या दोबारा उनसे मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी गई?

35. जम्मू-कश्मीर सेक्स कांड
क्या उमर अब्दुल्ला 2006 के सेक्स प्रकरण मामले में आरोपित हैं?
2006 में पुलिस को कश्मीरी औरतों का यौन शोषण दर्शाती कुछ वीसीडी मिली थीं. पीडीपी ने इस घटना के बाद आरोप लगाया था कि सीबीआई के आरोप पत्र में राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का नाम भी है.

34. सीबीआई आरोप पत्र दाखिल करने में इतना वक्त क्यों लगा रही है?

33. इस मामले में गिरफ्तार किए गए पुलिस अधिकारियों को क्यों छूट जाने दिया गया?


32. मिसाइल घोटाला
2006 में एफआईआर दर्ज करने के बाद दो साल तक सीबीआई ने जॉर्ज फर्नांडीस से पूछताछ क्यों नहीं की?
2000 में भारत ने इजरायल से बराक मिसाइलें खरीदी थीं. सौदे में कथित गड़बड़ी के लिए सीबीआई ने फर्नांडीस के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी. फर्नांडीस का दावा था कि तब रक्षामंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार रहे डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने सौदे को मंजूरी दी थी. सौदे में दो करोड़ की रिश्वत का आरोप है.

31. जूदेव रिश्वत मामला
 सीबीआई दिलीप सिंह जूदेव रिश्वत कांड में ढ़ीली क्यों पड़ गई?
केंद्र में भाजपा नेतृत्व वाली सरकार के मंत्री जूदेव कैमरे के सामने रिश्वत लेते पकड़े गए. 2005 में सीबीआई ने कहा कि इस स्टिंग ऑपरेशन के पीछे छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के बेटे अमित का हाथ है.

30. मुलायम सिंह की आय से अधिक संपत्ति का मामला
आखिर क्या वजह थी कि सीबीआई ने 2007 में मुलायम सिंह यादव के खिलाफ कार्रवाई आगे नहीं बढ़ाई और क्यों कार्रवाई रिपोर्ट अदालत में जमा करने से पहले केंद्र को भेजी गई?
ब्यूरो ने अपनी प्राथमिक रिपोर्ट अक्टूबर, 2007 में दाखिल करते हुए दावा किया था कि उसके पास मुलायम सिंह पर मामला दर्ज करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं.

29. 2009 में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में मुलायम और उनके परिवार के खिलाफ केस दायर करने की अपनी अर्जी को वापस लेने की याचिका दी. क्यों?
क्या यह जुलाई, 2008 में वामदलों के केंद्र सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद समाजवादी पार्टी द्वारा केंद्र को समर्थन देने का पुरस्कार था?

28. लालू-राबड़ी देवी का आय से अधिक संपत्ति का मामला
बिहार के इन दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के खिलाफ पुख्ता सबूत होने के दावे के बावजूद सीबीआई जांच प्रक्रिया आगे क्यों नहीं बढ़ा रही?
2004 में सीबीआई ने इस मामले में सालों से चल रही जांच को किनारे कर दिया और यूपीए सरकार के लिए लालू प्रसाद और राबड़ी देवी को फायदा पहुंचाने का रास्ता तैयार कर दिया. 2006 में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने दोनों को बरी कर दिया, लेकिन सीबीआई मामले को हाई कोर्ट नहीं ले गई.

27. ओपी चौटाला : आय से अधिक संपत्ति का मामला
आरोप है कि सीबीआई ने ओमप्रकाश चौटाला के खिलाफ कार्रवाई तब शुरू की जब वे यूपीए सरकार के लिए राजनीतिक रूप से गैरजरूरी हो गए.
हरियाणा के पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके चौटाला के खिलाफ सीबीआई ने अज्ञात स्रोतों से कथित छह करोड़ रुपए अर्जित करने के मामले में आरोप पत्र दाखिल किया था. आरोप पत्र विधानसभा अध्यक्ष की अनुमति मिलने के बाद दाखिल किया गया था.

26. सीके जाफर शरीफ : आय से अधिक संपत्ति का मामला
पूर्व मंत्री सीके जाफर शरीफ के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला दर्ज करने के बाद भी सीबीआई को आगे बढऩे की अनुमति क्यों नहीं मिली?
सीबीआई ने 1997 में सीके जाफर शरीफ के खिलाफ पद के दुरुपयोग और आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया था. लेकिन 2006 में उसने मामला बंद करने की अर्जी दे दी क्योंकि केंद्र से उसे आगे जांच की अनुमति नहीं मिली.

25. एनडीए शासनकाल में लालू प्रसाद के खिलाफ सीबीआई ने काफी सक्रियता दिखाई थी, लेकिन यूपीए सरकार बनने के बाद इस मामले में ब्यूरो की रफ्तार सुस्त क्यों पड़ गई?

24. विशेष अदालत में लालू के खिलाफ मामला खारिज हो जाने के बाद सीबीआई हाई कोर्ट क्यों नहीं गई?

23. सीबीआई ने पप्पू यादव की जमानत याचिका के खिलाफ कार्रवाई करने में देर क्यों लगाई?

22. जयललिता उपहार मामला
क्या जयललिता मामले को सीबीआई बिलकुल भूल चुकी है?
सीबीआई के मुताबिक तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री को विदेश से तीन करोड़ रुपए का 'डोनेशनÓ मिला था, जिसे उन्होंने 1992-93 के दौरान इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करते समय अपनी आय के रूप में दर्शाया. जब एचडी देवगौड़ा सरकार में तमिल मनीला कांग्रेस के पी. चिदंबरम वित्तमंत्री थे तब उन्होंने सीबीआई प्रमुख जोगिंदर सिंह से डोनेशन देने वाले की पहचान पता करने की बात कही थी. सिंह ने इस पर कार्रवाई भी शुरू की, लेकिन जांच आज भी बेनतीजा जारी है.

21 भविष्यनिधि घोटाला
तकरीबन दो साल तक जांच के बाद सीबीआई आज भी दावा कर रही है कि जजों के खिलाफ मामला चलाने के लिए उसके पास पर्याप्त सबूत नहीं हैं, आखिर इसकी क्या वजह है?
अप्रैल, 2010 में सीबीआई ने सर्वोच्च न्यायालय में करोड़ों रुपए के भविष्यनिधि घोटाले से संबंधित जांच की स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की थी. ब्यूरो ने इसमें उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय के तीन जजों सहित राज्य के उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष और लोकायुक्त पर करोड़ों रुपए के भविष्यनिधि घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया था. सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस तरुण चटर्जी के अलावा आरोपितों की सूची में उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीश भी शामिल थे. आरोप था कि 2001 से 2008 के बीच गाजियाबाद की जिला अदालत के कोषाधिकारी आशुतोष अस्थाना ने जिला अदालत के न्यायाधीशों के साथ मिलकर तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के भविष्यनिधि खाते से करोड़ों रुपए निकाले.

20. इस मामले में ब्यूरो ने जजों से पूछताछ की कोशिश क्यों नहीं की?

19. प्रथम दृष्टया सबूत होने के बाद भी जजों के घरों पर छापे क्यों नहीं पड़े?

18. बोफोर्स घूसखोरी मामला
मलेशिया और अर्जेंटीना में दो बार गिरफ्तार होने के बाद भी सीबीआई ने ओटावियो क्वात्रोची के खिलाफ रेडकॉर्नर नोटिस क्यों वापस लिया?
जब-जब केंद्र में गैरकांग्रेसी सरकार रही, इटली के इस हथियार सौदेबाज के खिलाफ सीबीआई जांच में तेजी बनी रही. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मृत्यु के बाद भी सीबीआई, मलेशिया और अर्जेंटीना सहित जहां भी क्वात्रोची गया, उसके पीछे पड़़ी रही. लेकिन बाद में मामला धीरे-धीरे रफा-दफा कर दिया गया.

17. हर्षद मेहता शेयर घोटाला
शेयर घोटाले में पूछताछ के दौरान हर्षद मेहता ने कई राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों के नाम उजागर किए थे. सीबीआई ने मामले में उनकी भूमिका की जांच क्यों नहीं की?
शेयर दलाल हर्षद मेहता ने बैंकिंग तंत्र की खामियों का फायदा उठाकर बैंकों का पैसा शेयरों की खरीद-फरोख्त में लगाया और शेयर बाजार को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया. मामला खुला तो शेयर बाजार भरभराकर गिरा और निवेशकों व बैंकों को करोड़ों रुपए का घाटा उठाना पड़ा. मेहता पर 72 आपराधिक मामले दर्ज हुए.

16. यूरिया घोटाला
1995 के यूरिया घोटाले के प्रमुख आरोपितों में शामिल पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव के भतीजे बी संजीव राव और बेटे पीवी प्रभाकर राव कैसे बच गए?

15. संजीव राव ने माना था कि रिश्वत की रकम कहां छुपाई गई, उन्हें पता है. फिर भी आरोप पत्र में उनका नाम क्यों नहीं था?

14. प्रधानमंत्री कार्यालय के कौन-कौन अफसर इस मामले से जुड़े थे?

13. झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड
सीबीआई ने इस मामले में ज्यादातर अभियुक्तों के दोषी साबित हो जाने के बाद क्या किया है?
इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने साफ-साफ कहा था कि रिश्वत लेने और देने वाले सांसद अपने विशेषाधिकार का फायदा नहीं उठा सकते और उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है.

12. सीबीआई ने सत्यम मामले में राजनेताओं की भूमिका की जांच क्यों नहीं की?
7 जनवरी, 2009 को सत्यम के चेयरमैन रामालिंगा राजू ने अपने बोर्ड मेंबरों और सेबी को यह बताते हुए इस्तीफा दिया था कि आईटी कंपनी के खाते में 5,000 करोड़ रुपए से भी ज्यादा का घालमेल है.

11. जैन हवाला कांड
उच्चतम न्यायालय ने हवाला कांड में राजनेताओं के खिलाफ लचर जांच-पड़ताल के लिए सीबीआई की आलोचना की थी, इससे कोई सबक लिया गया?
18 करोड़ डॉलर के इस घोटाले में वह पैसा भी शामिल था जो हवाला कारोबारी जैन भाइयों ने कथित तौर पर नेताओं को दिया. इस रकम का एक हिस्सा हिजबुल मुजाहिदीन को मिलने की बात भी हुई. लालकृष्ण आडवाणी और मदनलाल खुराना मुख्य आरोपितों में से थे. अदालत ने हवाला रिकॉर्डों को अपर्याप्त सबूत माना.

10. एनके जैन ने दावा किया था कि उसने पीवी नरसिंहा राव को एक करोड़ रु. दिए. इसके बाद सीबीआई के सबूत जुटाने की रफ्तार अचानक धीमी क्यों पड़ गई?

9. सेंट किट्स मामला
सेंट किट्स के दौरे के बाद धोखाधड़ी के इस मामले की तफ्तीश के लिए सीबीआई को कौन-से सुराग मिले?
सेंट किट्स धोखाधड़ी मामले में भूतपूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव के साथ-साथ केंद्रीय मंत्री केके तिवारी, सिद्धपुरुष चंद्रास्वामी और उनके सचिव केएन अग्रवाल के ऊपर आरोप लगे थे. मामला था वीपी सिंह की छवि को खराब करने के लिए फर्जीवाड़ा करने का. राव पर ये आरोप 1996 में तब लगाए गए जब वे प्रधानमंत्री के पद से हट चुके थे. बाद में सबूतों के अभाव में अदालत ने उन्हें इस आरोप से बरी कर दिया. बाकी आरोपी भी आखिरकार छूट गए.

8. बाबरी विध्वंस
बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सीबीआई कोई भी पुख्ता सबूत नहीं जुटा पाई. क्यों?
6 दिसंबर, 1992 को कथित तौर पर संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की शह पर बाबरी मस्जिद को गिरा दिया. सीबीआई ने आरोप पत्र दाखिल किया जिसमें लालकृष्ण आडवाणी समेत 24 नेताओं का नाम था. इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ इस पर फैसला सुना चुकी है.

7. पाठक धोखाधड़ी मामला
इतने बड़े नेताओं पर इतने गंभीर आरोप लगे पर सीबीआई साक्ष्य जुटाने में नाकाम क्यों रही?
इंग्लैंड में रहने वाले कारोबारी लक्खूभाई पाठक ने तांत्रिक चंद्रास्वामी, उनके सचिव केएन अग्रवाल और पीवी नरसिंहा राव पर एक लाख डॉलर की धोखाधड़ी का आरोप लगाया था.

6. तेलगी स्टांप पेपर घोटाला
सीबीआई ने उन नेताओं के खिलाफ जांच जारी क्यों नहीं रखी जिनका नाम तेलगी ने लिया था?
2006 में अब्दुल करीम तेलगी की गिरफ्तारी हुई. पूछताछ में उसने शरद पवार, छगन भुजबल समेत कई और राजनेताओं और नौकरशाहों के नाम लिए जो इस घोटाले में उसके हिस्सेदार थे. कभी फल बेचने वाले तेलगी को 1994 में स्टांप पेपर बेचने का लाइसेंस मिला और तब-से उसने फर्जी स्टांप पेपर छापने शुरू कर दिए.

5. क्या एक अकेला आदमी नेताओं की शह के बिना इतना बड़ा घोटाला कर सकता है?

4. हजारों करोड़ के इस घोटाले की जांच में सीबीआई को क्या मिला?

3. आरुषि हत्याकांड को दो साल हो गए हैं. सीबीआई की क्या उपलब्धि है?

2. सिख विरोधी दंगे

1984 के सिख विरोधी दंगों के मुख्य अभियुक्तों में से एक सज्जन कुमार के खिलाफ सीबीआई अभी तक ढुलमुल रवैया ही अपना रही है. क्यों?
सीबीआई के यह कहने पर कि सज्जन कुमार गायब हैं, फरवरी, 23 को इस केस की सुनवाई कर रही अदालत ने उसे फटकार लगाई.

1. सिख विरोधी दंगे
कांग्रेस के सांसद जगदीश टाइटलर को क्लीन चिट देने में सीबीआई को 15 साल क्यों लग गए?
उत्तर भारत में चार दिन तक हिंसा हुई. खासकर दिल्ली में. कांग्रेस के इशारों पर नाचती भीड़ ने निहत्थे सिखों को मारा. औरत, मर्द, बच्चे, बूढ़े सबको. सिखों के घरों और उनकी दुकानों को लूटा और जलाया गया. गुरुद्वारों तक को नहीं बख्शा गया. इस साल 10 फरवरी को सीबीआई ने दिल्ली कोर्ट में अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपी जिसमें भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री जगदीश टाइटलर को क्लीन चिट मिल गई. सीबीआई ने दिसंबर, 2007 में ही टाइटलर को क्लीन चिट दे दी थी पर अदालत ने इसे खारिज कर दिया था और एजेंसी को निर्देश दिए थे कि इस मामले में टाइटलर की भूमिका की दोबारा जांच हो. अप्रैल 2, 2009 को भी सीबीआई ने अपर्याप्त सबूतों का हवाला देते हुए टाइटलर को क्लीन चिट दी थी. क्लीन चिट देने के लिए सीबीआई ने जिन दस्तावेजों का सहारा लिया था उन्हें हासिल करने के मकसद से दाखिल एक पीडि़त की अर्जी पर जवाब देने के लिए दिल्ली की एक अदालत ने जांच एजेंसी को दो महीने का वक्त दिया है.total state